वर्तमान समय में अभ्यास की तकनीक लडकों एवं अभिभाव कों को ज्ञात होना आवश्यक है । अनेक अभिभावक अपने लडकों को प्रश्नोत्तर कंठस्थ करने के लिए कहते हैं । ऐसा करने से, आगे चलकर उन्हें विषय को समझने का नहीं, उन्हें कंठस्थ करने का व्यसन (आदत) लग सकता है । कंठस्थ की हुई सभी बातें पूर्णतः स्मरण में नहीं रहतीं । वहांपर विषय का विस्तार अधिक होता है । इसलिए, विषय को समझना, उसके महत्वपूर्ण सूत्रों को लेखनी से (पेन्सिल से) अधोरेखित करना, महत्वपूर्ण सूत्रों की टिप्पणियां बनाना तथा उसका उपयोग करना, अभ्यास की तकनीक की दृष्टि से उपयोगी होता हैं । यदि तकनीक के अनुसार अभ्यास करने की आदत बाल्यावस्था में लग जाए, तो लडके महाविद्यालय में पठित विषयों के नोट स्वयं बना सकते हैं । कुंजी (गाइड) पढने के स्थान पर अपने बनाए नोट अच्छे से स्मरण में रहते हैं । दिग्दर्शिका में प्रश्नों के उत्तरों की पुनरावृत्ती होती है तथा इसे पढने में समय भी अधिक लगता है । पाठ्य़पुस्तक पढने का संस्कार हो जाए, तो इसे पढने में अल्प समय लगता है ।
अभ्यास की पद्धति कैसे विकसित करें ?
१. विद्यालय में नया पाठ पढाने से पहले लडकों को उसे स्वयं पढने के लिए कहें ।
२. पाठ पढने के उपरांत शिक्षकों से प्रश्न कर अपनी शंकाओं का समाधान करना आवश्यक है । ऐसा करने के लिए लडकों को प्रेरित करें ।
३. घरपर पाठ पुन: पढने के लिए कहें ।
४. उसके पश्चात पठित विषय के महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपनी बुद्धि से सोचकर लिखने के लिए कहें ।
५. परीक्षा के समय अपने प्रयास से निकाले हुए विषय-बिंदुओं को (नोट) पढने में लडकों की रुचि होनी चाहिए ।
६. प्रश्न-उत्तर का अभ्यास लिखकर करने के लिए कहें ।
७. लिखकर किया हुआ अभ्यास लंबे समय तक स्मरण में रहता है ।
अभ्यास करते समय चलचित्र (पिक्चर) जितनी रुचि से देखते हैं, उतनी रुचि से अभ्यास करना भी आवश्यक है ।
यह मैं अपने अनुभव से बोल रही हूं । मेरे बेटों ने इसी पद्धति से अभ्यास किया था । इसलिए, नौकरी लगने के पश्चात आज भी, शालेय पाठ्यपुस्तकों का अभ्यास उनके मन में जीवित है । अभ्यास करते समय अभिभावक यदि दूरदर्शन संच (टीवी सेट) चालू न कर लडके के निकट बैठें, तो उसे एकाग्रतापूर्वक अभ्यास करने में सहायता होगी । अनेक बार, ‘माता-पिता मुझसे अभ्यास करवाते हैं’, यह भावनात्मक सुरक्षा लडकों को सफल बनाती है ।
– प्रा. कुंदा कुलकर्णी, नाशिक.