भगवान श्रीविष्णु जगद़्पालक है । अपने भक्तों के साथ वह सभी जीवों का पालन करते है । वह करूणाकर भी है अर्थात ‘सभी का कल्याण हो’ ऐसे उन्हे लगता है । इसलिए अगर किसी मनुष्य से अयोग्य कृती या पाप हुआ हो तो उस पाप से भी मुक्त करते है ।
गयासुर को ब्रह्माजी से भी वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु संसार मे जन्म लेनेवाले किसी भी व्यक्ती के हाथों नही होगी ।
अब तो वरदान पाने के बाद गयासुर की शक्ती तो बढ गयी । उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया ।
एक दिन वो द्वारका वन से गुजर रहा था । बडी दूरसे आने के कारण वह थक गया था । तब उसने एक महात्मा को तपस्या करते देखा । थके हुए गयासुर को प्यास भी लगी थी । अपनी प्यास बुझाने के लिए गयासुर ने तपस्वी से उनका रक्त मांगा ।
परंतु तपस्वी ने उसे मुक्ति का ज्ञान दिया । उन्होंने कहा, ‘‘मुक्ति पाने के लिए तुम बद्रीनाथ में नारायण अर्थात श्री विष्णु के दर्शन लो ।’’
गयासुर बद्रीनाथ पहुंच गया । परंतु भगवान श्री विष्णु तो मंदिर में नही थे । उन्हें मंदिर मे न पाकर वह उनका कमलासन लेकर बद्रीनाथ से जाने लगा । उसी समय वहां पर श्री विष्णु प्रकट हुए । उन्होंने आकाश में ही गयासुर के केश पकडकर उसे रोक लिया और अपनी गदा से गयासुर पर पहला प्रहार किया । तब गयासुर उसके हाथों मे जो नारायण का कमलासन था उसे आगे कर दिया । जिससे आसन का एक टुकडा बद्रीनाथ के पास गिरा । जिस जगह श्रीविष्णू के कमलासन का टुकडा पडा वह आज ‘ब्रह्मकपाल’ नाम से प्रसिद्ध है । वहां पर पितृपक्ष मे लोंग पूर्वजों को पिंडदान करते हैं ।
भगवान श्री विष्णु ने गयासुर पर दुसरा वार किया । उस वार के कारण कमलासन का दुसरा टुकडा गिर पडा । वह स्थान ‘नारायणी शिला’ के नाम से प्रसिद्ध है और वह हरिद्वार मे है । यहां पर भी पिंडदान किया जाता है ।
भगवान श्री विष्णु के तिसरे प्रहार से कमलासन का तीसरा टुकडा भी टूट कर गिर गया । वह स्थान ‘विष्णु चरण’ या ‘विष्णु पाद’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया । यह स्थान है बिहार की गया भूमि ।
कमलासन के नष्ट होने के बाद गयासुर श्रीमन्नारायण की शरण में गया । उसने भगवान से प्रार्थना की ‘हे प्रभु आप मुझे मुक्ति दिजिए ।’
करुणाकर श्री विष्णु ने गयासुर को आशीर्वाद दिया और वे बोले, ‘‘ जिन तीन स्थानों पर मेरा कमलासन गिरा है, वहां पूजा करने से तुम्हें मुक्ति मिलेगी । इन तीन स्थानों पर पिंडदान करने से उस जीव को मुक्ति मिलेगी ।’’
इसिलिए भारत मे बद्रिनाथ के पास होनेवाला ब्रह्मकपाल, हरिद्वार मे नारायणी शिला और बिहार राज्य की गया में विष्णूपाद इन तीन स्थानों पर पितरों के लिए पिंडदान करने का बडा महत्त्व बताया जाता है ।