संत ज्ञानेश्वरजी का योग सामर्थ्य !

संत ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वरजी महाराष्ट्र के महान संत थे । नाम के अनुसार ही वे अत्यंत ज्ञानी थे । जब उनकी आयु १५ वर्ष की थी, तब उन्होंने ज्ञानेश्वरी लिखी थी ।

संत ज्ञानेश्वरजी के दो भाई और एक बहन थे । उनके पिताजी ने संन्यास ले लिया था; परंतु उनके गुरु की आज्ञासे उन्होंने पुनः गृहस्थाश्रम स्वीकार किया था । इसलिए उस समय संन्यासी की संतान कहकर लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया था । संत ज्ञानेश्वरजी के पिताजी अपने बच्चों का उपनयन करना चाहते थे; परंतु उनका उपनयन संस्कार करने से पुरोहितों ने मना कर दिया तथा उन्हें देहांत का प्रायश्चित लेने को कहा । संत ज्ञानेश्वर के पिता और माता ने जलसमाधि ले ली थी । अब आळंदी के पुरोहितों ने उन सभी को पैठण क्षेत्र जाकर शुद्धि पत्र लाने के लिए कहा तथा बोले कि शुद्धि पत्र लाने पर ही उनका उपनयन संस्कार हो पाएगा । संत ज्ञानेश्वर अपने भाई-बहन के साथ शुद्धि पत्र लाने के लिए महाराष्ट्र के पैठण गांव पहुंचे । वहां वे एक ब्राह्मण के घर में निवास कर रहे थे ।

संत ज्ञानेश्वरजी जिस ब्राह्मण के घर में रहते थे, उस ब्राह्मण के पिता का श्राद्ध था । संत ज्ञानेश्वरजी और उनके भाई-बहन उस ब्राह्मण के घर में रहने के कारण वहां के पुरोहितों ने उस ब्राह्मण का बहिष्कार कर दिया था । कोई भी पुरोहित उस ब्राह्मण के घर श्राद्ध करने के लिए नहीं जा रहा था । गांव के पुरोहित ब्राह्मणों ने भी श्राद्ध के भोजन को आने के लिए मना कर दिया था ।

वह ब्राह्मण चिंतित हो गया । क्योंकि पुरोहितों द्वारा श्राद्ध नहीं किया गया, पितरों अर्थात पूर्वजों को गति नहीं मिल पाएगी । पितरों के लिए कुछ करने का केवल यही समय रहता है, परंतु श्राद्ध नहीं किया तो वे दु:खी हो जाएंगे, इसकी चिंता उस ब्राह्मण को थी । यह समस्या लेकर वह ब्राह्मण ज्ञानेश्वरजी के पास गए । ब्राह्मण ने उन्हे पूरा वृत्तांत बताया ।

ब्राह्मण की समस्या सुनकर ज्ञानेश्वरजी बोले, ‘‘आप चिंता न करें ! मैं आपके पितरों को अर्थात पूर्वजों को ही यहां भोजन के लिए बुलाता हूं ।

पुरोहितों ने श्राद्ध नहीं किया तो भी आपके पितर आकर भोजन करेंगे और यहां से तृप्त होकर लौटेंगे । आप केवल श्रद्धापूर्वक उनके लिए भोजन की सिद्धता करें ।’’

ब्राह्मण ने अत्यंत श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के लिए भोजन की संपूर्ण सिद्धता की । ज्ञानेश्वरजी ने अपने योग सामर्थ्य से उस ब्राह्मण के सभी पितरों को बुलाया । संत ज्ञानेश्वरजी ने बुलाने पर उस ब्राह्मण के सभी पितर वहां पर आ गए और उन्होंनें श्राद्ध का भोजन ग्रहण किया ।

पितरों ने भोजन ग्रहण करने के बाद ज्ञानेश्वरजी ने सभी पितरों की ओर देखकर कहा, ‘स्वस्थाने वासः !’ उनके इतना कहते ही पितर वहां से अदृश्य हो गए अर्थात उनके स्थान पर लौट गए !

यह वार्ता पूरे पैठण में फैल गई । सभी पुरोहितों को अपने दुर्व्यवहार पर पश्चात्ताप हुआ । उन्होंने संत ज्ञानेश्वर जी से क्षमा मांगी । ‘आप साक्षात परमेश्वर का अवतार है’, यह कहकर उनका सम्मान किया ।

Leave a Comment