बालमित्रो बाल क्रांतिकारियों ने कितनी कम आयु में अपने देश के लिए त्याग किया और अपना बलिदान दिया था । भारतमाता को किस प्रकार से अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया जाए, उसके लिए मर मिटने तक की तैयारी होना और यही एकमात्र विचार होने के कारण वे आज भी देशभक्त कहलाते हैं । हम ऐसे ही दो बाल देशभक्तों की कहानी देखनेवाले हैं ।
देशभक्त दत्तू रंगारी
कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले में बैलहोंगल नाम का एक गांव है । उस गांव में दत्तू रंगारी नाम का एक १३ वर्ष का बालक रहता था । उस समय देश में अंग्रेजों के विरुद्ध ‘भारत छोडो’ आंदोलन चल रहा था । अनेक बाल क्रान्तिकारी देश के लिए त्याग कर रहे थे । कई फांसी पर भी चढ गए थे । दत्तू रंगारी भी एक बडा देशभक्त बालक था । उसके मन में भी अंग्रेजों के प्रति गुस्सा और चिड थी । दत्तू रंगारी क्रांतिकारियों के विचारों से प्रेरित होकर ‘भारत छोडो आंदोलन’ में सम्मिलित हुए थे । देशभक्त क्रांतिकारी कभी अपनी सुख-सुविधा का विचार नहीं करते थे, उनके मन में केवल अपने देश का कैसे भी हित हो और उसके प्रति मर-मिट जाना यही एकमात्र विचार रहता था । दत्तू रंगारी की आयु केवल १३ वर्ष थी; परंतु इतनी कम आयु में भी उसके मन में देश के प्रति अपार प्रेम तथा भक्ति थी । देश के लिए उन्होंने सर्वस्व तक का त्याग करने का निश्चय किया और ‘अंग्रेजों भारत छोडो’ के आंदोलन में सम्मिलित हो गया । इस आंदोलन में अंग्रेज भारतीय क्रांतिकारियों की आवाज को दबाने तथा क्रांतिकारियों को मारने के लिए गोलीबारी कर रहे थे । दत्तू रंगारी को एक बार भी यह डर नहीं लगा कि अंग्रेजों की गोलीबारी में उनके प्राण भी जा सकते हैं । उन्होंने अंग्रेजों का बिना डरे विरोध किया तथा अंग्रेजों की गोलीबारी में ही उसकी मृत्यु हो गई ।
उस समय के एक कवि ने इन क्रान्तिकारियों का त्याग देखकर एक कविता लिखी जिसमें उनका वर्णन किया था । यह कविता इस प्रकार है
तैयार हैं हम जेल में चक्की चलाने के लिए,
कटिबद्ध हैं हम मूंज की रस्सी बनाने के लिए ।
मंजूर सुखरी कूटना, कोल्हू चलाना है हमें,
(जो कोल्हू वीर सावरकरजी ने अंदमान के कारागृह में चलाया था ।)
तैयार हैं हम अधभुना दाना चबाने के लिए ।
(अर्थात हमें खाना मिले या ना मिले हमें उसकी कोई चिंता नहीं।)
कंबल, बिछौना ओढने में कष्ट ही है क्या हमें,
तैयार हैं हम भूमि को बिस्तर बनाने के लिए ।
(हमें धरती पर सोना पडे तो भी हम तैयार है ।)
जांघिए, कुर्ते, कडे में शर्म है कुछ भी नहीं,
तैयार हैं नंगे बदन जीवन बिताने के लिए ।
(अच्छे कपडों की हमें लालसा नहीं है ।)
निज धर्म पालन के लिए, डर तोप-गोलों का कहां,
तैयार हैं आनंदपूर्वक मृत्यु पाने के लिए ।
(भारतमाता की रक्षा के लिए, धर्म के पालन के लिए हम मृत्यु को भी हंसते हुए गले लगाने को तैयार है ।)
जबतक नहीं स्वाधीन भारत, स्वर्ग में भी सुख नहीं,
तैयार हैं हम नरक का भी कष्ट पाने के लिए ।
(भारतमाता को स्वतंत्र करने के लिए हम नरक जैसा कष्ट उठाने के लिए भी तैयार है ।)
इस कविता से ध्यान में आता है कि इन बालक्रान्तिकारियों के लिए सबसे श्रेष्ठ मातृभूमी अर्थात भारतमाता ही थी । इसे स्वतंत्र कराने के लिए, मातृभूमि की रक्षा करने के लिए ही उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया ।
देशभक्त हेमू कलानी
बच्चो, ऐसा ही एक और देशभक्त था ‘हेमू कलानी’ ! हेमू कलानी’, ‘स्वराज्य सेना’ नामक संगठन का सदस्य था । अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों के मन में बहुत गुस्सा था । ये क्रांतिकारी अंग्रेजों को हर प्रकार से हानि पहुंचाने के लिए सदैव तत्पर रहते थे । एक दिन इन क्रांतिकारियों को सूचना मिली कि एक रेलगाडी में अंग्रेजों की सेना जानेवाली है । क्रांतिकारियों ने तय किया कि इस रेल की फिशप्लेट निकाल दी जाए, तो यह रेलगाडी पलट जाएगी । जिससे अंग्रेजों की सेना को बहुत हानि होगी । इस कार्य को करने की जिम्मेदारी हेमू कलानी ने अपने ऊपर ली; परंतु क्या हुआ कि जब वह फिशप्लेट्स को निकाल रहे थे तब उस समय उनको ‘फिशप्लेट्स’ निकालने का प्रयत्न करते हुए अंग्रेज सैनिकों ने देख लिया और हेमू पकडा गया । हेमू को सैनिक न्यायालय के कटघरे में लाकर खडा किया गया, तब सैनिक न्यायालय ने उनको फांसी का दण्ड दिया । जब उनको फांसी लगाने के लिए ले लाया जा रहा था तो, उस समय, केवल १८ वर्ष के इस युवक ने, ‘ब्रिटिश साम्राज्य का नाश हो, नाश हो ! वन्दे मातरम ! भारत माता की जय’, ऐसे नारे लगाते हुए हंसते हंसते फांसी पर झूल गया ।
बच्चो उस समय प्रत्येक बालक और युवक में अपनी मातृभूमि के लिए त्याग करने की भावना थी । इतनी कम आयु में इतना बडा त्याग करनेवाले ऐसे बालक्रान्तिकारी हमारे जीवन के ऐसे आदर्श होने चाहिए । आज हम इन सभी राष्ट्रभक्तों को वंदन करेंगे और यह निश्चय करेंगे कि उनके बलिदान के लिए हम सदैव कृतज्ञ रहेंगे ।