बालमित्रो, हम ‘अपने मन को हमारे द्वारा तय किए लक्ष्य अर्थात ध्येय की ओर रखेंगे’ ये कहानी देखनेवाले है ।
यह कहानी महाभारतकाल की है । यह तो आपको पता ही होगा कि द्रोणाचार्यजी कौरवों और पांडवों के गुरु थे । गुरु द्रोणाचार्यजी कौरवों एवं पाण्डवों को धनुर्विद्या अर्थात धनुष्य बाण चलाने की विद्या सिखा रहे थे । इस विद्या में उनके शिष्य धीरे-धीरे पारंगत अर्थात निपुण हो रहे थे, तब गुरु द्रोणाचार्य के मन में विचार आया कि मैं इन सभी को शिक्षा तो दे रहा हूं । मेरी शिक्षा को इन्होने कितना ग्रहण किया है ये जानने के लिए क्यों न इन कौरव और पांडवों की परीक्षा ली जाए । उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने मिट्टी का एक पक्षी बनाया और उसे एक पेड की शाखा पर बांध दिया । उसके बाद उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया तथा उन सभी से कहा कि पेड पर जो पक्षी बंधा है उसकी आंख को बांण से निशाना लगाना है ।
परीक्षा देने के लिए उन्होने सबसे पहले युधिष्ठिर को बुलाया । पांडवों और कौरवों में वह सबसे बडे भाई थे । दोणाचार्य बोले, ‘युधिष्ठिर, धनुष्य पर बाण चढाओ और उस पक्षी पर ध्यान केंद्रित कर इसको निशान बनाओ ।’
गुरु की आज्ञा से युधिष्ठिर ने धनुष्य पर बाण चढाया परंतु जैसे ही युधिष्ठर ने धनुष्य पर बाण चढाया तभी गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा, ‘तुम्हें क्या क्या दिखाई दे रहा है ?’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, ‘गुरुदेव मुझे पेड, आप और मेरे सभी भाई दिखाई दे रहे हैं’ । द्रोणाचार्यजी ने उससे कहा धनुष-बांण यहीं रखकर वापस अपने स्थान पर जाने के लिए कहा ।
इसके बाद, दुर्योधन की बारी थी । उसको भी द्रोणाचार्यजी ने बाण चढाकर पक्षी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा । दुर्योधन के धनुष्य पर बाण चढाते ही द्रोणाचार्यजी ने उससे भी वही प्रश्न पूछा कि तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ? दुर्योधन ने उत्तर में कहा कि मुझे वह पेड, आप, वह पक्षी, मेरे भाई सभी दिखाई दे रहे हैं । द्रोणाचार्यजी ने उसे भी अपने स्थान पर जाने के लिए कहा । एक के बाद एक सभी शिष्यों को बुलाकर उनसे द्रोणाचार्यजी ने वही प्रश्न किया जो युधिष्ठर और दुर्योधन से किया था । किन्तु, सभी के उत्तर एक ही जैसे थे । किसी ने भी जैसा उत्तर गुरुदेव चाहते थे वैसा उत्तर नहीं दिया । उन सबको द्रोणाचार्यजी ने अपने-अपने स्थान पर जाने के लिए कहा । अन्तमें उन्होंने अर्जुन को बुलाया । अर्जुन को भी वही करने के लिए कहा । अर्जुन ने धनुष्य पर बाण चढाकर पक्षी पर ध्यान केंद्रित किया ।
द्रोणाचार्यजी ने भी अर्जुन से यही पूछा कि, ‘अर्जुन, बताओ, तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है ?
अर्जुन बोले, ‘गुरुदेव, मुझे तो केवल पक्षी की आंख दिखाई दे रही है ।’ यह उत्तर सुनकर सभी शिष्य उसपर हंसने लगे; परंतु बच्चो आपको पता है कि क्या हुआ, द्रोणाचार्यजी अर्जुन की यह बात सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो गए । वे कुछ क्षण के लिए रुके और उन्होने अर्जुन से एक बार फिर पूछा, ठीक से देखो अर्जुन तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?
अर्जुन ने फिर से वही कहा, ‘गुरुदेवजी, मुझे केवल उस पक्षी की आंख को छोड कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है; अर्जुन के इस उत्तर से प्रसन्न होकर द्रोणाचार्यजी ने कहा, ‘‘वत्स, बाण चलाओ ।’’ अर्जुन ने बाण चलाकर पक्षी की आंख भेद दी । यह देख द्रोणाचार्य ने अर्जुन की पीठ थपथपाकर उसकी सराहना की । और अर्जुन से कहा कि आज तुम मेरी इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए । तुम ही इस युग के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनोगे ।
तो बालमित्रों, हमने इस कहानी से हमने क्या सीखा ? हमने सीखा कि अर्जुन के समान ही हमारा ध्यान भी अपने ध्येय की ओर होना चाहिए तब ही हम सफल हो सकते है । तो हमें भी अपना ध्यान ध्येय की ओर ही केंद्रित करना चाहिए ।