छत्रपति शिवाजी महाराज को पांच मुगल बादशाहों के साथ युद्ध करना पडा था । उसके बाद उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की थी । उनमें से एक था विजापुर का बादशाह आदिलशाह । आदिलशाह के सभा में उनका एक अत्यंत क्रूर सरदार था, जिसका नाम अफजलखान था । शत्रुपर विजय प्राप्त करने के लिए वो कुछ भी करता था, जिसके कारण आदिलशाह के सभा में उसका विशेष पद था । आदिलशाह को लगता था कि, शिवाजी महाराज को हराना आवश्यक है इसलिए वह कोई उपाययोजना सोच रहा था ।
छत्रपति शिवाजी महाराज की विशेषता क्या थी ? वे ‘गनिमी कावा’ इस युद्धनीति से अपने शत्रुपर विजय पाते थे । शिवाजी महाराजजी को हराने के लिए आदिलशाह की मां ने एक दिन दरबार में एक बीडा रखवाया । दरबार में उन्होंने कहां, ‘‘जो कोई सिवाजी को बंदी बनाकर उसके राज्य पर कब्जा करेगा । उसे इनाम दिया जाएगा ।’’ दरबार के अनेक सरदार शिवाजी महाराजजी की उत्तम युद्धनिती को जानते थे और उनसे डरते थे । इसलिए कोई आगे नहीं आया । कुछ समय बाद अफजलखान ने वह बीडा उठाकर कहा, ‘‘मैं लाऊंगा शिवाजी को !’’
आदिलशाह ने मराठों पर कब्जा करने के लिए अफझल खान को भेजा । अफजलखान अत्यंत अहंकारी था । उसे लगता था की छोटे से राजा शिवाजी को मै यूं ही मृत्यू के घाट उतार दूंगा । एक लाख सैनिकों की बडी सेना लेकर वह महाराष्ट्र की ओर बढा । अफजल खान ने महाराष्ट्र में अनेक हिन्दु देवताओं के मंदिरों को तोडा । उसने मंदिर की धन संपदा को लूटा । अफजलखान और उसके सैनिकोंने लोगों पर अत्याचार किए । महिलाओं पर अत्याचार किया । हिन्दुओं के घरों में आग लगाई । उस समय छत्रपती शिवाजी महाराज जी प्रतापगड पर थे । उन्हे अफजल खान ने मचाए आतंक की वार्ता मिली ।
शिवाजी महाराजजी को पता था कि युद्ध हुआ तो मराठों की बडी हानि हो सकती है । इसलिए उन्होंने अफजल खान का चतुराई से सामना करने का निर्णय लिया । अफजलखान को गुमराह करने के लिए उन्होंने उसे पत्र लिखा । उसमे उन्होंने लिखा की, ‘‘मैं आपकी सेना के साथ युद्ध नहीं कर सकता । मेरे पास इतनी बडी सेना नहीं है ।’’ वह पत्र देखकर अफजलखान जोर से हंसने लगा । उसने शिवाजी महाराजजी को मिलने के लिए बुलाया । परन्तु महाराज ने बहाना बनाकर उस बात को टाल दिया । इससे अफझल खान को विश्वास हो गया कि शिवाजी महाराज उससे घबरा गए हैं । अफजल खान ने उन्हें केवल मिलने के लिए आने का पत्र लिखा । पत्र में यह भी लिखा की ‘मुझे तुमसे मिलना है । मुझसे घबराओ मत । मिलते समय मेरा कोई भी सैनिक वहां उपस्थित नही रहेगा । तुम मेरी शरण में आओ और मुझसे मित्रता कर लो ।’
स्वराज की रक्षा के लिए शत्रु को हराना आवश्यक था । इसलिए शिवाजी महाराजजी ने इस संदेश का स्वीकार किया और प्रतापगड के नीचे अफझल खान से मिलने का स्थान निश्चित किया । अफजल खान को मिलने जाने से पहले छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने माता भवानी और मां जिजाऊ को प्रणाम कर विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया । उसके बाद शिवाजी महाराज भेट के निश्चित स्थान पर पहुंचे । अफजल खान शिवाजी महाराज को देखकर बोला, ‘‘आओ शिवाजी, मेरे गले लग जाओ । आओ ।’’
मीठी बात बोलनेवाले अफझल खान ने अपने हाथ में चाकू बांधकर रखा था । जिससे वो शिवाजी महाराज पर आक्रमण करनेवाला था । शिवाजी महाराज को सामने देख उसे लगा की शिवाजी तो अत्यंत छोटा है । गले मिलते ही मैं उन्हें अपने बाजूओं से मसल दूंगा । जैसे ही अफजल खान शिवाजी महाराज से गले मिला उसने महाराज को अपने बाजूओं मे कसकर पकडा । अपने हाथ में बंधा चाकू उसने शिवाजी महाराजजी की पीठ में घोपने का प्रयास किया । परन्तु शिवाजी महाराज भी अत्यंत चतुर थे । वे जानते थे कि अफजल खान षड्यंत्री था । उन्हें यह भी ज्ञात था की अफजल खान विश्वासघात करेगा । उन्होंने अफजल को झूठा विश्वास दिलाया था की वे डर गए हैं । परन्तु उन्होंने कपडों के नीचे चिलखत अर्थात लोहे का अंगरखा पहना था और हाथों में बाघनख पहने थे । अफजल खान ने जैसेही महाराज केे पीठ पर चाकू का वार किया, उसी समय शिवाजी महाराज ने अपने हाथों में पहने बाघनखों से अफजल खान का पेट चीर दिया । अफजलखान उसी समय भूमि पर गिर पडा । उसकी आवाज से पहरा देने वाले उसके सैनिक अंदर आए । अफजल खान को भूमि पर देख उन्होंने शिवाजी महाराजजी पर आक्रमण किया । शिवाजी महाराजजी के सैनिक भी तैयार थे । जिन्होंने अफझल खान के सैनिकों को मार दिया ।
इस प्रकार यह से असिम शौर्य से छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने एक इतिहास रचा और आतंकवाद को ऐसेही समाप्त करना चाहिए यह सीख विश्व को दी । यह दिन ‘शिवप्रताप दिन’ के नाम से प्रसिद्ध है । आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धनिती विश्वभर में प्रसिद्ध है । अनेक देश उनके युद्धनिती का अभ्यास कर अपनी सेना को दिशा देते हैं । हम भी छत्रपति शिवाजी महाराज के इस शौर्य का अभिमान रखेंगे और उनका स्मरण करेंगे ।
शिवाजी महाराजजी ने अफजलखान का वध करने के लिए बाघनख का उपयोग किया था । यह बाघ के नाखून से बना शस्त्र है ।
चिलखत यह लोहे से बना हुआ अंगरखा है । जिसे कपडों के नीचे पहना जाता है । इसी के कारण अफजल खान ने चाकू से वार करने पर शिवाजी महाराज जी को कोई चोट नही आई थी ।