बच्चों, आज हम अपने प्यारे गणपति बाप्पा की कथा से परिचित होंगे । हम सब गणपतिजी के तारक रूप से परिचित हैं, जिसमें गणपति का एक हाथ आर्शीवाद देने वाला एवं करूणामय दृष्टि है । उनके मारक रूप की इस कथा में गणपति ने असुरों का वध कर देवताओं के कष्टों का निवारण कैसे किया, हम आज यह देखेंगे ।
सिंधुरासुर नाम का एक बलवान राक्षस था । उसके पास बहुत बडी सेना थी ।कोई भी उसे पराजित नहीं कर पाता था । वह देवताओं को कष्ट देता था । वह ऋषि-मुनियों के यज्ञ-तप में निरंतर विघ्न-बाधा डालता रहता था । उससे त्रस्त हो देवता तथा ऋषि-मुनियों ने उसका वध करने का निर्णय लिया । परंतु ऐसे शक्तिशाली असुर को मारेगा कौन ? यह प्रश्न सबके सामने उत्पन्न हुआ । तब पराशर ऋषि गणपति के पासगए । उन्होंने गणपति से सिंधुरासुर का वध करने की विनती की ।
गणपति मूषक (चूहे) पर सवार हुए और अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए निकल पडे । सिंधुरासुर के पहरेदारों ने दूर से देखा कि गणपतिजी आ रहे हैं । उन्होंने यह सिंधुरासुरको बताया । सिंधुरासुरको उसके साथ कोई युद्ध करने आ रहा है, यह सुनकर बडा आश्चर्य हुआ । गणपति जैसा छोटासा बालक मुझसे युद्ध करेगा, यह सोचकर उसे हंसी आ गई ।
इतने में गणपति उसके सामने आकर खडे हो गए । उन्होंने सिंधुरासुर को युद्ध के लिए ललकारा । सिंधुरासुर गणपति को पकडकर मसलनेवाला ही था कि इतने में गणपति ने अपना चमत्कार दिखाया । उनका रूप राक्षस से दुगना-तिगुना हो गया ।गणपति ने उसे उठाया और मारना प्रारंभ किया । राक्षस रक्तरंजित हो गया । यह देखते ही सिंधुरासुर की सेना वहां से भाग खडी हुई । सिंधुरासुर के लाल रक्त से गणपति की देहभींग गई । वह लाल, सिंदूरी दिख रही थी । अंत में सिंधुरासुर मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा गणपति का क्रोध शांत हो गया । शक्तिशाली सिंधुरासुरपर बालगणपति ने विजय प्राप्त की, यह देखकर सभी देवताओं ने गणपति की जय-जय कार की ।
ऐसा ही और एक अंगलासुर नाम का दुष्ट राक्षस था । वह भी सिंधुरासुर जैसे सभी को कष्ट देता था । अंगलासुर मुंह से आग उगलता था । उसकी दृष्टि के सामने जोभी आता था, उसे वह जला डालता था । उसके नेत्रों से अग्नि की ज्वाला निकलती थी ।मुख से वह अत्यधिक धुआं निकालता था । सभी को उससे बहुत भय लगता था ।
अंगलासुर ने ऐसे अनेक जंगल जला डाले थे । वह खेत की फसल, पशु-पक्षी,मनुष्य सबको जलाकर राख कर देता था । अनेक राक्षसों को गणपति ने मार डाला है,यह अंगलासुर को ज्ञात था । उसे गणपति से प्रतिशोध लेना था । गणपति का वध करना था । इसलिए वह उनको खोजता फिरता था; परंतु गणपति उसके हाथ नहीं लगते थे ।
एक दिन गणपति ने अपना छोटे रूप को परिवर्तित कर दिया । वह अंगलासुर से तिगुना उंचे हो गए । यह देखते ही राक्षस भयभीत हो गया । श्री गणेशजी ने उस राक्षस को हाथ में उठाया और सुपारी समान खा लिया । इससे गणेशजी का शरीरअत्यधिक जलने लगा । इस जलन को अल्प करने के लिए सभी देवताओं ने एवं ऋषि-मुनियों ने उनको दूब अर्पण की । दूब से जलन मिट गई और गणपतिजी की जलन शांत हो गई ।
आगे चलकर गणेशजी ने विघ्नासुर नाम के राक्षस का भी वध किया । इसलिए उन्हें विघ्नेश्वर कहा जाता है ।
बच्चों, गणपति विद्या के देवता हैं । अध्ययन प्रारंभ करने से पूर्व हमें उनका स्मरण करना चाहिए । इससे पढाई में होनेवाली सारी कठिनाईयां दूर होती हैं तथा पढाई में सहायता मिलती रहेगी ।