छ. शिवाजी महाराज, संत तुकाराम महाराज और स्वामी विवेकानंद के भी प्रिय श्रेष्ठवीर और स्वामी सेवातत्पर श्री हनुमान !
१. छत्रपति शिवाजी महाराज के कोट, दुर्ग और किलों के महाद्वारों में हाथ में गदा लिए खडे महाबली हनुमान की मूर्ति होना ।
‘छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्य की सुरक्षा के लिए निर्माण किए हुए कोट, दुर्ग और गडों के महाद्वारोंपर महाबली हनुमान हाथ में गदा लिए खडे दिखाई देते है । कर्तव्यपरायण, राजनिष्ठ, स्वामी सेवातत्पर और यशस्वी ऐसे ये रामदूत युद्धप्रिय तथा क्षात्रवृत्ति के वीर मराठों को वंदनीय एवं प्रिय है !
२. संत तुकाराम महाराज ने हनुमानजी से ‘मुझे भक्ति के मार्ग दिखाइए’ ऐसी विनती करना ।
संतशिरोमणी तुकाराम महाराज भी अपने एक अभंग में (दोहे में) हनुमानजी को विनती करते है,
शरण शरण जी हनुमंता ।
तुज आलों रामदूता ।
काय भक्तीच्या त्या वाटा ।
मज दावाव्या सुभटा ।।
– तुकाराम गाथा, अभंग ३२८३, ओवी १, २
अर्थात ‘हे श्रीहनुमान, आप प्रभु राम के सेवक हो; इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूं । (ऐसा वे दो बार कहते हैं ।) हे श्रेष्ठवीर, मुझे भक्ति के मार्ग कौनसे हैं, यह दिखाइए । वे हनुमानजी को ‘सुभटा’ अर्थात ‘उत्तम वीर’की उपाधि देकर उन्हें सम्मानित करते है !
३. स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों को हनुमानजी की कथाएं सुनाकर उन्हें प्रेरित करते थे ।
– डॉ. (श्रीमती) सुमेधा प्रभाकर मराठे
संदर्भ :मासिक ‘हितगुज’, अंक ८९, मार्च २०१२