वर्षों पहले की बात है । एक बालक की कांख में फोडा हो गया था । उस समय गांवों में फोडे को गर्म सलाख से जलाकर ही ठीक किया जाता था । तब ऑपरेशन जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी । वह बालक अपने पिता के साथ लुहार के पास पहुंचा। लुहार ने सलाख को लाल-लाल होने तक गरम किया । किंतु जैसे ही उसने तपती हुई सलाख हाथों में ली, बालक का मासूम चेहरा देखकर रुक गया ।
इस पर बालक क्रोधित होकर गरजा – ‘‘क्या देख रहे हो ? सलाख ठंडी हो जायेगी । जल्दी करो ! इस फोडे को जला दो ।
अब तो उस लुहार का हाथ डर से कांपने लगा । यह देखकर उस बालक ने वह गर्म सलाख उसके हाथ से छीन ली और अपने फोडे को बेहिचक लगा दी ।
फोडा जल गया । यह दृश्य जिसने भी देखा, वह सिहर उठा । सब लोगों को आश्चर्य लगा । पर बालक के चेहरे पर दर्द की कोई रेखा नहीं थी ।
कौन था वह साहसी बालक ? मित्रो, आगे चलकर वही बालक ‘भारत के लौह-पुरुष के नाम से जगप्रसिद्ध हुआ । उस वीर, साहसी बालक का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नडियाद गांव में हुआ था । पिता श्री झवेरभाई व माता लाडबाई ने उसका नाम ‘वल्लभभाई रखा । १८५७ के स्वातंत्र्य-समर में युवा झवेरभाई ने बडी वीरता के साथ अंग्रेजों को चुनौती दी थी । वल्लभभाई के बडे भाई विट्ठलभाई भी प्रसिद्ध देशभक्त थे । बालक वल्लभ को निर्भयता व वीरता के संस्कार तो खून में ही मिले थे ।
उस बालक की निर्भयता से जहां बडों के सिर हर्ष व गर्व से ऊंचे उठ जाते थे, वहीं छोटे भी उन्हें बहुत चाहते थे । स्वभाव से ही वे अन्याय के खिलाफ थे ।