श्री. लालबहादुर शास्त्रीजी कारावास में थे । कारागृह में कडा पहरा था । किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं दी जा रही थी । कठोर प्रयासों के उपरांत उनकी माता रामदुलारी अथवा पत्नी ललितागौरी इनमें से किसी एक को उनसे मिलने की अनुमति मिल पाई । जब उनकी पत्नी उन्हें मिलने के लिए कारागृह में आई, तो केवल नाम पूछकर बिना जांच-पडताल के उन्हें भीतर छोडा गया । शास्त्रीजी से बातचीत करनेपर जाने से पहले छुपाकर लाए हुए दो आम उन्होंने अपने पती को सौंप दिए । वे शास्त्रीजी से बोली, ‘‘आपको प्रिय है, इसलिए छुपाकर लाई हूं । ’’
इसपर शास्त्रीजी ने कहा, ‘‘मुझे यह बहुत अनुचित लगा । तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए था । उन्होंने तुमपर विश्वास रख बिना जांच-पडताल के भीतर भेजा था; परंतु तुमने उनका विश्वासघात किया है । मुझे क्या प्रिय है इसके पहले मुझे क्या प्रिय नहीं है, इसका विचार तुम्हे करना चाहिए था । मुझे कारागृह के नियमों को तोडना उचित नहीं लगेगा । आम वापस ले जाओ । इसको ही खरी तत्त्वनिष्ठता कहते है !
संदर्भ : साप्ताहिक जय हनुमान, २०.७.२०१३