संत श्री रामकृष्ण परमहंस
विवेकानंदजी के गुरुदेव संत रामकृष्ण परमहंस अपने भक्तगणों से वार्तालाप करते समय अपने परमप्रिय भक्तों का उल्लेख करते थे जो, एकदम सरल, सीधे-सादे दिखनेवाले, समाज में रहकर एवं अपने गृहस्थ जीवन में रहकर साधना करनेवाले थे । इसके साथ स्वयं के देखे नानाविध साधुपुरुषों का भी वे वर्णन करते थे जो, ‘दिव्योन्मादी’, ‘ज्ञानोन्मादी’ (ज्ञान की तीव्र लालसा रखनेवाले), ‘आनंदलाभी’ तथा उच्च परमहंस पद को प्राप्त थे । ऐसे ही एक बार संत रामकृष्णजी ने अपने भक्तगणों से वार्तालाप करते हुए एक घटना स्पष्ट की ।
एक गांव में एक साधु महाराज आए । उनके पास एक कमंडलू एवं एक ग्रंथ के अतिरिक्त और कोई सामग्री नहीं थी । उनके पास जो ग्रंथ था उसमें उन्हें अत्यधिक निष्ठा थी । वे प्रतिदिन उस ग्रंथ को कुमकुम एवं फूल चढाकर उसकी पूजा करते थे । ईश्वर के नाम में उनकी अपार श्रद्धा थी । इसलिए अतिरिक्त समय को वे प्रभु के चिंतन में व्यतीत करते थे । वे दिनभर बीच-बीच में उस ग्रंथ को खोलकर देखते थे । उनसे अधिक परिचय होनेपर मैंने उनसे उनका वह ग्रंथ देखने के लिए मांगा । मेरे कई बार मांगनेपर उन्होंने वह ग्रंथ मुझे सौंप दिया ।
मैंने तीव्र जिज्ञासा के साथ उसे खोलकर देखा; तो देखता हूं कि उसमें एक से दूसरे सिरेतक केवल दो शब्द लिखे थे और वे शब्द थे ‘ॐ राम:’ ! मैंने साधु महाराज से पुछा, ‘‘इसका क्या अर्थ है ?’’ तो वे बोले, ‘‘अनेक ग्रंथ पढकर भला क्या करेंगे ? एक परमेश्वरसे ही तो वेद एवं पुराणोंकी रचना हुई है । प्रभु तथा उनके नाम दोनों एक ही हैं; इसलिए चार वेद, छ: शास्त्र, अट्ठारह पुराण इनमें जो ज्ञान है वह संपूर्ण ज्ञान प्रभु के एक नाम में ही समाया हुआ है ! इसलिए हम प्रभु के नाम को ही पकडकर बैठे हैं ।’’ इस प्रकार से साधु महाराज को प्रभु के नाममपर पूर्ण विश्वास था !
इस प्रकार संत रामकृष्ण परमहंस ने साधु महाराज के उदाहरण से अपने भक्तगणों को नामजाप की महिमा बताई ।
बच्चो, इस उदाहरण से निश्चित ही आपको नामजप करने का महत्त्व समझ में आ गया होगा । प्रत्येक कृत्य को करते समय मन ही मन नामजप करने से हम अखंड रूप से प्रभु के सान्निध्य में रहते हैं !