‘भारतीय समाज में जिन्हें कनिष्ठ तथा अपराधी माना जाता है ऐसी ‘रामोशी’ नामक जाति में जन्में उमाजी नाईक थे । जिनकेद्वारा ‘हम चोर नहीं अपितु क्रांतिकारी हैं’ ऐसा कडा संदेश अंग्रेजों को भेजकर एक देशव्यापी क्रांति का स्वप्न देखा गया और उसके लिए आजीवन प्रयास किए गए, उनका यह कार्य देखकर ऐसा लगता है कि यह घटना देश के राजकिय एवं सामाजिक इतिहास में मन को कचोटनेवाली घटना रही है ।
‘डाका डालकर धन मंदिर, निर्धन एवं ब्राह्मणों में बांटनेवाले उमाजी नाईक !
पैसों के संदर्भ में उमाजी नाईक का वर्तन एक अनोखा प्रकार था ।उमाजी पैसे पाने के लिए ही डकैती करते थे और उन्हें विपुल धन की प्राप्ति भी होती थी । इसलिए निश्चित ही उन्होंने विपुल द्रव्यसंचय किया होगा, यह ग्राह्य रखते हुए जब न्यायाधीश मॅकिंटॉश ने उन्हें उनकी संपत्ति के विषय में बार-बार पूछा तो,तो उमाजीने कहा कि उनके पास कुछ भी नहीं बचा है । उनकी पत्नी ने भी यही साक्षीय दी ।इसका कारण यह था कि डकैती से प्राप्त पैसा उमाजी तुरंत साथियों में बांट देते थे । वे अपने हिस्से का धन भी नहीं बचाकर रखते थे । मंदिरों की देखभाल, गोसावी, बैरागी, ब्राह्मण आदि को वे सदैव दान देते थे । यदि कोई निर्धन उनके पास कुछ मांगने के लिए आए, तो वह खाली हाथ नहीं लौटता था । यदि देने के लिए कुछ न हो, तो ऐसी कठिण स्थितियों में उमाजी अपने कपडे भी उतारकर उन्हें देते थे !इतना ही नहीं, कभी-कभी अपनी पत्नी को भी कपडा देने के लिए कहते थे ।
एक मनुष्य के रुप में उमाजी ऐसे थे ! इसलिए भले ही एक ओर से उनका भय क्यों न लगे परंतु दूसरी ओर से वे लोगों को क्यों प्रिय लगते होंगे, यह सहजता से ध्यान में आ सकता है ।
सुधाताई धामणकर (‘सदाचार आणि संस्कृती मासिक’, अगस्त २००८)