प्राचीन काल की कहानी है । एक नदी के एक किनारे पूर्णानगर गांव था तथा नदी के दूसरे किनारे पर बसे गांव का नाम वेदनगर था । पूर्णानगर गांव में देवदास नाम के अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति रहते थे । वेदनगर गांव में एक सुनंदा नाम की महिला रहती थी । सुनंदा ईश्वर भक्त और श्रद्धालु थी तथा भोलीभाली थी। वह सदैव ईश्वर का नामजप किया करती थी । उसके पास दो गायें थी । उन गायों का दूध बेचकर वह अपना निर्वाह करती थी । वह प्रतिदिन दूध लेकर नाव से नदी पार करती तथा पूर्णानगर गांव में जाकर दूध बेचती थी । वह देवदास के घर भी दूध पहुंचाती थी ।
एक दिन सवेरे सुनंदा को देवदास के घर दूध पहुंचाने में विलंब हो गया । समय पर दूध न मिलने से देवदास नाराज हो गए थे । सुनंदा ने आते ही देवदास से विलंब के लिए क्षमा मांगी । देवदास ने उससे विलंब का कारण पूछा । वह बोली, मैं वेदनगर से एक नाव में बैठकर नदी पार करती हूं, तब यहां दूध पहुंचा पाती हूं । आज नाविक विलंब से आया, इसलिए मुझे भी विलंब हो गया तथा आपको भी दूध मिलने में विलंब हो गया ।
देवदास ने सुनंदा से कहा, ‘सुनंदा तुम तो नाविक की मदद के बिना भी नदी पार कर सकती हो । तुम तो ईश्वर भक्त हो और ईश्वर के नाम का जाप करती रहती हो । हरीनाम का जाप करनेवाला यह छोटी सी नदी तो क्या, संसार रूपी सागर भी पार कर सकता है ।
भोली भाली श्रद्धालुू सुनंदा ने पंडित की बात ध्यान से सुनी । उसी विचार में वह अपने गांव लौट गई । पूरा दिन वह भगवान के नाम की महानता के बारे में सोचती रही, जोकेवल छोटी सी नदी ही नहीं अपितु संसार रूपि सागर भी पार करवाता है ।’ इस विचार से उसके मन का भाव जागृत हो गया । उसे भगवान के प्रति कृतज्ञता भी लगने लगी ।
दूसरे दिन सुबह सुनंदा दूध पहुंचाने के लिए देवदास के घर पहुंच गई । वह नियमित समय से पहले ही दूध देने पहुंच गई थी । उसको देखकर देवदास ने पूछा, ‘सुनंदा, तुम तो आज समय से पहले ही आ गई । क्या आज नाविक समय से पहले ही आ गया?’ तब सुनंदा बोली कि कल आपने मुझे ईश्वर का नाम लेते हुए नदी पार करने हेतु कहा था, आज मैंने नाविक की प्रतीक्षा नहीं की । प्रभु का नाम लेते हुए नदी पर चल कर समय से पहले ही पहुंच गई ।
यह सुनकर देवदास चकित हो गए । उन्हें विश्वास नहीं हुआ । उन्होंने दुबारा सुनंदा से पूछा कि क्या वह सच में नदी के ऊपर से चलकर आई है ? सुनंदा के हां कहनेपर उन्होंने उसे नदी पर चलकर दिखाने को कहा । । श्रद्धालु तथा भगवान की भक्त सुनंदा और देवदास नदी किनारे आ गए ।
देवदास ने सोचा, यदि मेरे कहने पर केवल नामजप करने से यह नदी पार कर सकती है, तो मैं भी कर सकता हूं । परंतु देवदास अपने कपड़ों के गीले होने को लेकर अत्यधिक चौकस थे । भगवान का नाम तो ले रहे थे परंतु उनका ध्यान कपडों की ओर था । इसलिए जैसे ही देवदास ने पानी में पैर रखा, वह नदी में गिर पड़े । उन्होंने सुनंदा की ओर देखा; परंतु वह तो भगवान की धुन में पानी पर चलकर वेदनगर की ओर बढ रही थी । देवदास का ध्यान ईश्वर से अधिक अपने कपड़ों पर था । मन में अन्य विचार लेकर भगवान का नाम लेंगे तो क्या वह श्रद्धा कहलाएगी ? नहीं ना ? देवदास ने सुनंदा को नामजप का महत्व तो बताया था परंतु उसे कभी आचरण में नहीं लाया था । इसलिए श्रद्धा के अभाव में देवदास नदी चलकर पार नहीं कर पाया । सुनंदा श्रद्धारूपी नाव में बैठकर पैदल हीनदी पार कर गई ।
इस कहानी से हमें सीखने को मिला कि, जो भक्त भगवान का नाम पूरी श्रद्धा और लगन से लेता है, भगवान उसकी सहायता करते ही हैं । केवल शास्त्रों को पढने से कुछ नहीं होता । पूरी श्रद्धा और विश्वास से उसे आचरण में लाना पडता है । हम दूसरों को तभी बता सकते है, जब हम स्वयं वह आचरण में लाते है ।