मित्रो, सदाचार अर्थात अच्छा आचरण ही हमारे जीवन का आधार है । सत् आचरण का अर्थ है, नैतिक और धार्मिक आचरण ! देवता भी सदाचरण करनेवाले के साथ ही रहते हैं तथा जिनके साथ देवता रहते है, उनका जीवन भी आनंदी होता है । इस कहानी से हम यह सीखेंगे कि सदाचारी व्यक्ति के साथ लक्ष्मी, दान आदि कैसे रहते है !
यह बात महाभारतकाल की है । उस समय एक राजा हुए थे, जिनका नाम था सत्यदेव ! राजा अत्यंत सदाचारी थे । एक दिन जब वे सवेरे उठकर अपने कमरे से बाहर निकले तब उन्होंने देखा कि एक सुन्दर स्त्री राजभवनसे बाहर जा रही है । राजा को बडा आश्चर्य हुआ और राजा के मन में प्रश्न उठा कि यह स्त्री कौन है और बाहर क्यों जा रही है, यहां तो इस स्त्री को कभी पहले देखा नहीं है । राजा ने उस स्त्री का पीछा किया और उस स्त्री के सामने अपने दोनों हाथ जोडकर खडे हो गए । उस स्त्रीसे राजा ने नम्रता से पूछा, ‘हे देवी, आप कौन हैं, मैने आपको पहले कभी इस भवन में नहीं देखा ?’ तब उस स्त्रीने कहा, ‘मैं लक्ष्मी हूं और अब मैं इस राजभवनको छोडकर जा रही हूं ।’ राजा बहुत चिंतित हो कर माता लक्ष्मी से बोले माता आप इस राजभवन को छोड कर क्यों जा रही हैं और माता लक्ष्मी के आगे बहुत विनती की कि वह राजभवन छोड कर ना जाएं । परन्तु माता लक्ष्मी ने राजा की एक भी बात न सुनी । तब राजाने माता लक्ष्मी को रोकने का प्रयास नहीं किया और कहा, ‘माता जैसी आपकी इच्छा !’ तभी वहांसे माता लक्ष्मीजी राजभवन छोड कर चली गईं ।
माता लक्ष्मी के जाने के तुरंत बाद ही राजा ने देखा कि माता लक्ष्मीजी के पीछे-पीछे एक सुन्दर पुरुष भी राजभवनसे बाहर जा रहा है । यह देख राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और राजा सोच में पड गया । राजा के मन में फिर प्रश्न उठा कि यह कौन है और मेरे राजभवन से बाहर क्यों जा रहे है ? राजा ने उस पुरुष से पूछा, ‘कि हे तेजस्वी पुरुष आप कौन हैं ?’ उसने उत्तर दिया, ‘मेरा नाम ‘दान’ है । जहां माता लक्ष्मीजी रहती हैं, वही मैं रहता हूं । आपके पास लक्ष्मी अर्थात धन नहीं है, इसलिए आप दान नहीं कर पाओगे । इसलिए, मैं भी लक्ष्मीजी के साथ जा रहा हूं ।’ राजा ने उस पुरुष से कहा कि, ‘जैसी आपकी इच्छा, आप भी जाना चाहते है तो जा सकते हैं ।’
तभी वहां दानके पीछ-पीछेे ‘यश’अर्थात सफलता चली जा रही थी । जैसे राजा ने उन दोनों से प्रश्न किए वैसे ही उससे भी राजाने ऐसे ही प्रश्न पूछे तब यश भी लक्ष्मीजी के पीछे चला गया । बच्चो, आपकी समझ में आ रहा है ना, लक्ष्मीजी के जाते ही उनके पीछे पीछे उस राजा के पास से दान और यश दोनों चलें गए । इसके बाद राजा के सामने चौथा पुरुष प्रकट हुआ और वह भी बाहर जाने लगा । तब राजाने उससे भी हाथ जोडकर वही प्रश्न किया ।
वह पुरुष बोला, ‘मेरा नाम ‘सदाचार’ है और मैं यह राजभवन छोडकर जा रहा हूं । यह सुनते ही राजा हाथ जोडकर उसके सामने खडे हो गए और गिडगिडा कर उससे कहने लगे कि ‘मैं आपको नहीं जाने दूंगा मैनें अपने पूरे जीवन में कभी भी किसी से बुरा व्यवहार नहीं किया, कभी किसी का बुरा नहीं सोचा है । मैने सदैव सभी के साथ अच्छा व्यवहार ही किया है । मैंने सदैव सदाचार ही किया है । फिर आप मुझे छोडकर क्यों जा रहे हैं ? मेरे मनमें कोई लालच नहीं है । इसलिए आज माता लक्ष्मीजी को जाते हुए देखकर भी मैने उन्हें नहीं रोका । मेरे लिए लक्ष्मी, दान, यश इनसे बढकर सदाचार है । आपके लिए ही मैंने लक्ष्मीजी, दान आदि का त्याग किया है । आप भी मुझे छोडकर चले जाएंगे, तो मेरे पास कुछ भी नहीं रहेगा !’
राजा की ये बातें सुनकर ‘सदाचार’ राजभवनमें ही रुक गया । सदाचार को राजभवन में रुका हुआ देखकर माता लक्ष्मीजी, दान एवं यश भी फिर से राजभवन में लौट आए ।
मित्रो इस कहानी से ध्यान में आया ना कि हमारे जीवन में सदाचार कितना आवश्यक है ? जो लोग सदाचारी होते है, उनके पास लक्ष्मी, दान और यश सदैव रहते है । जीवनमें यदि सदाचार न करेें, तो दान, लक्ष्मी (धन) आदि सब व्यर्थ है ! तो आजसे हम निश्चय करेंगे जो भगवान को अच्छा लगता है हम वही करेंगे और सदाचारी बनेंगे ।