स्वामी श्रीसमर्थ अपने भक्त श्री. चोळप्पा के आग्रह के कारण उनके घर रहने के लिए गए । एक दिन चोळप्पा के घर उनकी साली आई थी । रात्रि सोते समय उसने अपनी नथ बिस्तरपर रख दी और सो गई । चोळप्पा के भतीजे ने यह देखा । वह प्रतिदिन प्रातः उठकर बगीचे से फूल लाने जाता था । उस दिन बगीचे में जाते समय उसने नथ धीरे से चुरा ली । सुबह उठकर वह स्त्री देखती है, तो नथ नहीं । वह घबरा गई । उसने सभी स्थानोंपर ढूंढा; परंतु नथ नहीं मिली । बडे प्रयत्नों से उसके पति ने वह नथ उसके लिए बनवाया था । अक्कलकोटवासियों के लिए पुलिस, वैद्य, ज्योतिष सभी स्वामी श्रीसमर्थ ही थे । इसलिए अन्यों के समान वह भी स्वामी श्रीसमर्थजी के पास गई और रोते-रोते उसने नथ चोरी होने की बात कही । स्वामी श्रीसमर्थ उसे सांत्वना देते हुए बोले, ‘‘रो मत । शांत हो । यहां बैठो, तुम्हें तुम्हारी नथ मिल जाएगी ।” उस स्त्री ने आंसू पोंछे और वहां बैठ गई । एक घंटा गया । वह पुनः स्वामी श्रीसमर्थजी से प्रार्थना करने लगी । स्वामीजी ने कहा, ‘‘रूक जाओ । तुम्हें तुम्हारी नथ मिल जाएगी । घबराती क्यों हो ?” थोडे समय के उपरांत चोरी करनेवाला बच्चा फूल लेकर मंदिर में गया । उसके उपरांत घर आ गया । उसे देखकर स्वामी श्रीसमर्थ बोले, ‘‘अरे, वह रो रही है । उसकी नथ उसे लौटा दो ।” यह सुनकर वह दंग रह गया; किंतु स्वयं को संभालकर कहने लगा, ‘‘कैसी नथ, मुझे कुछ भी पता नहीं है ।’’ यह सुनकर स्वामी श्रीसमर्थ एकदम क्रोधित हो गए । उंचे स्वर में बोले, ‘‘सुबह बिस्तर से उठाई हुई नथ उसे लौटा दो” । स्वामी श्रीसमर्थ क्रोधित हुए देख लडके ने नथ चुपचाप लौटा दी ।
बच्चों, संत सर्वज्ञ होते है, यह इस कथा से आपके ध्यान में आ ही गया होगा । संतों से कुछ भी छुप नहीं सकता । चोरी करना, झूठ बोलना यह महापाप है । हमें लगता है, ईश्वर को कुछ नहीं पता; परंतु ऐसा नहीं होता । किया हुआ पाप कभी न कभी सामने आ ही जाता है । अतः निरंतर सच्चाई से रहें ।