यह प्राचीन काल की बात है । एक नगर में आलोक नामक एक स्वर्णकार रहते थे । सोने के आभूषण बनानेवाले को स्वर्णकार कहते हैं । आलोक भगवान श्रीकृष्णजी के अनन्य भक्त थे । वे सदैव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और संतसेवा करते रहते थे ।
आलोक जिस नगर में रहते थे, वहां की राजकुमारी का विवाह था । राजा को राजकुमारी के लिए सोने की पायलें बनवानी थी । उन्होंने स्वर्णकार आलोक को बुलाया तथा आलोक स्वर्णकार को सोना देकर विवाह से पूर्व पायलें बनाने का आदेश दिया ।
आलोक एक भगवद्भक्त थे तथा प्रतिदिन उनके घर पर अनेक संत महात्मा आते थे । आलोक भी संत महात्माओं को भगवान मानकर उनकी यथोचित सेवा सत्कार करते थे । आलोक संतों की सेवा में इतने व्यस्त रहते थे कि दिनभर में उनको अपने अन्य कार्यों के लिए थोडा सा भी समय नहीं मिल पाता था । इसलिए वह आभूषण नहीं बना पाए थे ।
राजा आभूषण के लिए स्वर्णकार आलोक के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे । राजकुमारी के विवाह में केवल दो दिन शेष रह गए थे; परंतु अभी तक आलोक ने पायलें राजा तक नहीं पहुंचाई थीं । इसपर राजा को बहुत गुस्सा आया । उसने अपने सैनिकों को आलोक को पकडकर लाने का आदेश दिया । सैनिकों ने राजा के आदेश का पालन करते हुए, कुछ ही समय में भक्त आलोक को राजाके सम्मुख लाकर खडा कर दिया । राजा ने आलोक से ऊंची आवाज में कहा, ‘आलोक तुमने अभी तक पायलें बनाकर नहीं दी हैं, राजकुमारी के विवाह में केवल दो दिन शेष रह गए हैं, तुब कब तक बना कर दोगे ?’ आलोक बोला , ‘महाराज ! अभी राजकुमारी के विवाह में दो दिन शेष हैं । अब थोडा ही काम शेष रह गया है, मैं आपको समय से पूर्व पायल बनाकर दे दूंगा । यदि मैं ठीक समय पर पायल बनाकर न ला पाऊं तो आप मुझे जो चाहे वह दंड दे सकते हैं ।’ राजा ने आलोक को पायल बनाने के लिए और समय दे दिया ।
राजकुमारी के विवाह का दिन भी आ गया, परंतु संतसेवा के कारण भक्त आलोक अभीतक पायलें नहीं बना पाए थे । वह जानते थे कि समय पर राजा को आभूषण न मिलने के कारण अब तो राजा मुझे अवश्य ही मृत्यु दंड देंगे । वह भगवान के मंदिर में जाकर उनके चरणों के पास बैठ गए ।
आलोक ने आभूषण नहीं पहुंचाए थे, इसलिए राजा के चार-पांच सैनिक आभूषण लेने के लिए आलोक के घर आए । परंतु भक्त आलोक तो भगवान के मंदिर में उनकी शरण में ध्यानमग्न होकर बैठे हुए थे । आलोक तो भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे । भगवान श्रीकृष्णजी उनकी चिंता को जानते थे । अपने भक्त पर आए हुए संकट को देखकर उन्होंने अपनी एक अद्भुद लीला की । अपने सच्चे भक्त की सहायता करने के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्णजी ने आलोक का रूप धारण कर लिया और आलोक के घर में प्रकट हो गए । आप तो जानते ही हैं कि भगवान सर्व शक्तिमान होते हैं, उन्होंने अपने संकल्प से ही अतिसुंदर पायलें बना दीं ।
राजा के सिपाही आलोकरूपी भगवान को पकडकर राजा के पास लेकर पहुंचे । आलोक ने राजा को पायलें प्रदान की । सुंदर पायल देखते ही राजा अत्यधिक प्रसन्न हो गए । राजा ने आलोक रूपी भगवान को मूल्यवान पुरस्कार देकर बिदा किया ।
आलोक का रूप धारण किए भगवान श्रीकृष्ण राजा से मिला धन लेकर आलोक के घर आ पहुंचे । उन्होंने दूसरे दिन सुबह ही आलोक के घर पर बहुत बडा उत्सव किया । उसमें अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनाए । साधु-ब्राह्मणों को भोजन करवाया । उसके बाद भगवान ने एक संत का रूप धारण किया और साधु संतो के भोजन के बाद बचे हुए प्रसाद को झोली में भरकर वे पुन: मंदिर में प्रकट हो गए, जहां आलोक अभी भी ध्यान लगाकर बैठे थे । भक्त आलोक को वह प्रसाद देकर संत रूपधारी भगवान ने कहा, ‘वत्स, नगर में जो आलोक नाम का व्यक्ति रहता है, मैं उसके घर गया था । उसने कई साधु-संतों को भोजन करवाया है, दानधर्म किया है । मैं वहीं से यह भोजन लाया हूं, तुम इसे ग्रहण करो ।’
आलोक ने आश्चर्य से पूछा, कौन आलोक ? भगवान ने आलोक का पूरा वर्णन बताया । उन्होंने बताया कि आलोक द्वारा बनाए आभूषणों को देखकर राजा अत्यंत प्रसन्न हो गए और राजा से मिले पुरस्कार से आलोक ने बहुत दानधर्म किया । संत का रूप धारण किए हुए भगवान के वचन सुनकर आलोक के मन को अत्यंत शांति मिली । वह भगवान के प्रेम में मग्न अपने घर पहुंचे । घर पर साधु-संतो की चहल-पहल थी और घर भी धन-धान्य से भरा हुआ था । यह देखकर भक्त आलोक समझ गए कि यह सब उनके प्रभु की लीला है । भगवान ने उनपर बडी कृपा की और उसी कारण उनके भाग्य खुल गए ।