हमे पता है कि प्रभु श्रीराम विष्णु के अवतार और मर्यादा पुरुषोत्तम थे । उनके अवतार काल मे उन्होंने अनेक राक्षसों का वध किया । श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण ने शूर्पणखा नामक राक्षसी का वध किया । अब हम यह कथा सुनेंगे ।
वनवास के समय प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पंचवटी नामक क्षेत्र पहुंचे । वहां पर अपने आश्रम में श्रीरामचन्द्र जी सीता के साथ सुखपूर्वक रहने लगे । एक दिन श्रीराम जी और लक्ष्मण बातें कर रहे थे । उसी समय वहाँ पर रावण की बहन शूर्पणखा नामक राक्षसी आ पहुंची ।
राक्षसी श्री राम के तेजस्वी मुखमण्डल, कमल-नयन तथा नीलाम्बुज सदृश शरीर की कान्ति को चकित होकर देख रही थी । श्री राम का मुख सुन्दर था किन्तु शूर्पणखा का मुख अत्यन्त कुरूप था । श्री राम के नेत्र विशाल एवं मनोहर थे किन्तु शूर्पणखा की आँखें कुरूप तथा डरावनी थीं । श्री राम की वाणी मधुर थी किन्तु शूर्पणखा की कर्कश थी । श्री राम का रुप मनोहर था किन्तु शूर्पणखा का रूप वीभत्स एवं विकराल था ।
राक्षसी श्री राम के मनोहारी रूप पर मोहित हो गई । वह अपनी इच्छा से स्वयं का रूप बदल सकती थी । राक्षसी मनोहर रूप बनाकर श्री राम के पास पहुंची । प्रभु राम से बोली, ‘‘तुम कौन हो ? राक्षसों के इस देश में तुम कैसे आ गए ? तुम्हारा वेश तो तपस्वियों जैसा है, किन्तु हाथों में धनुष बाण भी है । साथ में स्त्री भी है । तुम मुझे अपना परिचय दो ।’’
श्री राम ने सरल भाव से कहा, ‘‘हे देवी, मैं अयोध्या के चक्रवर्ती नरेश महाराजा दशरथ का ज्येष्ठ पुत्र राम हूं । मेरे साथ मेरा छोटा भाई लक्ष्मण और जनकपुरी के महाराज जनक की राजकुमारी तथा मेरी पत्नी सीता है । पिताजी की आज्ञा से हम चौदह वर्ष के लिये वनों में निवास करने के लिये आये हैं । अब तुम अपना परिचय दो । तुम कोई इच्छानुसार रूप धारण करने वाली राक्षसी लगती हो ।’’
राम के प्रश्न का उत्तर देते हुए वह राक्षसी बोली, ‘‘मेरा नाम शूर्पणखा है । मैं लंका के नरेश परम प्रतापी महाराज रावण की बहन हूं । विशालकाय कुम्भकरण और परम नीतिवान विभीषण भी मेरे भाई हैं । वे सब लंका में निवास करते हैं । पंचवटी के स्वामी खर और दूषण भी मेरे भाई हैं ।
मैं सर्व प्रकार से सम्पन्न हूं और अपनी इच्छा एवं शक्ति से समस्त लोकों में विचरण कर सकती हूं । तुम्हारी पत्नी सीता मेरी दृष्टि में कुरूप और विकृत स्त्री है । वह तुम्हारे योग्य नहीं है । मैं ही तुम्हारे अनुरूप हूं, इसलिए तुम मेरे पति बन जाओ ।’’
यह सुनकर श्री राम मुसकाते हुए बोले, ‘‘देवी, मैं विवाहित हूं और मेरी पत्नी मेरे साथ है । मेरा भाई लक्ष्मण यहां अकेला है । वह सुन्दर, शीलवान एवं बल और पराक्रम से सम्पन्न है । तुम चाहो तो उसे सहमत करके उससे विवाह कर सकती हो ।’’
तदोपरांत शूर्पणखा ने लक्ष्मण के पास जाकर अपने मन की बात बतााई । वह सुन कर लक्ष्मण ने बडी चतुरता से कहा, ‘‘सुन्दरी ! मैं प्रभु श्री राम का एक दास हूं । मुझसे विवाह करके तुम केवल दासी कहलाओगी । अच्छा यही है कि तुम श्रीराम से ही विवाह कर के उनकी छोटी भार्या बन जाओ ।’’
वह पुनः श्रीराम के पास जा कर क्रोध से बोली, हे राम ! इस कुरूपा सीता के लिए तुम मेरा विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर के मेरा अपमान कर रहे हो । इसलिए पहले मैं इसे ही मार कर समाप्त कर देती हूं ।
इतना कह कर क्रोधित हुई शूर्पणखा सीता पर झपटी । श्री राम ने उसके इस आक्रमण को तत्परतापूर्वक रोका और लक्ष्मण से बोले, इसने जानकी की हत्या ही कर डाली होती । तुम्हें इस राक्षसी का वध करना चाहिए !’’
श्रीराम की आज्ञा पाते ही लक्ष्मण ने तत्काल खड्ग निकाला और दुष्टा शूर्पणखा के नाक और कान काट डाले । पीडा और घोर अपमान के कारण रोती हुई शूर्पणखा वहांसे चली गई ।