बच्चो, मित्रों से बात करते समय अनायास कोई विनोद (मजाक) हो जाए, तो आप को हंसी आती है न ? इस समय आपके मन को सुख मिलता है; इसलिए आप को हंसी आती है । यह सुख जिस मन को मिलता है, वह है ‘बाह्यमन (outer mind)’ । मन का दूसरा भी एक भाग है, ‘अन्तर्मन (inner mind)’ । अन्तर्मन पर अनेक उचित-अनुचित (अच्छे-बुरे) संस्कार होते हैं । इन उचित या अनुचित संस्कारों के कारण मन में विचार आते हैं और वे हमारे आचरण द्वारा व्यक्त होते हैं । अन्तर्मन के दो भाग हैं – ‘अवचेतन मन (subconscious mind)’ एवं ‘अचेतन मन (unconscious mind)’ ।
मनके दो भाग होते हैं । पहला भाग, जिसे हम ‘मन’ कहते हैं, वह ‘बाह्यमन’ है । दूसरा अप्रकट भाग ‘चित्त (अंतर्मन)’ है । मनकी रचना एवं कार्यमें बाह्यमन का भाग केवल १० प्रतिशत तथापि अंतर्मन का ९० प्रतिशत है ।
बाह्यमन ( Conscious mind)
बाह्यमन अर्थात् जागृत मन अथवा जागृतावस्था में स्थित मन । निरंतर आनेवाले विचार व भावनाओं का संबंध बाह्यमन से होता है ।
अंतर्मन ( Unconscious mind)
इसीको आध्यात्मिक परिभाषा में ‘चित्त’ की संज्ञा दी गई है । अंतर्मन अर्थात् सभी भाव-भावनाओं का, विचार-विकारोंका संग्रह ! इस संग्रह में सर्व प्रकार के अनुभव, भावनाएं, विचार, इच्छा-आकांक्षाएं आदि होते हैं । ऐसे में भी बाह्यमन को इसकी कोई कल्पना नहीं होती है; क्योंकि अंतर्मन व बाह्यमन के मध्यमें एक प्रकार का पट होता है । कभी-कभी किसी व्यक्ति से भेंट होने पर हम उसे तुरंत पहचान लेते हैं; परंतु हमें उनके नामका बिलकुल भी स्मरण नहीं होता है । इसका कारण है कि, हमारा बाह्यमन वह नाम भूल जाता है; परंतु कुछ समय उपरांत उस व्यक्ति के नाम का अचानक स्मरण हो आता है । इसलिए कि, उस व्यक्ति का नाम हमारा अंतर्मन नहीं भूलता । वास्तव में अंतर्मन बाह्यमन को उसका स्मरण कराता है और हमें लगता है, ‘हमें विलंब से उस नाम का स्मरण हुआ ।’ अंतर्मन के भी दो विभाग होते हैं ।