पुरुषोत्तम मास मे भगवान श्रीकृष्णजी की उपासना की जाती है । श्रीकृष्ण भगवान श्रीविष्णु के अवतार हैं ।
भगवान श्रीविष्णु सृष्टी के पालनकर्ता हैं । सभी प्रकार के कष्ट और संकटों से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री विष्णुजी ने मनुष्य को कर्मों को ही महत्ता बताई है । हम जैसा कर्म करते हैं वैसा हमारा भविष्य होता है । यदि हमने अच्छे कर्म किए अर्थात किसी की सहायता की तो हमे भी दुसरों की सहायता मिलती है ।
मेरे भाग्य में ऐश्वर्य है, ऐसा केवल विचार करते रहने से किसी को ऐश्वर्य नही मिलता है । उसके लिए मेहनत करनी पडती है । भाग्य क्या है और कर्म कैसे करना चाहिए यह अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कथा है ।
एक बार नारद मुनि श्रीविष्णुजी के वैकुंठ धाम गए । वहां नारद मुनि ने श्रीहरि से कहा, ‘‘प्रभु, मुझे पृथ्वी पर कुछ विपरीत परिस्थिती दिखाई दी । जो धर्म का पालन करता है, उसे अच्छा फल नहीं मिलता और जो पाप कर रहे हैं उसका भला हो रहा है ।’’
नारद जी बोले, ‘‘भगवान, मैंने स्वयं अपनी नेत्रों से देखा है । पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और धर्म के मार्ग पर चलनेवाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है ।’’ भगवान विष्णुजी ने कहा, ‘‘आपने क्या देखा ? कोई घटना बताओ ।’’
नारद मुनि ने कहा ‘‘प्रभु, अभी मैं एक जंगल से होकर आप के पास आया हूं । वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी । उसे बचाने कोई नहीं था । तभी एक चोर वहां से निकला । उसने गाय को फंसा हुआ देखा; परंतु उसने गाय को बचाया नहीं । अपितु गाय पर पांव रखकर दलदल लांघकर निकल गया । चोर वहां से आगे गया तो उसे मुद्राओं से भरी एक थैली मिली ।
थोडी समय के उपरांत वहां से एक वृद्ध साधु जा रहा था । उसने दलदल मे फंसे गाय को देखा । साधु ने गाय को बचाने का पूरा प्रयास किया । पूरे शरीर का बल लगा दिया और अत्यन्त कठिनाई से उसने गाय को बचाया; परन्तु वह साधु आगे गया तो स्वयं एक गड्ढे में गिर गया । प्रभु, बताइए यह कौनसा न्याय है ?’’
नारदजीकी बात सुनके प्रभु बोले, ‘‘नारद, जो चोर गाय पर पांव रखकर भाग गया था, उसके भाग्य में तो एक कोष अर्थात खजाना था । उसके इस पाप के कारण उसे केवल थोडासा धनही मिला । और साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी । साधु ने गाय को बचाया जिसके कारण साधु की मृत्यु होनेवाली थी वह मृत्यु टल गई और वह एक छोटी सी चोट में परिवर्तित हो गई ।’
बच्चों, जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा । चोर को धन अवश्य मिला जो उसके भाग्य मे था; परंतु यदि वो गाय को दलदल से बाहर निकालता तो भगवान उसपर कृपा करते ।
इस कथा से हमे यह सीखना चाहिए कि भगवान हमारे प्रत्याक कर्मों का फल देते हैं । यदि हमने सत्कर्म किए तो उससे हर प्रकार के दुख और संकटों से मनुष्य का उद्धार हो सकता है ।
भगवान विष्णुजी की बात से नारदजी को मानवजाति के उद्धार का मार्ग पता लग गया ।