माता पार्वती ने भगवान शंकर की प्राप्ति हेतु तपश्चर्या की । भगवान शंकर प्रकट हुए तथा उन्होने माता पार्वती को दर्शन दिया । उन्होंने पार्वती से विवाह करना स्वीकार किया तथा वे अदृश्य हो गए । इतने में कुछ अंतरपर तालाब में मगरमच्छ ने एक लडके को पकड लिया । लडके के चिल्लाने की आवाज आई । माता पार्वती ने ध्यान से सुना, तो वह लडका अत्यंत दयनीय स्थिति में चिल्ला रहा था, ‘‘ बचाओ .. मेरा कोई नहीं है … बचाओ .. !’’ लडका चिल्ला रहा है, जोर से रो रहा है । माता पार्वती का हृदय द्रवित हो गया । वह उधर पहुंची । उसने देखा, ‘एक लडके का पांव मगरमच्छ ने पकडा है तथा वह उसे घसीटकर ले जा रहा है ।’ लडका रोते हुए चिल्लाता है, ‘‘मेरा इस दुनिया में कोई नहीं । मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र । मेरा कोई नहीं । मुझे बचाओ !’’
पार्वती ने कहा, ‘‘हे ग्राह ! हे मगरमच्छदेवता ! इस लडके को छोड दो । ’’
मगरमच्छ : दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझकर स्वीकार करना, मेरा नियम है । ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर में इस लडके को मेरे पास भेजा है । मैं इसे क्यों छोडूं ?
माता पार्वती : हे मगर, तुम इसे छोड दो । इसके बदले में तुम्हें जो चाहिए वह ले लो ।
मगरमच्छ : तुमने जो तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया तथा वरदान मांगा, यदि उस तप का फल मुझे दोगी, तो ही मैं इस लडके को छोड सकता हूं अन्यथा नहीं ।
माता पार्वती : क्या बात कर रहे हो ! केवल इस जन्म का नहीं, अनेक जन्मों की तपश्चर्या का फल तुम्हें अर्पण करने हेतु सिद्ध हूं, किंतु इस लडके को छोड दो ।
मगरमच्छ : सोच लो, जोश में आकर संकल्प मत करो ।
माता पार्वती : मैंने सोच लिया है ।
मगरमच्छ ने माता पार्वती से तपदान करने का संकल्प करवाया । तपश्चर्या का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा । उसने लडके को छोड दिया तथा बोला, ‘‘हे पार्वती, तुम्हारी तपश्चर्या के प्रभाव से मेरा देह कितना सुंदर बन गया है, मैं तेजस्वी बन गया हूं । अपने जीवन भर की पुंजी तुमने एक छोटे बच्चे को बचाने हेतु अर्पण की !’’
माता पार्वतीने उत्तर दिया, ‘‘ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं; किंतु यदि तुम इस लडके को निगल जाती, तो क्या ऐसा निर्दोष लडका वापस मिल जाता ?’’ देखते ही देखते वह लडका अदृश्य हो गया । मगरमच्छ भी अदृश्य हो गया । पार्वती ने विचार किया, ‘ मैंने मेरे तप का दान किया है । अब पुन: तप करती हूं ।’ पार्वती तप करने बैठी । थोडा ध्यान किया, तो भगवान शिव फिर से प्रकट होकर बोले, ‘‘पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो ?’’ माता पार्वती ने कहा, ‘‘प्रभु ! मैं ने तपश्चर्या का दान किया है । ’’
भगवान शंकर ने कहा, ‘‘पार्वती, मगरमच्छ के रूप में मैं ही था तथा लडके के रूप मे भी मैं ही था । तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में आत्मियता का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने हेतु मैंने यह लीला रचाई । अनेक रूपों में दिखनेवाला मैं एक ही एक हूं । मैं अनेक शरिरों में, शरिरों से अलग अशरिरी आत्मा हूं । प्राणिमात्र में तुम्हारा आत्मियता का भाव धन्य है । ’’
संदर्भ : मासिक ऋषीप्रसाद, फेब्रुवारी २००९