महाराष्ट्र में संत नामदेव महाराज नामक एक महान संत हुए थे । एक दिन एक चोर उनके पास गया और उसने कहा, ‘महाराज, मुझे चोरी करने की बहुत बुरी आदत है और इस चोरी करने की आदत से मैं मुक्त होना चाहता हूं । इसके लिए मैं क्या करूं कृपया आप मेरा मार्गदर्शन कीजिए ।’ नामदेव महाराज ने कहा, ‘तुम किसी भी परिस्थिति में सदैव सत्य ही बोलना ।’ उस चोर ने उनको धन्यवाद दिया और वहां से चला गया ।
संत नामदेव महाराजजी से मिलने के बाद उस चोर को मार्ग में उस देश का राजा मिला । बालमित्रो, प्राचीन काल में राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अपना भेष बदल कर नगर में भ्रमण करते थे । जब उस चोर को मार्ग में राजा मिले, तब राजा ने अपना भेष बदला हुआ था, इस कारण चोर राजा को पहचान नहीं पाया । राजाने उस चोर से पूछा, ‘तुम कौन हो ? क्या करते हो ?’ चोर ने नामदेव महाराज के बताए अनुसार सत्य बोल दिया और कहा कि, ‘मैं एक चोर हूं ।’ उसकी यह बात सुनकर राजा चकित हो गया । तब राजा ने उससे कहा, ‘मैं भी एक चोर हूं । अब हम दोनों मिलकर चोरी करेंगे । जो भी धन मिलेगा वह आपस में बांट लेंगे । मैं तुम्हें जैसे बताता हूं, तुम वैसे ही करना ।’ चोर ने राजा की बात मान ली ।
राजा ने उसे एक सुरंग दिखाई और कहा, तुम इस मार्ग से राजमहल में पहुंच जाओगे । राजमहल में पहुंचते ही तुम्हें एक कमरा दिखाई देगा । उस कमरे में हीरों से भरी एक पेटी है । उसमें कुछ हीरे हैं । उसमें जितने भी हीरे हैं, उसमें से आधे तुम ले लेना और आधे मुझे दे देना । क्या तुम ऐसा कर पाओगे ?’
चोर ने कहा, ‘हां ! मैं ऐसा ही करूंगा ।’ उसके बाद चोर राजा के बताए मार्ग पर चल पडा और राजमहल में पहुंचने पर उसे वहां एक कमरा दिखाई दिया । उस कमरे में एक पेटी रखी थी । चोर ने उस पेटी को खोलकर देखा तो उसकी आंखे चमक गई । उसमें तीन हीरे रखे थे । चोर ने उसमें से दो हीरे उठाए और वह राजा के पास पहुंचा । उसने राजा को बताया कि वह उस पेटी से दो हीरे उठा लाया है । चोर ने एक हीरा राजा को दिया और एक स्वयं रख लिया । उसके बाद दोनो वहां से चले गए ।
अगले दिन सुबह राजाने उस चोर को पकडकर लाने के लिए सैनिकों को आदेश दिया । सैनिक चोर को पकडकर राजमहल ले आए । राजा ने अपने मंत्री को हीरों की पेटी लाने का आदेश दिया ।
मंत्री वह पेटी ले आया । बालमित्रो, पेटी में एक भी हीरा नहीं था, जबकि चोर ने तो दो हीरे ही चुराए थे । राजा यह बात जानता था । राजा ने वह पेटी चोर को दिखाई और पूछा, ‘तुमने इसी पेटी से हीरे चुराए हैं न ?’ चोर ने कहा, ‘हां महाराज ! मैंने इसी पेटी से हीरे चुराए हैं । इस पेटी में तीन हीरे थे, उसमें से मैंने दो हीरे चुराए क्योंकि चोरी किए हुए हीरों को मुझे अपने साथी के साथ दो समान भागों में बांटन थ । तीन हीरों के समान भाग नहीं हो सकते थे । इसलिए मैंने दो हीरे उठाए और एक इसी पेटी में छोड दिया ।’
राजा को पता था कि चोर सच बोल रहा है । राजा ने चोर की ईमानदारी स्वयं अनुभव की थी । राजा समझ गया कि तीसरा हीरा मंत्री ने चुराया है । उसने सैनिकों को आदेश दिया कि मंत्री की जांच करें । सैनिकों ने जब मंत्री की जांच की तब उसके पास तीसरा हीरा मिल गया । राजाने मंत्री को कारागृह में डाल दिया और चोर को अपना मंत्री बना लिया । राजा के मुंह से यह बात सुनकर चोर चकित रह गया । वह समझ नहीं पाया कि अब क्या करे ? वह दौडते-दौडते संत नामदेव महाराजजी के पास गया । राजा भी उसके पीछे पीछे चला आया ।
नामदेव महाराजजी के पास पहुंचते ही चोर उनके चरणों में गिर पडा । उसकी आंखों से अश्रु की धारा बहने लगी । वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था । ऐसा सम्मान आजतक उसे कभी नहीं मिला था ।
राजा चोर के पीछे-पीछे आया था । वह सामने का दृश्य देख रहा था । राजा को वहां देखकर चोर ने स्वयं को संभाल लिया । उसने राजा को बताया, ‘संत नामदेव महाराजजी ने मुझे सत्य बोलने के लिए कहा था । उनकी आज्ञा का पालन करते हुए मैंने केवल सत्य बताया, जिसके फलस्वरूप आपने मुझे मंत्रीपद दे दिया । मैंने महाराजजी का उपदेश पाकर केवल एक रात सच बोला तो मुझे यह लाभ हुआ । यदि मैं जीवनभर सत्य बोलता रहूं और संत नामदेव महाराजजी की सेवा करता रहूं तो मेरे जीवन का तो उद्धार ही हो जाएगा ।
बच्चो सत्य कभी नहीं छिपता । यदि आप सत्य के पक्ष में हों और लाखों लोग भी आपके विरुद्ध हो जाएं, तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड पाएगा । इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सदैव सत्य ही बोलना चाहिए ।