बालमित्रो, अक्कलकोट के स्वामी समर्थजी भगवान दत्तात्रेय के तीसरे अवतार हैं । उन्होंने अनेक भक्तोंपर कृपा की है । उनमें से एक हैं, आज की कथा के गरीब ब्राह्मण-
श्रीगुरुजी भिलवडी से कुरवपूर क्षेत्र में आए । कुरवपूर को पंचगंगा एवं कृष्णा का संगम है । इस क्षेत्र को दक्षिण काशी कहते हैं । श्रीगुरुजी नित्य दोपहर में अमरपुर में भिक्षाटन के लिए जाते थे एवं सच्चे भक्तोंपर कृपा करते थे ।
अमरपुर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था । वह प्रतिदिन गांव में भिक्षा मांगता था । जो मिलता उसमें आनंद से रहता । घरपर आए अतिथियों की वह पूजा कर उन्हें घर में जो है, उसकी भिक्षा देता था । उसकी पत्नी भी घर आए अतिथि को बिना कुछ दिए नहीं लौटाती थी । भिक्षान्न, अतिथिसेवा एवं ईश्वर के भजन में वे अत्यधिक सुखी थे ।
एक समय श्रीगुरु उस ब्राह्मण के घर भिक्षा के लिए गए । ब्राह्मण भिक्षा के लिए बाहर गया था । भिक्षा देने के लिए घर में कुछ भी नहीं था । उस ब्राह्मण की पत्नी ने श्रीगुरु को आसन दिया, उनकी पूजा कीr; परंतु अब उन्हें भिक्षा में क्या देना है, यह विचार करने लगी । घर में तो कुछ भी नहीं था । अत्यधिक विचार करनेपर उसे एक युक्ति सूझी । उसके दरवाजेपर सेमकी एक बडी बेल थी । उसमें अत्यधिक फल्लियां लगी थीं । उस ब्राह्मणकी पत्नीने वह फल्लियां तोडीं, उसकीr भाजी बनाई एवं वह श्रीगुरु को परोसा । श्रीगुरु प्रसन्न हो गए ।’ तेरे दारिद्र्य का निर्मूलन हो गया’, ऐसा आशीर्वाद दिया एवं लौटते समय उन्होंने सेमका जड छांट डाला ।
श्रीगुरुद्वारा सेमकी जड कटा देखकर वह स्त्री दुखी होकर रोने लगी । कुछ समय पश्चात् ब्राह्मण के घर लौटनेपर उसने ब्राह्मण को सब घटना सुनाई । वह ज्ञानी ब्राह्मण बोला, ”श्रीगुरु ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है, उसपर विश्वास रखो!”
सेमका बेल तो श्री गुरु ने छांटा था, अब वह पूर्ण उखाडने हेतु उस ब्राह्मण ने कुदाली लेकर सेमका जड उखाडने का आरंभ किया और उसे अत्यंत आश्चर्य हुआ ! उस बेल की जड उखाडते समय उस ब्राह्मण को धन का एक घडा मिला ! यह देखकर उन्हें अत्यधिक आनंद हुआ । वे दोनों श्रीगुरु के पास गए, उनकी पूजा की एवं सारी घटना सुनाई ।
बालमित्रो, अतिथिसेवा करने से एवं भक्तिभाव से दी हुई किसी भी वस्तु से परमेश्वर प्रसन्न होता है, यह इस कहानी से आपके ध्यान में आया ही होगा ।