भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्रीजी सरलता और महानता की प्रतिकृति थे ! उनके जीवन के अनेक प्रसंग प्रेरणाप्रद हैं । जब वे देश के प्रधानमंत्री थे तब की बात है । एक दिन वे कपडों की मिल देखने के लिए गए । उनके साथ मिल के स्वामी, उच्च अधिकारी तथा अन्य प्रशासकीय लोग थे । मिल देखने के उपरांत वे मिल के गोदाम में गए और वहां उन्होंने सुंदर साडियां दिखाने के लिए कहा । मिल के स्वामी और अधिकारियों ने उन्हें एक से बढकर एक साडियां दिखाई । शास्त्रीजी साडियां देखकर बोले, ‘‘साडियां तो बहुत सुंदर है, इनका क्या मूल्य है ?’’
‘‘यह साडी ८०० रुपयों की है और इसका मूल्य एक सहस्र रुपए है ।’’ मिल के स्वामी ने कहा । इसपर शास्त्रीजी बोले, ‘‘यह तो बहुत महंगी है ! मुझे अल्प मूल्य की साडियां दिखाइए ।’’ यहांपर यह ध्यान में लेना चाहिए की प्रस्तुत घटना १९६४ की थी । उस समय एक हजार रुपयों का मूल्य अधिक था ।
‘‘अच्छा, यह देखिए, यह साडी पाच सौ रुपयों की है और यह चार सौ रुपयों की है’’ मिल का स्वामी दूसरी साडियां दिखाते हुए बोला । ‘‘अरे भाई, ये भी बहुत महंगी हैं ! मेरे जैसे निर्धन को अल्प मूल्यों की साडियां दिखाइए, जो मैं खरीद सकूंगा ।’’ शास्त्रीजी ने कहा । ‘‘वाह, सरकार ! आप तो हमारे प्रधानमंत्री है । आपको निर्धन कैसे कह सकते है ? हम तो आपको यह साडियां उपहार में देना चाहते है !’’ मिल के स्वामी ने कहा ।
‘‘नहीं भाई, मैं तुम से उपहार नहीं ले सकता ।’’ शास्त्रीजी ने कहा । इसपर उस मिल के स्वामी ने अधिकार से कहा, ‘‘अपने प्रधानमंत्री को उपहार देना, यह हमारा अधिकार है ।’’
‘‘हा मैं प्रधानमंत्री हूं ।’’ शास्त्रीजी ने शांततापूर्वक कहा । ‘‘परंतु, इसका अर्थ यह नहीं की जिन वस्तुओं को मैं खरीद नहीं सकता उनका मैं उपहार के रूप में स्वीकार करूं और अपने पत्नी को दे दू । भले ही मैं प्रधानमंत्री हूं, तब भी हूं निर्धन ही न ? आप मुझे सस्ती साडियां दिखाइए । मेरी क्षमता के नुसार ही मैं साडी खरीदूंगा ।’’
मिल के मालिक विनती करते रहे, परंतु देश के प्रधानमंत्री ने सस्ती साडियां ही खरीदीं और उन्हें पत्नी को भेंट की ।
इससे हमें ध्यान में आता है, कि शास्त्रीजी देश के प्रधानमंत्री थे, इतने उच्च पदपर थे, परंतु उनको किसी भी वस्तु का मोह नहीं था और वे अपने अधिकार का गलत उपयोग भी नहीं करते थे । उन्होंने कभी भी अपने प्रधानमंत्री होने का अनुचित लाभ नहीं उठाया ।
बच्चों, इससे हमने क्या सीखा ? व्यक्ति कभी महंगे वस्त्र और वस्तुएं उपयोग करने से महान नहीं होता, अपितु उसके उच्च विचार और अच्छा आचरण उसे महान बनाते हैं । हम भी लालबहादुर शास्त्रीजी के समान अपनी जीवन-पद्धति सरल रखकर आदर्श आचरण से अच्छे व्यक्ति बनने का प्रयास करेंगे ।