बालमित्रो, पांडुरंग के परमभक्त संत तुकाराम निरंतर पांडुरंग के नाम में तल्लीन रहते थे । उनके घर में उनके पिताजी का श्राद्ध था । श्राद्ध का अर्थ है मृत हुए व्यक्ति की पुण्यतिथि । श्राद्ध में दो ब्राह्मणों को बुलाया गया था । उन्हें फल और दक्षिणा देनी थी । उसके उपरांत ही घर के सदस्यों का भोजन करना था । क्या सामान लाना है, यह बताकर उनकी पत्नी जिजाई ने उन्हें घर शीघ्र लौट आने के लिए कहा । तुकाराम घर से निकले । मार्ग में जाते समय वे पांडुरंग का नामस्मरण कर रहे थे । वे गांव के बाहर पहुंच गए थे । उन्होंने देखा कि एक खेत में फसल की कटाई हो रही थी । तुकारामजी को देखकर किसान ने कहा,‘‘क्या, काम करोगे ? काम करोगे तो पैसे भी दूंगा और अनाज भी |
तुकाराम खेत में गए और फसल काटने लगे । घर का काम बिल्कुल भूल गए । दोपहर होने को आई । क्या करे, जिजाई को कुछ भी सूझ नहीं रहा था । थोडी ही देर में तुकाराम घर आ गए । जिजाई द्वारा बताया गया पूरा सामान वे ले आए । जिजाई तुरंत तैयारी करने लगी । तुकारामजी नदीपर स्नान कर के घर आ गए । तब तक ब्राह्मण भी आ गये थे । तुकारामजी ने उनके सामने केले और दूध के प्याले रखे और ग्रहण करने के लिए उनसे प्रार्थना की । इसके उपरांत तुकारामजी ने ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर नमस्कार किया । तुकारामजी को आशीर्वाद दे कर ब्राह्मण अपने घर चले गए । इसके उपरांत सभी ने भोजन किया । तुकारामजी ने अपने पत्नी से कहा,‘‘जिजा अभी तुम भी भोजन कर लो, मैं मंदिर से हो कर आता हूं और उसके उपरांत थोडा विश्राम करता हूं।’’ तुकारामजी मंदिर चल गए ।
जिजाई ने शांति से भोजन किया । वह बाहर आई तो देखती है कि सामने से तुकारामजी आ रहे हैं । तुकाराम बहुत थके हुए लग रहे थे । उसे आश्चर्य हुआ । अभी तो तुकारामजी घर आए थे, ब्राह्मणों को फल दिए, दक्षिणा दी, सब काम पूरे किए, यह मैंने स्वयं देखा और अभी देखती हूं तो कुछ और ही । वो वैसे ही मंदिर गई वहां कोई नहीं था । जिजाई आश्चर्य में पड गई । उसने सब कुछ घर आ कर तुकारामजी को बताया । उन्होंने क्षणभर के लिए आंखे बंद की, हाथ जोडे और पांडुरंग से प्रार्थना करने लगे । फिर सबकुछ उनके ध्यान में आ गया । उनकी आंखों से आंसू बहने लगे । उन्होंने ऊंचे स्वर में, आनंद से कहा, ‘‘जिजा तुम सचमुच भाग्यवान हो ! आज पंढरीराया ने मेरा रूप लिया । उन्होंने ही तुमने जो बताया वह सामान ला कर दिया और आज का श्राद्ध उत्तम ढंग से पूरा किया । मार्ग में एक किसान ने मुझे काम के लिए बुलाया था । मैं वहां चला गया और घर का काम भूल गया । आज भगवान ने मेरी लाज रख ली ।’’
बच्चो, नामस्मरण की महिमा आपने देखी ना ! स्वयं पांडुरंग ने उनका रूप धारण कर सारा सामान ला कर दिया और सब कुछ उत्तम विधि से पूरा किया । उन्होंने अपने भक्त की लाज रख ली ।