यह बात उस समय की है, जब श्रीमत् आदिशंकराचार्यजी काशी में रहते थे । बालमित्रो आप जानते ही हैं कि काशी अर्थात वाराणसी, यहां पर पवित्र, पूजनीय माता गंगा नदी के रूप में बहती हैं । आदिशंकराचार्यजी काशी में नित्य सुबह गंगातट पर घूमने जाते थे । आदि शंकराचार्यजी जिस तट पर जाते थे, उसके दूसरे किनारे पर एक गांव था । एक दिन उस गांव के एक तेजस्वी युवक ने दूसरे किनारे पर एक संन्यासी को गंगातट पर घूमते हुए देखा । उसके मन में उन संन्यासी के प्रति आदर निर्माण हुआ तथा उस युवक ने वहीं से उन्हें प्रणाम किया । श्रीमत् आदि शंकराचार्यजी ने भी उसका प्रणाम स्वीकार किया और उसे अपने हाथ से संकेत कर अपने पास बुलाया । उस युवक ने संकेत देखकर विचार किया कि, ‘मैंने उन्हें संत समझकर नमस्कार किया है और उन्होंने भी मेरे नमस्कार को स्वीकार किया है । इसलिए अब मैं उनका शिष्य बन गया हूं । उन्होंने मुझे आदेश दिया है कि ‘यहां आकर मिलो’ ऐसे में, मुझे मेरे गुरु की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए । उनकी आज्ञा का उल्लंघन करना उचित नहीं है । किन्तु यहां तो कोई नाव अथवा नाविक नहीं है, जो मुझे उस किनारे तक पहुंचाए । मुझे तो तैरना भी नहीं आता । अब मैं क्या करूं ?’ वह कुछ समय तक वहीं रुककर नाव की प्रतीक्षा करता रहा । प्रतीक्षा करते करते कुछ समय बीत गया तब उसके मन में एक और विचार आया । उसने सोचा, ‘वैसे तो मैं इसके पहले सैकडों जन्मों में मर चुका हूं । इस जन्म में भी कभी न कभी तो मरना ही है । अच्छा तो यह होगा कि गुरुदेव की आज्ञा का पालन करने के प्रयास में मेरी मृत्यु हो जाए, तो उससे मेरी कोई हानि तो नहीं होगी, अपितु इससे तो मेरे जीवन का उद्धार ही होगा ।’
यह सब सोचकर उस युवक ने ‘गंगामाता की जय’ कहते हुए गंगा नदी के जल में अपना पैर रखा ।
इस तट पर महान गुरु आदि शंकराचार्यजी उस युवक की ओर देखकर उसके मन में आनेवाले विचार जान गए । वह उस युवक की परीक्षा ले रहे थे कि उस युवक में उनसे मिलने की, उनकी आज्ञा का पालन करने की कितनी लगन है, उनसे मिलने के लिए वह क्या-क्या प्रयास करता है ?
बालमित्रो इधर जब उस युवक ने अपने गुरु से मिलने के लिए गंगा नदी में अपना पैर रखा, तो वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी, जैसे ही उस युवक ने गंगा नदी में पैर रखा वहां पर उस युवक की लगन और श्रीमत् आदि शंकराचार्यजी की कृपा से उसके पैरों के नीचे एक कमल (पद्म) उग आया । इस प्रकार से, वह गंगा नदी के जल में जैसे जैसे आगे की ओर कदम बढाता जाता वैसे ही उसके पैरों के नीचे गंगा नदी में उस स्थान पर कमल उग आते और वह उस कमल पुष्प पर पैर रखकर आगे बढने लगा तथा जिस स्थान पर आदि शंकराचार्यजी खडे थे, वह युवक इस प्रकार से वहां तक पहुंच गया ।
आदि शंकराचार्यजी को देखते ही वह उनके चरणों में गिर पडा, उसकी आंखों से अश्रु की धारा बहने लगी और आदिशंकराचार्यजी के चरणों को अपने अश्रुआें की धारा से भिगो दिये। आदि शंकराचार्यजी उसकी लगन से अत्यंत प्रसन्न हो गए । गंगा में चलते समय वह जहां-जहां भी अपना पैर रखता था, वहां-वहां कमल उग आते थे, इसलिए आदि शंकराचार्यजी ने उस युवक का नाम ‘पद्मपादाचार्य’ रखा । आगे चलकर श्रीमत् आदिशंकराचार्यजी के चार प्रमुख शिष्यों में से यही पद्मपादाचार्य, एक प्रमुख शिष्य बने ।
गुरु-आज्ञापालन में पद्मपादाचार्य की दृढता एवं तत्परता देखकर गंगामाता में कमल उत्पन्न हो गए ।
इस घटना से सिद्ध होता है कि यदि शिष्य दृढता, तत्परता एवं प्रामाणिकता से गुरु-आज्ञा का पालन करता है, तो उसके लिए परिस्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं ।’