एक साधु महाराज श्री रामायणजी की कथा सुनाते थे । उनकी कथा सुनकर लोग आनंद विभोर हो जाते थे । साधु महाराज का एक नियम था, प्रतिदिन वह कथा प्रारंभ करने से पहले हनुमानजी को कथा सुनने के लिए आमंत्रित करते थे । वह जहां पर कथा सुनाते थे, वहां उन्होंने कथा के स्थान पर हनुमानजी को विराजनेके लिए आसन के रूप में एक गद़्दी भी रखी हुई थी । ‘‘आइए, हनुमंतजी विराजिए’’ यह कहकर हनुमानजी का आवाहन करते थे, उसके बाद एक घण्टा कथा सुनाते थे ।
एक महाशय प्रतिदिन रामकथा सुनने आते थे । वह भक्तिभाव से कथा सुनते थे । परंतु एक दिन उनके मन में विचार आया कि महाराज कथा आरंभ करने से पहले ‘‘आइए, हनुमंत जी बिराजिए’’ ऐसा कहकर हनुमानजी को बुलाते हैं, तो क्या वास्तव में हनुमान जी यहां पर आते होंगे ?’
एक दिन उन्होंने साधु महाराज से पूछ ही लिया, ‘महाराज, आप रामायण की कथा बहुत अच्छी सुनाते हैं । हमें बडा आनंद मिलता है, परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं, उसपर क्या हनुमानजी वास्तव में विराजमान होते हैं ?’
साधु महाराज ने कहा, ‘हां, यह मेरी श्रद्धा है । हनुमानजी का वचन है कि जहां रामकथा सुनाई और सुनी जाती है, वहां हनुमानजी अवश्य पधारते हैं । उस व्यक्ति ने कहा, ‘महाराज हनुमानजी यहांपर आते हैं, इसपर हम कैसे विश्वास करें ? आप इसका कोई ठोस प्रमाण दीजिए । आपको यह प्रमाणित करके दिखाना चाहिए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने के लिए प्रतिदिन आते हैं ।’
महाराज ने बहुत समझाया कि, आस्था को किसी प्रमाण की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए । यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है । आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूं अथवा आप कथा में आना छोड दो ।
परंतु वह व्यक्ति नहीं माना । महाराज से कहता ही रहा कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं । यह बात और स्थानों पर भी आप कहते होंगे, इसलिए महाराज आपको तो प्रमाणित करना ही होगा कि हनुमानजी कथा सुनने आते हैं ।
इस तरह दोनों के बीच विवाद होता रहा । अंत में साधु महाराज ने कहा, ‘हनुमान जी आते हैं अथवा नहीं इसका प्रमाण मैं कल आपको दूंगा । कल कथा प्रारंभ होने से पहले एक प्रयोग करेंगे । हनुमानजी को मैं जिस गद्दी पर विराजित होने को कहता हूं, आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना और कल अपने साथ वह गद्दी ले आना । उसके बाद मैं गद्दी यहां रखूंगा । कथा का आरंभ करने से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा । कुछ समय बाद आप गद्दी उठाकर देखना । यदि आपने गद्दी उठा ली, तो समझना कि हनुमानजी नहीं आए हैं ।’
वह व्यक्ति इस कसौटी के लिए तैयार हो गया । महाराज ने कहा, ‘हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ? यह तो सत्य की परीक्षा है ।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं गद्दी नहीं उठा पाया तो आपसे दीक्षा ले लूंगा । परंतु आप पराजित हो गए तो क्या करोगे ?’ साधु ने कहा, ‘मैं कथावाचन छोडकर आप का सेवक बन जाऊंगा ।’
अगले दिन कथा सुनने के लिए बहुत भीड एकत्रित हो गई । सारे लोग भक्ति, श्रद्धा, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आ पहुंचे ।
साधु महाराज और वह व्यक्ति कथा के स्थान पर आए । उस व्यक्ति ने गद्दी महाराज के हाथ में दी । प्रतिदिन हनुमानजी को विराजित होने के लिए जहां गद्दी रखते थे, उसी स्थान पर वह रखी गई ।
महात्मा जी ने आर्तता से मंगलाचरण किया और बोले, ‘‘आइए हनुमंत जी बिराजिए ।’’ ऐसा बोलते ही साधु महाराज की आंखों में आंसू आ गए । मन ही मन महाराज बोले, ‘हे प्रभु ! आज मेरी नहीं आपकी ही परीक्षा है । मैं तो एक साधारण सा व्यक्ति हूं । मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना, प्रभु ।’
साधु महाराज ने प्रार्थना की और उस व्यक्ति को गद्दी उठाने के लिए निमंत्रण दिया । सभीकी आंखे गद्दी पर जम गई ।
साधु महाराज बोले, ‘महाशय, आप गद्दी उठाइए ।’
उस व्यक्ति ने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढाया, परंतु आश्चर्य की बात यह है कि वह गद्दी को स्पर्श भी नही कर पा रहा था ! जो भी कारण रहा हो, उसने तीन बार हाथ बढाया, किन्तु तीनों बार गद्दी को स्पर्श भी नहीं कर पाया ।
महाराज देख रहे थे, गद्दी उठाना तो दूर वह व्यक्ति गद्दी को छू भी नहीं पा रहा था । तीनों बार प्रयास करने पर वह पसीने से तर-बतर हो गया । वह व्यक्ति समझ गया कि, यह साक्षात हनुमानजी का ही चमत्कार है और वह साधु महाराज के चरणों में गिर पडा और बोला, ‘महाराज गद्दी उठाना तो दूर, पता नहीं ऐसा क्या हो रहा है कि मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है । मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं ।’
जिस प्रकार उस व्यक्ति ने कहा था, उसी अनुसार उसने साधु महाराज से दीक्षा ली और भगवान की सेवा में जुड गया ।
कहते हैं कि श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है । प्रभु की मूर्ति पाषाण की ही होती है परंतु भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है और स्वयं प्रभु उसमें बिराजते हैं ।