एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण पर निकले । रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे । सभी तालाब के किनारे से छलांग लगाकर तैरने का आनंद ले रहे थे । उसी तालाब के किनारे एक पेड के नीचे एक बच्चा अत्यंत उदास मुद्रा में बैठा था ।
माता पार्वती ने भगवान शंकरजी से पूछा, ‘यह बच्चा उदास क्यों है ?’
भगवानजी ने कहा, ‘पार्वती, उस बच्चे को ध्यान से देखो ।’
उन्होंने देखा कि उस बच्चे के दोनों हाथ नहीं थे, इसके कारण वह तैर नहीं पा रहा था । माता पार्वतीजी को उस बच्चे पर बहुत दया आई । उन्होंने भगवान शंकरजी उसे हाथ देने की विनती की, ताकि वह भी अपने मित्रों के साथ तैरने का आनंद ले सके ।’
भगवानजी ने माता पार्वती से कहा कि इस प्रकार किसी के जीवन में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकते । प्रत्येक को अपने पिछले जन्मों के कर्मों का फल भुगतना पडता है । इस बच्चे ने भी पिछले जन्म में कुछ गलत कर्म किया होगा, जिसका फल वह इस जन्म में भुगत रहा है ।
परंतु माता पार्वती नहीं मानी तथा उन्होंने उसे हाथ देने की पुन: पुन: विनती की । अंत में माता पार्वती की विनती के कारण भगवान शंकरजी ने उस बच्चे को हाथ दे दिए । हाथ पाकर वह बच्चा पानी में तैरना सीखने लगा ।
एक सप्ताह के बाद भगवान शंकर और माता पार्वती पुन: उस तालाब के पास से गुजरे । इस बार उन्होंने उल्टा प्रसंग देखा । वहां केवल वही बच्चा तैर रहा था और बाकी सब बच्चे तालाब के किनारे बैठे थे ।
माता पार्वती जी ने पूछा, ‘यह क्या है ?’
भगवान शंकर जी ने कहा, ‘ध्यान से देखो । वह बच्चा दूसरे बच्चों को पानी में डुबो रहा था इसलिए सब बच्चे भाग रहे थे । हमने पहले भी कहा था कि, हर व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है । भगवान किसी के कर्मों में हस्तक्षेप नहीं करते । ै । उसने पिछले जन्मो में अपने हाथों द्वारा यही कार्य किया था, इसलिए इस जनम में उसके हाथ नहीं थे । हाथ देने से गत जन्म के कर्म वह पुन: करने लगा है । दान सदैव उचित व्यक्ति को ही देना चाहिए ।प्रकृति नियमों के अनुसार चलती है, किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं करती ।’
उन्होंने आगे कहा, ‘आत्माएं जब ऊपर से नीचे आती हैं तो अच्छी ही होती हैं, कर्मों अनुसार कोई अपाहिज बन जाता है तो कोई भिखारी, तो कोई झुग्गी में तो कोई बडेे महलों में रहता है । अगर कोई बुरा काम करता है तो उसका भुगतान तो करना ही पडता है ।
तो बच्चो इस कथा से आपके ध्यान में आया न कि हमें सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए । हम जैसे कर्म करते हैं वैसा फल पाते हैं । जो अच्छा कर्म करता है वह भगवान को अच्छा लगता है । जो गलत कर्म करता है वह भगवान को अच्छा नहीं लगता । इसलिए हमे सदैव ऐसे कर्म चाहिए, जो भगवान को अच्छे लगे ।