अभ्यास करते समय स्वयंमें गुण कैसे आ सकते हैं अथवा जो गुण हैं उन्हें वृद्धिंगत कैसे कर सकते हैं, इस संबंधमें ध्यानमें आए सूत्र दे रहे हैं ।
१. व्यावहारिक गुण कैसे ग्रहण होते हैं ?
अ. व्यवस्तितता : बहियां एवं पुस्तके निश्चित स्थानपर रखनेसे यह व्यवाqस्थतताका गुण आता है ।
आ. अच्छी आदत लगना : जैसे नामजप प्रतिदिन करनेसे उसकी आदत होती है, वैसे ही अभ्यास प्रतिदिन करनेसे उसकी भी आदत हो जाती है ।
इ. एकाग्रता : अधिक समयतक एक ही स्थानपर बैठकर अभ्यास करनेसे एकाग्रतामें वृाqद्ध होती है ।
ई. दृढता : प्रतिदिन अभ्यास करनेसे दृढतामें वृद्धि होती है ।
उ. संयम : अभ्यास अधिक हो, तो धीरज खोए बिना उसे पूर्ण वैâसे करें, यह सीखनेको मिलता है । इससे संयममें वृाqद्ध होती है ।
ऊ. प्रामाणिकता : परीक्षामें किसी प्रश्नका उत्तर ठीकसे न आता हो, तो उसे दूसरेकी बहीसे देखकर न लिखकर (‘कापी’ न कर) स्वयंको जितना आता है उतना ही लिखनेसे प्रामाणिकताका गुण विकसित होता है ।
२. बौद्धिक गुण कैसे ग्रहण होते हैं ?
अ. नियोजनबद्धता : अभ्यासका नियोजन करनेसे कितने दिनोंमें, कितने घंटे अभ्यास करनेसे विषय पूर्ण होगा, यह ज्ञात होता है । इससे नियोजन करनेकी आदत लगती है ।
आ. निर्णयक्षमतामें वृद्धि होना : दो महत्वपूर्ण विषयोंमें कौनसा विषय अधिक महत्वपूर्ण है, यह निाqश्चत करना पडता है एवं उसके अनुसार अभ्यासको प्रधानता देनी पडती है । इससे निर्णयक्षमतामें वृाqद्ध होती है ।
इ. पूर्वसिद्धता करता : पहलेसे ही सर्व प्रकारकी सिद्धता (तैयारी) करनेसे ऐन परीक्षाके समय तनाव नहीं होता, यह समझ आनेसे किसी भी कार्यके लिए पूर्वसिद्धता करनेकी आदत लगती है ।
ई. समयके मूल्यका बोध होना : उत्तरपत्रिका लिखते हुए समय कितना महत्वपूर्ण है एवं कुछ मिनट भी वैâसे महत्वपूर्ण हैं, इसका बोध होता है ।
३. आध्यात्मिक गुण कैसे ग्रहण होते हैं ?
अ. जिज्ञासूवृतिमें वृद्धि होना : प्रत्येक विषयमें आगे आगेका सीखनेको मिलता है एवं जिज्ञासामें भी वृाqद्ध होती है ।
आ. पूछकर करनेकी आदत लगना : कोई सूत्र समझ न आनेपर उसे शिक्षकोंसे पूछना पडता है ।
इ. तत्परता : मनमें आई शंकाओंको शिक्षकोंसे तत्परताासे पूछना सीखते हैं ।
ई. अन्योंकी ओर ध्यान न देना : किसी प्रश्न अथवा शंकाको कक्षामें शिक्षकोंसे पूछनेसे अन्य विद्यार्थी हंसेंगे, यह ज्ञात होते हूए भी शंका समाधान करना पडता है ।
उ. उत्साहमें वृद्धि होना : प्रतिदिन नया सीखनेको मिलनेसे उत्साहमें वृद्धि होती है ।
ऊ. निरंतरता : पाठशालामें / महाविद्यालयमें प्रतिदिन जाना एवं प्रतिदिन अभ्यास करना, इससे उसमें निरंतरता आती है ।
ए. लगनमें वृद्धि होना : किसी प्रश्नका उत्तर प्राप्त न हो, तो उसका उत्तर प्राप्त करनेकी लगनमें वृद्धि होती है ।
ऐ. स्वभावदोष-निर्मूलन : उत्तरपत्रिका जांचनेपर शिक्षक चूवेंâ बताते हैं, उससे स्वभावदोष (उदा. उतावलापन करना) ज्ञात होते हैं एवं उनका निर्मूलन करनेका अवसर प्राप्त होता है ।
ओ. अहं-निर्मूलन : गुण अल्प (कम) होनेपर अपनेआप अहं-निर्मूलन होता है । मित्र / सखीको कोई प्रश्न पूछनेपर उनकेद्वारा ‘तुम्हें इतना भी नहीं आता’, ऐसा कहनेपर अहं – निर्मूलन होता है ।
औ. मनके विरुद्ध कार्य करना : अभ्यासकी इच्छा न होते हुए भी अभ्यास करने बैठनेपर मनोलय होनेमें सहायता होती है । विषय रूचिकर हो अथवा नहीं उसका अभ्यास तो करना ही पडता है; ऐसेमें रूची-अरूची घटती है ।
अं. दूसरोंकी सहायता लेना एवं उन्हें सहायता करना : कोई जटिल गणित समझ न आनेपर अन्य विद्यार्थीको पूछना पडता है, वैसे ही उन्हें कोई गणित न आ रहा हो तो सहायता करनी पडती है ।
क. तडपसे प्रार्थना करना : कोई विषय अधिक जटिल हो, तो ईश्वरको ‘मुझे कुछ भी नहीं आता, आप ही मुझे सहायता करें’, ऐसी प्रार्थना तडपसे होती है ।
ख. अंतर्मुखता आना : अन्य विद्यार्थियोंको जब अधिक अंक प्राप्त होते हैं, तब ‘मैं कहां कम पडा’, इस विषयमें अंतर्मुखतासे विचार होता है ।
ग. कृतज्ञतामें वृद्धि होना : परीक्षामें अभ्यास किए हुए अंशसे ही प्रश्न आते हैं, तब ईश्वरके प्रती कृतज्ञता होती है ।
घ. त्याग : अभ्यासके दिनोंमें अतिथियोंके आनेपर उनके साथ बाहर घूमने नहीं जा सकते, उस प्रसंगमें त्याग करना सीखते हैं ।
च. आनंद प्राप्त होना : अभ्यास मनसे करनेपर समाधान एवं आनंद प्राप्त होता है ।
हे ईश्वर, अभ्यास भी एक सत्सेवा ही है, यह सीखाया एवं वैसा करनेसे उससे विकसित होनेवाले गुण भी दिखा दिए, इसके लिए मैं आपके चरणोंमें कृतज्ञ हूं । ‘यह सभी गुण हम सभी विद्यार्थियोंमें आने दें’, यही आपके चरणोंमें प्रार्थना !’
– कु. प्राजक्ता घोले, चंदीगढ