एक दिन समर्थ रामदास स्वामी ने उनके शिष्य कल्याणस्वामी से कहा, ‘एक पेड की टहनी कुएं के ऊपर आ गई है । उस टहनी को उलटी दिशा से तोडना है ।’
उस टहनी को उलटी दिशा में तोडने का अर्थ क्या था, आपको पता है ? उस टहनी का जो आगे का भाग था, उसपर बैठकर जो पेड की ओर का भाग था उसे काटने के लिए रामदास स्वामी ने अपने शिष्य से कहा था । उसका अर्थ यह था, यदि उलटी दिशा में बैठकर कोई उस टहनी को तोडता, तो वह उस टहनी के साथ कुएं में गिर जाता ।
परंतु कल्याणस्वामी के लिए तो वह अपने गुरु की आज्ञा थी और उसका पालन करना इतना ही कल्याणस्वामी को पता था । अपने गुरु की आज्ञा से शिष्य कल्याणस्वामी उस टहनी पर उलटी दिशा में बैठ गए और जैसे उनके गुरु ने कहा था, वैसेही उन्होंने उस टहनी को काटना आरंभ कर दिया । जैसेही उन्होंने वह टहनी काटी, वे कुएं में गिर गए । परंतु उनके मन में यह विचार नहीं आया कि ‘मैं ऐसा क्यों करूं, उसका परीणाम क्या होगा ? कल्याणस्वामी के लिए उनके गुरु की आज्ञा ही सर्वश्रेष्ठ थी इसलिए उन्होंने उसका पालन किया ।
थोडे समय के बाद रामदासस्वामी वहां पहुंचे और उन्होने कुएं में झांककर कल्याणस्वामी से पूछा, ‘आप कैसे हो ?’ तो कुएं में से कल्याणस्वामी बोले, ‘मै अच्छा हूं ।’ रामदासस्वामी बोले, ‘आप अभी बाहर आओ ।’ गुरु की आज्ञा हो गई तो कल्याणस्वामी बाहर आ गए और उसके बाद वे रामदासस्वामी के उत्तम शिष्य बन गए ।
इस कथा से हमें क्या सीख मिली ? ‘आज्ञापालन’ ही शिष्य का सबसे बडा गुण होता है । जो शिष्य अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं, वे गुरु के उत्तम शिष्य बन जाते हैं ।
हमारे अपने माता-पिता कुछ काम बताते हैं तो हम सुनते है क्या? मां जो खाने में सब्जी बनाती है वह यदि हमें अच्छी नहीं लगती हो और मां वह हमें खाने के लिए बोले तो हम खाते हैं क्या ? तो आज से हम बडों का आज्ञापालन करने का गुण हममें लाने के लिए प्रयास करेंगे । हमारे मां-पिताजी जो बताते है, हमारे बडे भाई-बहन जो बताते हैं, उनकी बाते सुनेंगे और ‘आज्ञापालन’ ये गुण हममे लाने का प्रयास करेंगे ?