१. यूरोपीय और अरेबियन भाषाओं का संस्कृत भाषा से साधम्र्य ! – विल्यम जोन्स, ‘वेल्श’ विद्वान
‘इ.स. १७८३ में विल्यम जोन्स नामक ‘वेल्श’ (वेल्श, ‘ग्रेट ब्रिटन’का एक वंश है ।) विद्वान कोलकाता में न्यायाधीश के पदपर नियुक्त हुआ । ग्रीक, लैटीन, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, अरेबियन और फारसी भाषाओं से वह पहले से ही अवगत था । भारत में आते ही उसने संस्कृत भाषा सिखना आरंभ किया । संस्कृत सिखते समय उसके ध्यान में आया कि, ‘यूरोप की ग्रीक, लैटीन भाषाएं, मध्य एशिया की अरेबियन, फारसी भाषाएं और भारत की संस्कृत भाषा एक-दूसरों से दूर होकर भी उनमें साधर्म्य है । इन भाषाओं का मूलस्रोत एक ही भाषा है और इतिहासक्रम में इनमें धीरे-धीरे परिवर्तन आया, जिससे कि वे उसके परिवर्तित एवं सुधारित संस्करण हैं ।’
२. ग्रीक, लैटीन, फारसी इत्यादि भाषा एंजिस मूल भाषा से उत्क्रांत हुई, वह मूल भाषा है,संस्कृत !- जर्मन विद्वान प्रेडरिक श्वेगेल
जोन्सद्वारा कोलकातामें स्थापित ‘एशियाटिक सोसायटी’का सदस्य अलेक्झांडर हॅमिल्टन, जोन्स जैसा ही संस्कृत भाषा का प्रेमी था । पैरीस में युद्धबंदी के रूप में रहते समय वहां प्रेडरिक श्वेगेल नामक जर्मन विद्वान से उसकी निकटता हुई ।
हॅमिल्टनने श्लेगेल को संस्कृत के पाठ पढाएं । इ.स. १८०८ में श्लेगेलने भारतीय संस्कृति और संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, फारसी और जर्मन इन भाषाओं के अंतर्गत समान शब्द ढूंढकर ऐसा कहा कि, ‘ये सर्व भाषाएं जिस मूल भाषा से उत्क्रांत हुई, वह मूल भाषा अन्य कोई नहीं, अपितु संस्कृत ही है ।’
३. आसाम के राज्य संग्रहालय के मुख्य संचालक डॉ. एस्. अहमद के संस्कृतविषयक विचार !
आसाम के राज्य संग्रहालय के मुख्य संचालक डॉ. एस्. अहमद, संस्कृत प्रेमियोंमें से एक थे । गुवाहाटी विद्यापिठसे अहमदने संस्कृतमें पी.एच्.डी. संपादित की है । उर्दू और संस्कृत इन भाषाओंसहित और कुछ भाषाओं का भी अहमद का प्रगाढ अध्ययन है । संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए दिया जानेवाला पं. माखन प्रसाद दुआरा पुरस्कार वर्ष २००७ में अहमद को प्रदान किया गया । उनके संस्कृतविषयक विचार आगे दिए गए हैं ।
अ. ‘संस्कृति, तत्त्वज्ञान, गणित, चिकित्सा अथवा युद्धशास्त्र जैसे विषयों का जितना भी अध्ययनयोग्य वाङ्मय संस्कृत में उपलब्ध है, उतना अन्य किसी भी भाषा में नहीं है ।
आ. संस्कृत के अध्ययन से बच्चों को नैतिक और आध्यात्मिक बल प्राप्त हो सकता है । वर्तमान युवा पिढी को इस शक्ति की नितांत आवश्यकता है । इसलिए विद्यालयीन जीवन से ही संस्कृत का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए ।
इ. भारत का सर्व प्राचीन वाङ्मय, शिलालेख संस्कृत में लिखे हैं, इसलिए भारतीय इतिहास समझने के लिए भी संस्कृत का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है ।
ई. संस्कृत केवल भारतियों की, केवल हिंदु संस्कृतिवालों की भाषा नहीं है । संस्कृत इंडोनेशियामें भी लोकप्रिय है । जापान में उसके प्रति आकर्षण है और जर्मनी एवं अमेरिका में भी उसके अभ्यासकों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।
संदर्भ : दैनिक लोकसत्ता, (२८.१२.२००७)