यह पुराने समय की बात है कि, एक गांव में एक राजा रहता था । वह ईश्वर का भक्त था । उस गांव में शिवजी का एक मंदिर था, जिसमें शिवजी की पिंडी थी । राजा प्रतिदिन भगवान शिव के लिए सोने की थाली में भोग चढाता था । वह ईश्वर के लिए दानधर्म करता था ।
उसी मंदिर में एक पुजारी रहता था । वह पुजारी भी अत्यंत श्रद्धा और भक्ति-भाव से भगवान शिवजी की पूजा एवं सेवा करता था । उस पुजारी को कभी-कभी साक्षात भगवान शिव दर्शन देते थे ।
राजा सोचता रहता था, ‘मैं शिवजी के लिए इतना करता हूं, परन्तु मुझे तो कभी भगवान ने दर्शन नहीं दिए । पुजारी तो भगवान को कभी कुछ भी नहीं देता, फिर भी उसे भगवान दर्शन क्यों देते है ?
कुछ दिनों के बाद जब राजा भगवान शिवजी के मंदिर में पहुंचा, तब वहां पुजारी पूजा कर रहा था । उसी समय अचानक बडे जोर से भूकंप आ गया । मंदिर की दीवारें तथा छत बहुत जोर-जोर से हिलने लगीं । राजा यह देख डर गया और अपनी जान बचाने के लिए डर कर वहां से भाग गया । परंतु दूसरी ओर क्या हुआ कि पुजारी वहीं उस मंदिर में खडा था । और उस पुजारी ने क्या किया कि वह शिवजी की पिंडी के ऊपर झुक गया । उस पुजारी ने सोचा कि, यदि ऊपर से छत गिरी, तो यह मेरे भगवान की पिंडी को लग जाएगी और मेरे भगवान को चोट लग जाएगी । इसलिए उसने शिवपिंडी को अपने शरीर से ढक लिया । भगवान को किसी प्रकार की भी हानि ना पहुंचे । वही भगवान का खरा भक्त था तथा उसने सबसे पहले शिव पिंडी का ध्यान रखा । अब आप समझ ही गए होंगे कि भगवान शिवजी राजा को दर्शन क्यों नहीं देते थे और भक्त पुजारी को दर्शन क्यों देते थे ।
जीवन के प्रत्येक कठिन प्रसंग में भगवान हमारी रक्षा करते हैं । हमें भगवान पर दृृढ श्रद्धा रखनी चाहिए । हम नामजप, प्रार्थना, कृतज्ञता व्यक्त करते रहेंगे, ईश्वर सेवा के माध्यम से हममें अनेक गुणों का विकास करेंगे । उनके भक्त बनेंगे तो भगवान सदैव हमारे साथ रहेंगे ।