‘एक बार बाबा (संत भक्तराज महाराज) पंढरपूर गए थे । हम सर्व होळकर निवास में बैठे थे । उस समय श्रीविठ्ठल मंदिर के पुजारी वहां आएं । वे बोले, ‘‘आज बृहस्पतवार तथा एकादशी है । इसलिए आप के हाथों श्री विठ्ठल को पुष्पहार एवं पेडे का भोग चढाना है ।’’ इसपर बाबाने कहां, ‘‘ठीक है । यदि आपकी इच्छा है, तो वैसा ही करेंगे ।’’ पुजारी ने कहां, ‘‘श्रीविठ्ठल के दर्शन करने का समय रात्रि के १० बजे है ।’’
पश्चात मंदिर के पुजारी ने हमें उनके घर भोजन के लिए आने का निमंत्रण भी दिया । हम उनके यहां भोजन के लिए गए । भोजन करते समय पुजारी अपने पुत्र से बोले कि ‘‘पुष्पहार और पेडा ले आओ ।’’ इतने में बाबा ने कहा, ‘‘इतने उतावले क्यों हो रहे हो ?’’ पुजारी बोले, ‘‘महाराज, यहां साढे आठ बजे सर्व दुकान बंद होते हैं इसलिए मैं उसे शीघ्र जाने के लिए कह रहा हूं ।’’ इसपर बाबा ने कहा, ‘‘यदि उसने (श्रीविठ्ठल ने) हमें १० बजे दर्शन का समय दिया है और यदि उन्हें हमारे हाथों पुष्पहार का स्वीकार करना है, तो वे ही दुकान खुली रखेंगे और यदि दुकान बंद मिली, तो उसमें खेद की कोई बात नहीं । केवल हाथ जोडेंगे ।’’
हम पौने दस बजे पुजारी के घर से निकले । उनके घर के सामने ही विठ्ठल का मंदिर है ।रात्रि के पौने दस बजे मिष्टान्न की और हार की दुकान खुली देखकर पुजारीआश्चर्यचकित हो गए । पेडे की पुडिया और हार लेकर हम मंदिर गए ।
परम पूजनीय बाबा श्रीविठ्ठल के सामने खडे हुए । हम सर्व भक्त उनके निकटखडे हो गए । बाबाने श्रीविठ्ठल के गले में हार पहनाया और पुडियामें से एक पेडा निकालकर श्रीविठ्ठल के मुख में लगाया । (मुख के समीप ले गए) तब आधा पेडाअचानक अदृश्य हो गया । बाबा का मुखमंडल लाल-सा हो गया ।
उनके निकट खडे पुजारी बोले, ‘‘शेठजी, इस प्रकार पेडा मूर्ति के इतने निकट नहीं लाते ।’’ पुजारीओं ने सर्व पुष्पहार दूर किए । तत्पश्चात भी उन्हें पेडा कही नहीं मिला ।बाबा ने श्रीविठ्ठल चरणों को छुआ, तब उन्हें आधा पेडा दाहिने चरण के पास मिला ।बाबा ने वह पेडा हम भक्तों को दिया । तदुपरांत बाबा शीघ्रता से होळकर के भवन कब गए,यह हमें पता ही नहीं चला । भवन में जाने के पश्चात बाबा खंबे के निकट रखे (आसन)कुरसी में बैठे । उनका मुखमंडल लाल-सा दिख रहा था । वे किसी से बात करने की स्थिति में नहीं थे । तब मैंने बाबा से जाकर पूछा, तो उन्होंने भजन करने का संकेत दिया ।हमने भजन करना आरंभ किया । भजन के समय फूट-फूटकर रोने की ध्वनि सुनाई दी । बाबा की ओर देखनेपर वे भाव विभोर अवस्था में दिखाई पडे । तब पवारजी ने हमें आरती करने के लिए कहा । इसलिए हमने आरती की । तदुपरांत बाबा विश्राम करने के लिए गए। दूसरे दिन बाबा ने हमें बताया कि ‘‘होळकरजी के यहां आनंदाश्रु एवं दुःखाश्रु आए थे ।मेरे गुरु की कृपा से मुझे प्रत्यक्ष श्रीविठ्ठल के दर्शन हुए और मैंने उन्हें पेडा खिलाया इसलिए आनंदाश्रु आए । दुःखाश्रु इस विचार से आए कि श्रीविठ्ठल ने पाषाण की मूर्ति से सगुण रूप में आकर मुझे दर्शन दिए । परमेश्वर को पाषाण से अवतीर्ण होने के लिए कितने कष्ट हुए होंगे !
दूसरे दिन प्रात: छ: बजे ही सभी भक्तगणोंसहित बाबा ने पंढरपूर से प्रस्थान किया, कारण उन्हें प्रसिदि्ध का मोह नहीं था ।’
– श्री. बापू जोशी, ठाणे.