यह बहुत पुराने समय की बात है । एक स्थान पर बहुत सारी भेड-बकरियां रहती थीं । वे हरी-हरी घास, लता और पेडों की पत्तियां चरने के लिए नियमितरूप से जंगल में जाती थीं । एक दिन क्या हुआ कि जब वह सभी भेड-बकरियां जंगल में चरने गयीं । उनमें से एक बकरी चरते-चरते एक लता में उलझ गई । उस लता में वह इस प्रकार से उलझ गई थी कि उसको वहां से निकलने में बहुत देर लग गई । जब तक वह बेल से बाहर निकल पाती, तबतक जंगल में अंधेरा भी हो गया था । अन्य सब भेड-बकरियां अंधेरा होने के पहले ही अपने-अपने घर वापस पहुंच गई थीं।
जंगल में अंधेरा होने के कारण वह बकरी जंगल से बाहर नहीं निकल सकती थी । इसलिए वह जंगल में ही यहां-वहां घूमने लगी और घूमते-घूमते एक सरोवर के किनारे पर पहुंच गई । वहां पहुंचने पर उसने देखा कि किनारे की जमीन की मिट्टी गीली है और उसपर सिंह के चरण का एक चिन्ह भी अंकित है । वह उस चिन्ह के निकट ऐसे बैठ गई कि जैसे कोई किसी के चरणों की शरण में जाकर बैठा हो । धीरे-धीरे जैसे-जैसे रात बढने लगी, जंगली सियार, भेडिया, बाघ आदि प्राणी सरोवर के किनारे पानी पीने के लिए आने लगे । वहां बैठी बकरी को देखकर वे उसे खाने की इच्छा से उसके पास आए । तब उस बकरी ने उन सभी को बताया कि, ‘मेरे निकट में किसके चरण का चिन्ह अंकित है, इसको आप सभी देख रहे हो न ? आप सभी यह पहले देख लेना कि मैं किसकी शरण में बैठी हुई हूं, उसके बाद मुझे खाने के बारे में सोचना !’ वे सभी जानवर उस चिन्ह को देखकर कहने लगे, ‘अरे, यह तो सिंह के चरण का चिन्ह है और यह बकरी इस चरण के चिन्ह की शरण में है, हम सभी को शीघ्रता से ही यहां से भागना चाहिए ! यदि यहां सिंह आ गया तो वह हम सभी को मार डालेगा ।’ इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर वहां वे भाग गए ।
रात बहुत अधिक होने पर, वही सिंह स्वयं उस स्थान पर आया जिसका की चरण-चिन्ह था । उसने देखा कि एक बकरी इतनी रात गए सरोवर के किनारे अकेली बैठी हुई है । उस सिंह ने बकरी से पूछा कि- ‘तू इतनी रात को जंगल में अकेली कैसे बैठी है ?’ बकरी ने सिंह से बिना डरे ही कहा, ‘पहले यह चरण-चिन्ह देख लेना और उसके बाद मुझसे बात करना । जिसका यह चरण-चिन्ह है, मैं उसीकी शरण में बैठी हुई हूं ।’ सिंह उस चरण चिन्ह को देख कर पहचान गया । वह मनही मन सोचने लगा, ‘अरे ! यह तो मेरा ही चरण-चिन्ह है । यह बकरी तो मेरे ही शरण में आई हुई है !’ सिंह ने बकरी को आश्वासन देते हुए कहा कि अब तुम डरो मत, निर्भय होकर यहां पर रहो ।
अंत में जब वहां जल पीने के लिये एक हाथी आया तो सिंह ने उस हाथी से कहा, ‘तू इस बकरी को अपनी पीठ पर चढा ले और इसको लेकर जंगल में प्रतिदिन चराकर लाया कर और प्रत्येक समय इसको अपनी पीठ पर ही रखा कर, समझा न तू ?’ सिंह की बात हाथी ने तुरंत मान ली । उसने बकरी को अपनी सूंड में लेकर झटसे अपनी पीठ पर चढा लिया । अब वह बकरी निर्भय होकर हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों के ऊपर की कोंपलें खाया करती और मस्त रहती । जहां इतना बलवान हाथी सिंह से डर गया वहां छोटीसी बकरी सिंह से डरे बिना इतने बडे संकट का सामना कितनी सहजता से कर पाई ।
खोज पकड सैंठे रहो, धणी मिलेंगे आय ।
अजया गज मस्तक चढे, निर्भय कोंपल खाय ॥
अर्थ : जिस प्रकार हम ईश्वर की शरण जाकर उनके चरणों को दृढता से पकडकर रखेंगे तो वह एक न एक दिन हमें अवश्य मिलेंगे । जिस प्रकार बकरी ने जंगल के सभी प्रणियों से डरे बिना सिंह के चरण चिन्ह को पकडकर अपने जीवन की रक्षा की और बाद में उसने हाथी के मस्तक पर चढ कर निर्भय होकर कोमल कोपलें खाईं । उसी प्रकार ईश्वर का नामस्मरण सतत करने से वह हमको प्रत्येक संकट से अवश्य बचायेंगे ।
जो जाको शरणो गहै, ताकहं ताकी लाज ।
उलटे जल मछली चले, बह्यो जात गजराज ॥
अर्थ : जो ईश्वर की शरण में जाता है, तो वह उसकी लाज अवश्य रखते हैं अर्थात ईश्वर को जिस भाव से स्मरण किया जाए, वह उसका उद्धार अवश्य ही करते हैं । जिस प्रकार वाल्या डाकू मरा-मरा जप करके भी वह ब्रह्म ऋषि बन गए । उसी प्रकार से एक बार हमारा नाता ईश्वर से जुड गया तो वह हमें कभी छोडते नहीं । ईश्वर भक्तों की पुकार सुनकर दौडे चले आते हैं ।