बच्चों, महाराष्ट्रकी संत शृंखलामें मध्यप्रदेश प्रांतके संत सेना महाराजजी भक्तिमेंअद्वितीय स्थान रखते हैं । उनका जन्ममध्यप्रदेशके बांधवगड संस्थानमें हुआ । वेपंढरपुरके एक महान वारकरी संत थे । उनकेजीवनका एक प्रसंग सुनो – बचपनसे ही संतसेनाजीको परमेश्वरभक्तिमें रुचि थी । उनके पिताजी संत ज्ञानेश्वरजीके पिताजी विठ्ठलपंतजीके गुरुबंधु थे । उनके घर निरंतर साधु-संत आते थे । उनकी सेवा सेनाजी एवं उनके पिताजी भावपूर्ण ढंगसे करते थे ।सेनाजी अपने (लोगोंकी दाढी बनाने तथा बाल काटनेके) काममें कुशल थे । लोग उनके पास क्षौर करवानेके लिए आते थे । तथा उनके भजन-कीर्तनमें भी बडी संख्यामें उपस्थित रहते थे । सेनाजीकी कीर्ति सम्राटने सुनी । उन्होंने सेनाजीको बुलवाकर अपने यहां नौकरी दी ।
एक बार सेनाजी पांडुरंगकी पूजा कर रहे थे । उसी समय सम्राटसे तीन-चार बुलावे आए । पत्नीने प्रत्येक बार ‘वे घरमें नहीं है',ऐसा कह दिया । उनके पडोसीने यह देख तुरंत इसकी खबर सम्राटको दी । ‘सेना नाई घरपर पूजा करते हुए बैठा है तथा उनकी पत्नीने, वह घरमें नहीं है, ऐसा झूठ कहा है ' यह सुनकर सम्राटको क्रोध आ गया । उससे अपने सेवकोंको सेनाजीको बांधकर उन्हें नदीके बहते प्रवाहमें फेंक देनेकी आज्ञा की । अपना प्रिय भक्त संकटमें है, यह देखकर पांडुरंग सेनाजीका रूप लिए सम्राटके सामने गए । उन्हें देखते ही सम्राटका गुस्सा शांत हो गया । जब क्षौर करते समय सम्राटने अपनी गर्दन नीचे की, तब उसे रत्नखचित कटोरीके तेलमें पांडुरंगका प्रतिबिंब दिखता था । ऊपर देखते ही सामने सेना नाई दिखते थे । कटोरीमें दिखाई दे रहा पांडुरंगका वह रूप देख सम्राट मोहित हो गया । उसे देहभान नहीं रहा । क्षौर हो जानेपर सम्राटने उसे अंजुलीभर होन (मुद्राएं, धन) दिए । पांडुरंगने वे थैलीमें रखकर थैली सेनाजीके घर रख दी और वह अंतध्र्यान हो गए ।
सम्राटके मनमें वह ईश्वरीय रूप देखनेकी आस जगी । दोपहर उसने पुनः सेनाजीको बुलवाया । उन्हें देखते ही सम्राटनेसवेरेकी कटोरी मंगवाई और बोला,‘‘सवेरे मुझे इस कटोरीमें जो चतुर्भुज रूप दिखाई दिया, वह मुझे पुनः दिखाओ ।'' इसविषयमें अनभिज्ञ सेनाजी सम्राटके उद्गार सुनकर आश्चर्यचकित हो गए । यह चमत्कार पांडुरंगका ही हो सकता है, ऐसा समझकरसेनाजी पांडुरंगको पुकारने लगे । तब सम्राटको पुनः पांडुरंगका वह मोहक रूप दिखाई दिया । उसके उपरांत सेनाजीको अपनी थैलीमें होन (मुद्राएं, धन) दिखाई दिए । इसलिए वह इस चमत्कारके संदर्भमें निश्चिंत हो गए । तथा उन्होंने तुरंत पांडुरंगके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की । इस चमत्कारके कारण सम्राट विरक्त हो गया एवं पांडुरंगका भजन करने लगा । इस अद्भुत प्रसंगसे संत सेनाजीके जीवनमें परिवर्तनआ गया ।
बच्चों, ईश्वर भक्तके लिए कैसे दौडे आते हैं, देखा ना ! हम भी ईश्वरकी भक्ति करेंगे, तो ईश्वर भी हमारी सहायता हेतु दौडके आएंगे । इसके लिए भक्ति मनसे करनी होगी । भक्तिसे असाध्य भी साध्य हो जाता है ।