बच्चों, माता दुर्गादेवी ने नौ दिन महिषासुर से घनघोर युद्ध किया था । इसी कारण नौ दिन देवी का जागर करते हैं । देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है । मां दुर्गा साक्षात भगवान की शक्ति है । लाल रंग के वस्त्र पहने हुए, अपने आठ हाथों मे विविध अस्त्र-शस्त्र धारण कर अष्टभुजा कहलानेवाली और अपने भक्तों की रक्षा करनेवाली देवी माता का उग्र रूप हम सभी ने देखा है । परन्तु माता दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा के लिए उग्र रूप धारण करती है । अपने भक्तों को वे अपनी संतान मानती है तथा उन पर बच्चों के समान प्रेम करती है इसलिए उन्हें वात्सल्यस्वरूप माता भी कहा जाता है ।
मां दुर्गा की निर्मिती अनेक देवताओं से हुई है । उनकी देह का प्रत्येक अवयव एक-एक देवता की शक्ति से बना है । इस देवी की निर्मिती कैसे हुई यह कथा आज हम सुनेंगे ।
महिषासुर नें अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग लोक छीन लिया था । तब सारे देवता मिल कर भगवान श्री विष्णु और भगवान शिवजी से सहायता मांगने के लिए गए । देवताआें से महिषासुर की उदंडता जान कर भगवान विष्णु और भगवान शिवजी क्रोधित हो उठे । तभी देवताआें के मुख से दिव्य तेज प्रकट हुआ । इस तेज से एक देवी की निर्मिती हुई । जो साक्षात तेजरूपी दुर्गादेवी है ।
भगवान शिवजी के तेज से देवी का मुख बना । यमराज के तेज से केश बने । भगवान विष्णु के तेज से देवी की भुजाएं बनी । चंद्रमा के तेज से वक्ष स्थल की रचना हुई । सूर्यदेव के तेज से पैरों की उंगलियों की रचना हुई । कुबेरदेव के तेज से नाक की रचना हुई । प्रजापतिदेव के तेज से दांत बने । अग्निदेव के तेज से तीन नेत्रों की रचना हुई । संध्या के तेज से भृकुटी बनी । वायुदेव के तेज से कानों की उत्पति हुई ।
दुर्गा मां दिव्य रूप में प्रकट होने के बाद पूरे देव गणों नेउन्हें शस्त्रों से सुुशोभित किया । भगवान विष्णुजी ने दुर्गादेवी को अपना सुदर्शनचक्र दिया । भगवान शिवजी ने त्रिशूल दिया । अग्निदेव ने देवी को अपनी प्रचंड शक्ति प्रदान की । वरुणदेव ने उन्हें शंख दिया । इन्द्रदेव ने वज्र और घण्टा अर्पित की । पवनदेव ने धनुषबाण दिए । यमराज ने काल दंड अर्पण किया । प्रजापति दक्ष ने स्फटिकों की माला अर्पण की । भगवान ब्रह्मा ने कमंडल दिया । सूर्यदेव ने असीम तेज प्रदान किया । सरोवर ने कभी भी न मुरझानेवाली कमल की माला प्रदान की । पर्वतराज हिमालय ने सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेंट किया । कुबेरदेव ने मधु से भरा एक दिव्य पात्र दिया । समुद्रदेव ने माता दुर्गा को एक उज्ज्वल हार, दो दिव्य वस्त्र, एक दिव्य चूडामणि, दो कुंडल, दो कडे, अर्धचंद्र, एक सुंदर हंसली एवं उंगलियों में पहनने के लिए रत्नजडित अंगूठियां दी ।
शस्त्रों से सुसज्जित माता दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिन और नौ रात्रि भीषण युद्ध किया और उसे परास्त कर उसका वध कर दिया । उसके पश्चात दुर्गा मां ने स्वर्गलोक पुनः देवताओं को सौंप दिया । बलशाली महिषासुर का वध करने के बाद दुर्गा माता महिषासुरमर्दिनी के नाम से प्रसिद्ध हुई ।