कथा १
बालमित्रो, प्राचीनकाल में गजमुखासुर नामक एक दैत्य था । वह बहुत बलवान था । वह अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत सताता था । सभी देवता एकत्रित होकर भगवान गणेशजी के पास पहुंचे तथा गजमुखासुर के कष्ट से मुक्ति दिलवाने की विनती की । तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया ।
श्रीगणेशजी का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ । युद्ध में श्रीगणेशजी का एक दांत टूट गया । तब क्रोधित होकर श्रीगणेशजी ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर प्रहार किया । तब वह दैत्य घबराकर मूषक अर्थात चूहा बनकर भागने लगा; परंतु गणेशजी ने उसे पकड लिया । मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा । तब श्रीगणेशजी ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया ।
कथा २
देवराज इन्द्र के दरबार में क्रौंच नाम का गंधर्व था । एक बार इंद्र किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे, उस समय क्रौंच अन्य अप्सराओं से हंसी ठिठोली कर रहा था । इंद्र का ध्यान उस पर गया तो नाराज इंद्र ने उसे चूहा बन जाने का शाप दे दिया ।
वह गंधर्व शाप के प्रभाव से तुरंत एक बलवान मूषक बन गवर तथर वह सीधे पराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा । आते ही उसने भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोडकर सारा अन्न समाप्त कर दिया, आश्रम का बगीचा उजाड दिया, ऋषियों के समस्त वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए । आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट कर दीं । इस कारण पराशर ऋषि बहुत दुःखी हो गए और मूषक के आतंक से मुक्त होने के लिए भगवान श्रीगणेशजी की शरण में जा पहुंचे । तब गणेशजी ने पराशरजी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं । वह मूषक गणेशजी डरकर भाग गया । गणेश जी ने उसे पकडने के लिए अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता हुआ पाताल तक जा पहुंचा और उसका कंठ बांधकर उसे घसीटते हुए गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया । पाश की पकड से मूषक मूर्छित हो गया । मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेशजी की आराधना प्रारंभ कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा ।
गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हो गए; परंतु उससे कहा कि तुमने ब्राह्मणों को बहुत सताया है । मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा करना भी मेरा परम धर्म है, इसलिए वरदान मांगो ।
ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा । वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप ही मुझसे वरदान मांगिए । मूषक का अहंकार देखकर गणेशजी ने उसे कहा कि मेरा वाहन बन जाओ । मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ हो गए । अब भारी भरकम गजानन के भार से मूषक दबने लगा । तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें और वह अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगा । इस तरह मूषक का गर्व हरण कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया । इस प्रकार मूषक श्री गणेश का प्रिय वाहन बना ।