हर एक बालक प्रतीक्षा करता है की कब हमारी परिक्षा हो जाए और कब हमारा अभ्यास ख़त्म हो रहा है | हर एक बालक अभ्यास करते करते वही पाठ्य पुस्तक में वही परिच्छेद पढ पढ कर ऊब जाता है | परिक्षा ख़त्म होते ही कही बाहर जाना और आनंद लेना चाहता है | परिक्षा काल में घर घर में ऐसे ही संवाद पालकों से और विद्यार्थीयों से से सुनने को मिलते है | यही आजकल का अभ्यास क्रम और विज्ञान का अपयश है | अभ्यास करने से बालक आनंदित होते है ऐसे दृश्य तो देखने के लिये मुस्किल हो गया है |
इसके विरुद्ध बात है अध्यात्म की, जहा प्राचीन गुरुकुल का दृश्य तो स्मरण करो ! स्मरण करते ही मन आनंदविभोर हो जाता है | क्योंकी गुरुकुल में हिन्दू धर्मं सम्बन्धी आचार और विचारों का, हिन्दू धर्मं में जो शास्त्र प्रमाण के अनुसार उसको अत्याधिक महत्त्व प्रदान कर के ईश्वर, ऋषी गण के कृपा से अध्ययन और अध्यापन किया जाता है | इसके कारण ही सभी परिसर चैतन्य से भर जाता है | लेकिन आज यह सभी शिक्षा व्यवस्था समय के साथ नष्ट हो गयी है, यह बड़ी दुर्भाग्य की बात है |
अध्यात्म के विषय में जो ग्रन्थ, संत चरित्र, देव देवताओं की पौराणिक कथा या संत वचनो के माध्यम से किया गया मार्गदर्शन उपदेश पुनरावृत्त करते है तो प्रतिदिन आनंद ही आनंद मिलता है | कभी भी उसका ऊब नहीं आता | ये ग्रन्थ चैतन्य के स्त्रोत है | इसके कारण हमारी बुद्धि शुद्ध हो जाने से आनंद मिलता है | इसलिए संत चरित्र का वाचन पठन हमें नित्य नूतन अर्थ की प्रचिती देता है | ऐसा क्यों होता है, क्योंकि इस ग्रंथो का वाचन पठन करने से स्थूल देह, मनोदेह, कारण देह और महाकारण देह की अंतर शुद्धी होती है और उस देह पर उसका असर होने पर मन और बुद्धी को संत चरित्र से मिलनेवाला भावार्थ निराला होता है | इसलिए दिन प्रतीदिन निराला ही आनंद प्रतीत होता है |
विज्ञान चैतन्य रहित होता है | इसलिये वह तो केवल परीक्षार्थी होने के कारण परीक्षार्थीयो के मन पर एक तरह का तान यानी टेंशन आता है | लेकिन अध्यात्म नित्य नूतन और चैतन्यमय होने के कारण अध्यात्म हर दिन भक्त और भाविकों को नित्य नूतन आनंद प्रदान करता है | वाचन में जितना आप सखोल जाओगे उतना आनंद द्विगुणित होने का समाधान मिलता है | उसके पठन की अरुची होती है, यह संत चरित्र कब पढके खत्म होगा ऐसे किसी को कहते हुए नहीं सुना है | संत चरित्र का प्रभाव भी ऐसा ही होता है, क्योंकी संत चरित्रों में चैतन्य होता है, उनके शब्द अनुभूती देते है |
आप सभी को आवाहन करती हूँ की पुन: एकबार, हमें अपनी प्राचीन गुरुकुल शिक्षण व्यवस्था भारत में लाने के लिए कटिबद्ध होकर, आनेवाली पीढी के लिए चैतन्य और ईश्वरी कृपा का आनंद अनुभव करने के लिए सिद्ध हो जाए |
– सौ. अंजली गाडगीळ, रामनाथी, गोवा. (चैत्र पौर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११३)