मित्रो, आप सबको गुरु गोविंदसिंहजी का नाम तो पता ही होगा । गुरु गोविंदसिंहजी सिक्खोंके दसवें गुरु थे । उनके दो बेटे थे, उनका नाम था जोरावरसिंह और फतेहसिंह ।
गुरु गोविंदसिंहजी मुगलों के साथ आजादी की लडाई लड रहे थे । जब युद्ध चल रहा था, तो ये दोनों लडके अपने पितासे बिछड गए । उस समय जोरावरसिंह केवल ८ वर्ष और फतेहसिंह केवल ५ वर्ष के थे । पिता से बिछडने पर इन्हें दुष्ट औरंगजेब के दुष्ट सूबेदार वजीरखान ने पकड लिया और बन्दी बना लिया ।
वजीरखान ने दोनों लडकों को धमकाया और कहा, ‘तुम मुसलमान बन जाओ, नहीं तो मैं तुम दोनों को मार डालूंगा ।’ सोचिए कि यदि कोई हमसे ऐसा कहे, तो हम जैसे बच्चे कितना डर जाएंगे ! है ना ! परंतु वे दोनों नहीं डरे । वजीरखान की यह बात सुनकर ये दोनों छोटे बच्चे बोले ‘हम मर जाएंगे; किन्तु अपना धर्म नहीं छोडेंगे ! हमारा धर्म हमें प्राणों से भी अधिक प्रिय है । हमारे दादा गुरु तेगबहादुरजी ने भी धर्म की रक्षा करने में अपने प्राण त्याग दिए थे । वे ही हमारे आदर्श हैं ।’ यह करारा उत्तर सुनकर सूबेदार को बहुत गुस्सा आया । उसने जोरावरसिंह और फतेहसिंह इन दोनों भाइयों को दीवार में चुनवाकर मार दिया । इतनी छोटी उम्र में भी इन दोनों में धर्म के लिए कितना प्रेम था । बच्चो, संसार के किसी भी देश के इतिहास में ऐसी घटना नहीं घटी है, जिसमें ८ एवं ५ वर्ष के दो बालवीरों ने धर्म के लिए प्राणों का त्याग किया !
बच्चो, हमारा जन्म भी ऐसे महान हिन्दू धर्म में हुआ है । यह धर्म हमें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय होना चाहिए । यदि हम धर्म से प्रेम करेंगे तब ही हम धर्म के लिए त्याग कर पाएंगे !