आज भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी के उत्पन्न होने की एक सुन्दर कहानी सुनते हैं । हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में सदैव बांसुरी रहती है । बांसुरी को मुरली भी कहते हैं । भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में मुरली होने के कारण उन्हें ‘मुरलीधर’ भी कहा जाता है । भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण संसार के पालनहार है, वह मनुष्य, पशु-पक्षी, सभी प्रकार के जीव, वनस्पति, पेड-पौधों सभी पर समानरूप से प्रेम करते हैं ।
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण एक बगीचे में वहां खडे हुए बांस के वृक्ष के पास पहुंचे । बांस के वृक्ष ने भगवान को नम्रता पूर्वक प्रणाम किया । वह भगवान के दर्शन पाकर अत्यंत प्रसन्न हो गया था । बांस ने कहा भगवन आज्ञा कीजिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ।
श्रीकृष्णजी बोले, ‘मुझे तुम्हारा जीवन चाहिए । मैं तुम्हें काटना चाहता हूं । बांस के वृक्षने अपना सिर झुकाया और वह बोला कि, ‘हे भगवान, आप की कृपा से ही मुझे यह जीवन मिला है । आपकी सेवा में मेरा यह जीवन समर्पित करने से मेरे तो भाग्य ही खुल गए, मेरे जीवन में इससे बडी और क्या बात हो सकती है । इस सृष्टि का प्रत्येक प्राणी आपके चरणों में आने की अभिलाषा रखता है । हे प्रभु, मैं कितना भाग्यवान हूं कि आप स्वयं ही अपने हाथों से मेरा उद्धार कर रहे हैं । जीवन का अंत तो कभी न कभी होनेवाला ही है । परंतु यदि वह प्रभुसेवा में अर्पित होता है, तो उस जीवन का उद्धार हो जाएगा । वृक्ष की बात सुनकर भगवान बोले, ‘देखो, यह बहुत कठिन है । इसमें तुम्हें बहुत पीडा होगी । तुम्हारे मन में ऐसा विचार आ सकता कि, मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं !’ बांस ने हाथ जोडकर कहा, ‘नहीं भगवन् ! मुझे होनेवाली पीडा को सहन करने की शक्ति भी आप ही देनेवाले हैं । मेरे प्राणों पर केवल आपका ही अधिकार है । मैं स्वयं को आपके चरणों में समर्पित करता हूं ।’
भगवान श्रीकृष्ण ने उस बांस को छोटे-छोटे टुकडों में काट दिया । प्रत्येक टुकडे पर श्रीकृष्णजी ने उसमें छेद बनाए । इस पूरी प्रक्रिया अर्थात काटने, तराशने और छेद करने में बांस को बहुत पीडा हुई; परंतु बांस ने वह संपूर्ण पीडा भगवान की कृपा से सहन की । कुछ समय पश्चात उस बांस का रूपांतर एक सुंदर बांसुरी में हो गया । भगवान ने स्वयं उस बांसुरी को अपने होंठों से लगाकर उससे मधुर धुन बजाई । भगवान श्रीकृष्ण अब इस बांसुरी को सदैव अपने पास रखने लगे । भगवान के हाथ में उस बांस को सुंदर बांसुरी के रूप में पाकर बांस को विश्वास ही नहीं हुआ कि उसको एक मनमोहक बांसुरी का रूप मिला गया है । उस रूखे बांस से बांसुरी बनने पर उससे मनमोहक सूर भी निकलने लगे हैं । और वह बांस भगवान श्रीकृष्ण जी के चरणों में बहुत कृतज्ञ हुआ ।
प्रत्येक क्षण बांसुरी को श्रीकृष्णजी के हाथ में देखकर गोपियां उस बांसुरी से कहती थी, ‘अरे, कृष्ण से तो हम भी बहुत प्रेम करते हैं और वह हमारे भी भगवान है, परन्तु फिर भी हमें उनके साथ केवल कुछ समय ही व्यतीत करने को मिलता है । बांसुरी, तू कितनी भाग्यशाली है कि श्रीकृष्ण तुमको अपने अधरोंसे लगाए रखते हैं, सोते है तो भी तू उनके साथ रहती है और उठते हैं तो भी तू उनके साथ होती है । तुम प्रत्येक क्षण उनके साथ रहती हो । तुमने ऐसी कौन सी तपस्या की है कि भगवान तुमको अपने हृदय से लगाकर रखते हैं । हमें भी इसका रहस्य बताओ ।
बांसुरी ने हंसकर परंतु प्रेम से उत्तर दिया,‘इसका रहस्य यह है कि मैं अंदर से खोखली हूं और मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं है अर्थात मेरा पूर्ण अहं भगवान के चरणों में समर्पित हो गया है ।
आपको इससे ध्यान में आया न, इसी को कहते हैं आत्मसमर्पण ! स्वयं को भगवान के चरणों में समर्पित कर उनकी इच्छा को सर्वश्रेष्ठ मानकर उसका पालन करना ही आत्मसमर्पण है । बांस ने जब स्वयं को समर्पित कर दिया तो उसे सुंदर, मनमोहक बांसुरी का रूप मिला और ईश्वर के हाथों में उसे स्थान मिला । ईश्वर को पता होता है कि हमारे लिए क्या सर्वोत्तम है । हमारे लिए जो सर्वोत्तम होता है, वही ईश्वर का नियोजन होता है । हम परीक्षा से, पीडा से घबराते हैं । पर हमें इस बात का भान नहीं होता है कि आने वाले समय में इसमें हमारा भला ही होनेवाला है । जब हम स्वयं को सम्पूर्ण रूप से ईश्वर के चरणों में समर्पित करते हैं तो प्रभु हमारा सारा भार अपने हाथ में ले लेते हैं और हमारे जीवन का कल्याण हो जाता है ।