बालमित्रो, आइए आज हम अर्जुन तथा हनुमान जी का यह प्रसंग सुनते हैं । आनंद रामायण में वर्णन है कि अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजित होने के पीछे भी एक कारण है । एक बार रामेश्वरम् तीर्थ में अर्जुन का हनुमानजी से मिलन हो जाता है । इस पहली भेंट में हनुमानजी से अर्जुन ने कहा, ‘अरे राम और रावण के युद्घ के समय तो आप थे ?’
हनुमानजी ने कहा ‘हां’, तभी अर्जुन ने कहा, ‘आपके स्वामी श्रीराम तो बड़े ही श्रेष्ठ धनुर्धर थे तो फिर उन्हें समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु बनवाने की क्या आवश्यकता थी ? यदि मैं वहां उपस्थित होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता ।’ अर्जुन के इन वाक्यों में उनका अहंकार दिखाई दे रहा था ।
इस पर हनुमानजी ने कहा, ‘असंभव, बाणों का सेतु वहां पर कोई काम नहीं कर पाता । हमारा यदि एक भी वानर चढ़ता तो बाणों का सेतु छिन्न-भिन्न हो जाता।’ अर्जुन तो अहंकार के कारण कोई बात मानने को तैयार नहीं थे । उन्होंने कहा, ‘नहीं, देखो ये सामने सरोवर है, मैं उस पर बाणों का एक सेतु बनाता हूं । आप इस पर चढ़कर सरोवर को आसानी से पार कर लेंगे ।’
हनुमानजी ने कहा, ‘असंभव । तब अर्जुन ने कहा, ‘यदि आपके चलने से सेतु टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पडेगा ।’ हनुमानजी ने कहा, ‘मुझे स्वीकार है । मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा ।’ अर्जुन इस मुद्दे पर अहंकार से चूर थे तथा हनुमान को सीधी चुनौती दे रहे थे । अर्जुन ने अपनी कलाकारी दिखानी प्रारंभ की । अर्जुन ने कुछ ही समय में अपने प्रचंड बाणों से सरोवर पर एक मजबूत सेतु बना दिया । जब तक सेतु बन रहा था, तब तक हनुमानजी का रूप लघु ही था; परंतु सेतु जैसे ही बन गया । हनुमानजी ने विराट रूप धारण कर लिया । हनुमान का विराट रूप अद्भुत था ।
अर्जुन बजरंग बली को हलके में ले रहे थे । यद्यपि अर्जुन धनुर्विद्या में निपुण थे, तब भी उनमें अहंकार था । अहंकार सदैव चूर- चूर हो जाता है । हनुमानजी, राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए । पहला पग रखते ही संपूर्ण सेतु डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर में गिर पडा ।
तभी श्रीहनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो । अग्नि प्रज्वलित हुई और जैसे ही अर्जुन अग्नि में प्रवेश करनेवाले थे, वैसे भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और बोले ठहरो ! तभी अर्जुन और हनुमानजी ने उन्हें प्रणाम किया ।
कृष्ण ने अर्जुन से पुनः पुल बनाने के लिए कहा और बोले अब प्रभु श्रीराम की शरण में जाकर तथा उनका नाम लेकर पुल बनाओ, अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्णजी की आज्ञा का पालन किया । अब हनुमानजी को उस पुल पर चलने के लिए कहा ।
अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद हनुमान पुल को तोड नहीं सके; इस समय हनुमानजी को भगवान कृष्ण में प्रभु श्रीराम का दर्शन हुआ । उस समय हनुमानजी ने वचन दिया कि महाभारत के युद्ध में वह अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान रहेंगे और युद्ध में अर्जुन की सहायता करने का वचन दिया । इस प्रकार हनुमानजी अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान रहे तथा उनकी युद्ध में रक्षा की । बालमित्रो, अब आप शरणागति का महत्त्व समझ ही गए होंगे । जब अर्जुन अहंकार त्यागकर शरणागत हुए, तब ही उस सरोवर पर सुदृढ पुल बना पाए ।
इसलिए अपने जीवन में कभी भी किसी बात का अहंकार नहीं करना चाहिए । सदैव भगवान के चरणों में शरणागत रहकर उन्हें पुकारना चाहिए, उनका नामजप करना चाहिए ।