श्री गोविन्द प्रभु का जन्म ऋद्धिपुर के पास काटसरे गाँव में अनंतनायक और नेमाईसा नामक ब्राह्मण दंपत्ति के यहां हुआ था । गोविंद प्रभु के जन्म से पहले इस दंपति के कई बच्चे हुए किंतु वे जीवित नहीं रहते थे । इसलिए अनंतनायक और नेमाईसा बहुत दुखी रहते थे । अंतमे श्री गोविंद प्रभु का जन्म हुआ । किंतु कुछ समय उपरांत उनके माता-पिता का निधन हो गया ।
तब श्री गोविंद प्रभु को उनके मामा, मौसी ने पाला । कुछ समय उपरांत मामा-मौसी उन्हें ऋद्धिपुर लेकर गए और वही श्री प्रभु की कर्मभूमी बन गई ।
छोटे गोविंद प्रभु ने बोपदेव उपाध्याय से वेदों का अध्ययन आरंभ किया । गुरु के आश्रम मे प्रभु का वेदों का अध्ययन चल रहा था, तब हर कोई उनकी तेज बुद्धि से परिचित होने लगे थे । क्योंकि वे बिना पढ़े ही वेदों को आत्मसात कर लेते थे । यदि किसी बच्चे को कुछ सिखने के लिए १ माह लगता था, वही श्री गोविंद प्रभु वह एक दिन मे सिख लेते थे । किसीको १ वर्ष लगता था, वही श्री प्रभु वह १ माह मे सिख लेते थे ।
उनके सहकारी मित्र वन से अपनी पीठ पर घास की एक-एक गठरी उठाकर लाते थे, वहीं दूसरी ओर गोविंद प्रभु की घास की गठरी आकाश मे उड कर आती थी । उनके इस चमत्कार को देखकर गांव के सभी लोगों को पता चल गया था कि वे भगवान के अवतार हैं ।
तेज बुद्धिमत्ता के साथ-साथ उनमें आज्ञापालन गुण भी था । उनका जीवन बहुत ही सरल था । वह गाँव में भिक्षा मांगते थे ।
गांव मे घुमते समय बीच मे ही हंसकर ताली बजाते, स्वयं से बातें करते थे । वे स्वयं भगवान का स्मरण कर आनंद में रहते थे और लोगों को भी आनंद देते थे ।
श्री गोविंद प्रभु की लीलाओं से लोग प्रभावित हो जाते थे । उनकी किर्ती दूर-दूरतक फैली थी । चक्रधर स्वामी ने उन्ही की प्रेरणा से महानुभव संप्रदाय की स्थापना की । भगवान श्रीकृष्ण, श्री दत्तात्रेय प्रभु, श्री चांगदेव राऊळ, श्री गोविंद महाप्रभु और श्री चक्रपाणि ये सभी महानुभवों के पाँच कृष्ण अवतार हैं ।