यह कथा रामायण काल की है । प्रभु श्रीराम ने अनेक राक्षसों का वध किया था । उनमें से एक थी, ताडका राक्षसी !
महर्षि विश्वामित्र विश्व कल्याण के लिए यज्ञ किया करते थे । उस काल में वन में बहुत से राक्षस रहते थे, जो ऋषि-मुनियों के यज्ञों में बाधा डालते थे । उनके इस कष्ट के कारण महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ की अयोध्या नगरी में पहुंचे तथा राक्षसों के वध के लिए उन्होंने प्रभु श्रीराम को साथ भेजने की विनती की । प्रभु श्रीराम के साथ लक्ष्मण भी महर्षि के साथ चल पडे । एक दिन गुरु विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण के साथ नदी के तट पर पहुंचे । वन मे रहनेवाले एक मुनि ने दी हुई एक छोटी सी नौका में नदी पार कर गए । नदी के उस पार एक भयानक वन था । उस वन को देखकर श्रीराम बोले, ‘‘गुरुदेव ! इस भयंकर वन के सभी ओर से सिंह, व्याघ्र जैसे हिंसक पशुओं के दहाडने की, हाथियों के चिंघाडने की आवाज आ रही है । घनदाट वृक्षों के कारण सूर्य का प्रकाश भी वन के भीतर नहीं आ रहा है ।’’
गुरु विश्वामित्र ने कहा, ‘‘हे राघव ! पुराने काल में इस स्थान में मलदा और करुप नाम के दो बडे समृद्ध राज्य हुआ करते थे । दोनों ही राज्य धन, धान्य और समृद्धि से परिपूर्ण थे । दूर-दूर के व्यापारी यहां पर व्यापार करने आते थे; परन्तु ताडका नाम की एक यक्षकन्या ने उन दोनों राज्यों का विनाश कर दिया ।
ताडका कोई साधारण स्त्री नहीं है । वह सुन्द नाम के राक्षस की पत्नी और मारीच नाम के राक्षस की माता है । उसके शरीर में हजार हाथियों के बराबर बल है और वह अत्यन्त पराक्रमी है । ताडका ने अपने पुत्र मारीच के साथ मिलकर यहां के सभी निवासियों को मार कर खा लिया । उनके भय से अब यहां दूर तक कोई मनुष्य दिखाई नहीं देता । भूल से यदि कोई आए तो वह जीवित नहीं लौट पाता । उसी ताडका का संहार करने के लिये मैं तुम्हें यहां लाया हूं ।’’
श्रीराम ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘गुरुदेव ! स्त्री होकर भी ताडका में हजार हाथियों का बल कैसे आ गया ? इसका क्या रहस्य है ?’’
गुरु विश्वामित्र बोले, ‘‘वत्स ! सुकेतु नाम के एक यक्ष ने संतान प्राप्ती के लिए ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की । उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने सुकेतु को वर दिया, जिससे ताडका का जन्म हुआ ।
सुकेतु ने ब्रह्माजी से ताडका अत्यंत बलशाली हो ऐसे भी वर मांगा था । उसपर ब्रह्माजी ने ताडका के शरीर में हजार हाथियों का बल दे दिया । शक्तिशाली ताडका बडी होने पर सुकेतु ने उसका विवाह सुन्द नामक राक्षस से कर दिया । ताडका ने मारीच को जन्म दिया । मारीच भी अपनी माता के समान बलवान और पराक्रमी है । बालक था तभी से वह बहुत उपद्रवी था, ऋषि मुनियों को अकारण कष्ट दिया करता था । इसलिए अगस्त्य ऋषि ने उसे राक्षस बन जाने का शाप दे दिया ।
अगस्त्य ऋषि ने मारिच को शाप देने पर सुन्द अत्यन्त क्रोधित हो गया । वह अगस्त्य ऋषि को मारने दौडा । तब अगस्त्य ऋषि ने सुन्द को शाप देकर तत्काल भस्म कर दिया ।
ताडका ने पति की मृत्यु का बदला लेने के लिए अगस्त्य ऋषि पर आक्रमण किया । तब अगस्त्य ऋषि ने शाप देकर ताडका का सौन्दर्य नष्ट कर उसे अत्यंत कुरूप बना दिया । ताडका ने स्वयं के कुरुप बनने का और पति की मृत्यु का बदला लेने के लिए अगस्त्य मुनि के आश्रम को नष्ट करने का प्रण लिया है । अब मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि तुम ताडका का वध करो । केवल तुम ही इसका वध कर सकते हो । यह ना सोचो कि मैं स्त्री का वध कैसे करूं ? वह पापी है और पाप को नष्ट करने में कोई पाप नहीं होता । संशय को त्याग कर मेरी आज्ञा से तुम इस पापिनी का संहार कर दो ।’’
गुरुदेव की आज्ञा से श्रीराम ने अपने धनुष पर बाण रखा और धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींच कर भयंकर टंकार किया । वह ध्वनि पूरे वन में गूंज उठी । वन्य प्राणी भयभीत होकर इधर उधर भागने लगे । वनमें खलबली मची देखकर ताडका क्रोधित हो गई ।
धनुष ताने श्रीराम को देखकर ताडका उन पर आक्रमण करने के लिए तीव्र गति से आगे बढी । ताडका को अपनी ओर आते देख कर श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, ‘‘लक्ष्मण यह राक्षसी बडी हिंसक है । तुम एक ओर सावधान होकर खडेे हो जाओ ।’’
विकराल ताडका बिजली के जैसी राम और लक्ष्मण पर अत्यन्त गति से आक्रमण करे इससे पहले ही श्रीराम ने तीक्ष्ण बाण चला कर ताडका का हृदय छलनी कर दिया । उसके शरीर से रक्त की धारा बहने लगी । वह पुन: आक्रमण करेेे इससे पहले ही श्रीराम ने एक और बाण चला दिया जिससे ताडका पीडा से चीखती हुई चक्कर खाकर भूमि पर गिर पडी । अगले ही क्षण उसके प्राण चले गए ।
श्रीराम के इस पराक्रम से गुरु विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न हो गए और उन्होंने प्रभु श्रीरामजी को आशीर्वाद दिए ।