१ अ. धनिया-जीरे का कशाय : चाय की तुलनामें धनिया-जीरे का कशाय पीना अच्छा है ।
१ आ. सौंफ इत्यादि का कशाय : प.पू. गोंदवलेकर महाराजजी के संप्रदाय में निम्नलिखित औषधीय पदार्थों का प्रयोग कर कशाय बनाने की प्रथा है । सौंफ, धनिया, जीरा, अजवाइन, सुवासौंफ, गोखरू, वायविडंग, सोंठ एवं मुलेठी इन वस्तुओं को सम मात्रा में लेकर हलका भूनकर पीस लें । प्रतिदिन काढा बनाने के लिए एक कप पानी में पौन चम्मच यह चूर्ण डालकर उबाल लें एवं कशाय को छानकर उष्ण ही पीएं । उसमें शक्कर, नमक, दूध इत्यादि कुछ नहीं डालना पडता ।
१ इ. लाभ : यह काढा पेट के लिए बहुत अच्छा है । इसमें सौंफ एवं धनिया पेट साफ रखने में उपयोगी हैं, जीरा शरीर की उष्णता घटाता है, अजवाइन से पेट में वायू (गैस) नहीं बनती, वायविडंग से कृमि नहीं बनते, सोंठ से कफ नहीं बनता एवं मुलेठी से काढे में मिठास आती है तथा गला भीतर से स्वच्छ रहता है ।
तुलसी का काढा
ऋतु के अनुसार विशिष्ट औषधीय वनस्पतियों का काढा पीना आरोग्य के लिए लाभकारी होता है । वर्षाऋतु में एवं ठंड के दिनों में तुलसी का काढा आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर पी सकते हैं । इस काढे में दूध न डालें । वर्षाऋतु में एवं ठंड के दिनों में तुलसी का काढा लेने से सर्दी, खांसी, ज्वर इत्यादि विकार नहीं होते । तुलसी विषनाशक है । अतः इसके सेवन से शरीर में फैले विषैले द्रव्यों का नाश होता है तथा पाचन सुधरकर अच्छी भूख लगती है ।
तुलसी का काढा बनाने की पद्धति
मंजरियोंसहित तुलसी के २५-३० पत्ते १ प्याले पानी में उबालें । पानी में उबाल आनेपर चूल्हे की गैस बंद कर दें । काढा छानकर उष्ण ही पीएं, उसमें आवश्यकतानुसार शक्कर डालकर अथवा बिना डाले पीएं । तुलसी का काढा बनाने से ३ घंटे पहले तुलसी के पत्ते पानीमें भिगोकर रखने से काढे में तुलसी का अर्क ठीक से उतरता है । सुबह-सायंकाल काढा बनानेवाले हों, तो एक बार प्रयुक्त पत्तों में थोडे नए पत्ते डालकर काढा बना सकते हैं ।
आयुर्वेद में बताई दिनचर्याओं का पालन करने में अतिरिक्त समय नहीं देना पडता । ऐसी दिनचर्या का प्रतिदिन पालन करने से हम अनेक रोगों को अपने से दूर रखकर जीवन का अमूल्य समय साधना में लगा सकते हैं ।
– वैद्य मेघराज पराडकर, आयुर्वेदाचार्य, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१६.१२.२०१३)
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात