बच्चो, आज हम दो बाल क्रान्तिकारियों की कहानी देखेंगे जिन्होंने अपने देश के लिए सर्वस्व का त्याग किया था । बालमित्रो, आप जानते ही होंगे कि हमारा भारत देश १९४७ से पहले परतंत्र था अर्थात हमारे देश पर अंग्रेजों का शासन था । अंग्रेज हमारे साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते और हम भारतीयों पर बहुत अत्याचार करते थे । भारतमाता को स्वतंत्र कराने के लिए जिन लोगों ने प्रयास किए, उन्हें क्रांतिकारी कहा जाता है । भारतमाता को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया है । क्रांतिकारियों के बलिदान से ही हमारा देश स्वतंत्र हुआ है तथा आज क्रांतिकारियों के इसी बलिदान और त्याग के कारण हम स्वतंत्रता का अनुभव कर रहे हैं, यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो बच्चो हम आज भी स्वतंत्रता के साथ कुछ भी नहीं कर पाते और गुलाम ही बने रहते । हमें इन क्रांतिकारियों के प्रति सदा कृतज्ञ रहना चाहिए । उनके जैसा राष्ट्रप्रेम अपने अंदर निर्माण करने के लिए हमें उनके जैसे ही प्रयास करने चाहिए । सुशील सेन और काशीनाथ पागधरे भी बाल क्रांतिकारी थे । आज हम इन बाल क्रांतीकारियों द्वारा किए गए उनके त्याग को एक कहानी के माध्यम से सीखेंगे ।
१. सुशील सेन !
क्रांतिकारियों के लिए तो मातृभूमि अर्थात भारतमाता ही उनके लिए सर्वस्व होती है । वह मातृभूमि के लिए सदैव प्राणों का त्याग करने को तैयार रहते हैं । ऐसे ही एक बालक्रांतिकारी थे सुशील सेन ! सुशील सेन की आयु १५ वर्ष थी और वह बंगाल के कोलकत्ता शहर में रहते थे । बात उन दिनोें की है जब बंगाल में कोलकाता के न्यायालय में अरविंद घोष नाम के क्रांतिकारी पर मुकदमा चल रहा था । कोर्ट के बाहर बहुत सारे लोगों की भीड लगी हुई थी और वहां खडे सभी लोग वंदे मातरम् के नारे लगाकर अपना राष्ट्रप्रेम व्यक्त कर रहे थे । ‘वंदे मातरम्’ के नारों से वहां के वातावरण में मातृभूमि के लिए प्रेम उमढ आया था । ‘वंदे मातरम’ के नारे लगानेवाले सभी क्रांतिकारी थे । वहां पर उपस्थित अंगेजों की पुलिस उन सभी लोगों पर लाठियां चला रही थी । उन्हें लाठियों से बिना रुके मारा जा रहा था, तब भी वे पीछे नहीं हट रहे थे । उस भीड में सुशील सेन नाम का एक बालक वहीं खडा था । सुशील सेन भी देशप्रेमी था । उन सभी को देखकर सुशील सेन का देशप्रेम जागृत हो गया । पुलिस जब सभी भरतीयों को मार रही थी तो यह देख कर, सुशील सेन को यह बात सहन नहीं हुई कि अपने लोगों को पुलिस कितनी निर्दयता से लाठियों से मारे जा रही है । तभी उन्होंने अपने मन में अंग्रेजों का विरोध करने का निश्यय किया । सुशील सेन ने वहां खडे एक हट्टे-कट्टे सिपाही को तीन करारे तमाचे जड दिए ! यह देखकर अन्य सिपाहियों ने छोटे से सुशील को घेरकर पीटना प्रारंभ कर दिया । पुलिस ने क्या किया कि जब तक सुशील सेन लहुलुहान नहीं हो गया, तब तक उसको पीटती रही । अब पुलिस ने सुशील सेन को बंदी बना लिया तथा अगले दिन न्यायालय में उपस्थित किया गया । न्यायालय में सुशील को १५ कोडे मारने का दण्ड सुनाया गया । सुशील को १५ कोडे मारे गए । सुशीलने इस दण्ड को मुस्कराते हुए सह लिया ! सुशील का वह आचरण देखकर आज भी यह कहने को मन करता है –
गूंगे मन की सीमारेखा है, केवल शाब्द़िक बुलबुलों की उडान ।
तोपों के ढोल-ताशे नगाडे, सुनाएंगे आपकी वीरता का गान ॥
मित्रो इतनी कम आयु में सुशील सेन में कितना साहस, धैर्य और राष्ट्रप्रेमथा था । तो मित्रो हम भी अपने आपमें ऐसा राष्ट्रप्रेम लानेका प्रयास करेंगे ।
२. काशीनाथ पागधरे !
ठाणे जनपद के पालघर तहसील में एक गांव है, सातपाटी । इस गांव में १४ वर्ष का ‘काशीनाथ पागधरे’ नाम का लडका रहता था । काशीनाथ पागधरे १४ वर्ष की आयु से ही स्वाधीनता अर्थात स्वतंत्रता संग्राम के आन्द़ोलन से जुड गया था । ई.स. १९४० में उसने स्वतंत्रता के एक आंदोलन में भाग लिया था तथा इसलिए उनको छह मास के लिए सश्रम कारावास का दण्ड मिला था । १९४२ में ‘भारत छोडो’ आंदोलन का आरंभ हुआ था । इस आंदोलन में अंग्रेजों से कहा जा रहा था कि, भारत देश हमारा है इसे छोड कर चले जाओ । इस आंदोलन में १४ अगस्त १९४२ को काशीनाथ ने पालघर के चार हजार लोगों को एकत्रित किया और वहां की तहसील कार्यालय के सामने इन चार हजार लोगों के साथ प्रदर्शन किया था । इस आंदोलन को रोकने के लिए अंग्रेजों ने उन लागों पर बिना कुछ सोचे ही गोलीबारी करना शुरु कर दी थी । इस गोलीबारी में काशीनाथ को वीरगति प्राप्त हुई अर्थात वह देश की सेवा करते करते शहीद हो गए !
इतनी कम आयु में इतने लोगों को संगठित करना तथा उन्हें देशकार्य के लिए प्रेरित करना आसान बात नहीं थी । और देश के लिए अंग्रेजों की गोलीबारी से भी न डरते हुए अपने प्राणों को मातृभूमि के लिए रक्षा के लिए न्यौछावर कर दिए । तो मित्रो हमें भी ऐसा त्याग करने की तैयारी करनी है । देश की रक्षा के लिए सर्वस्व का त्याग करने की तैयारी से ही हम देश की रक्षा कर पाएंगे ।
इस कहानी से आपको ध्यान में आया होगा ना कि हममें राष्ट्र के प्रति क्रांतिकारियों के जैसा प्रेम तथा आदर होना आवश्यक है । तो आज से हम भी हमारी प्रत्येक कृति राष्ट्र के हित में ही करेंगे ना ?