व्यक्ति में कुछ न कुछ दोष होते ही हैं । बच्चो, क्या आपकी पाठशाला में, पासपडोस में, मित्र-परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसमें एक भी दोष नहीं है ? नहीं न ! केवल ईश्वर में ही एक भी दोष नहीं है; क्योंकि वे सर्वगुण सम्पन्न हैं। निरन्तर आनन्द में रहना ईश्वर का स्वभाव है । आइए देखते हैं, उनके समान आनन्द़ित रहने के लिए कौनसे दोष दूर करने एवं कौनसे गुण वृद्धिंगत करने आवश्यक हैं । आगे कुछ दोष एवं उनके विपरीत गुणों की सूची दी है ।
दोषों का निम्न वर्गीकरण स्थूलरूप से किया है । स्थूलरूप से कौनसे दोष अधिक कष्टदायक हैं एवं कौनसे अल्प कष्टदायक हैं, यह निश्चित करने के लिए यह वर्गीकरण किया है । वर्गीकरण के गुट में दोषों का क्रम इस है – जो दोष अधिक कष्टदायक हो सकते हैं, ऐसे दोषों को पहले लिया है और घटते क्रम में अल्प कष्टदायक दोष लिए हैं । व्यक्ति की एवं उसके स्वभावदोषों के अनुसार सन्दर्भ में इस वर्गीकरण में न्यूनाधिक परिवर्तन हो सकता है, उदा. सूची में दिया गया स्वयं के लिए अधिक कष्टदायक दोष किसी को अल्प कष्टदायक हो सकता है और सूची में दिया गया स्वयं के लिए अल्प कष्टदायक दोष किसी को अधिक कष्टदायक हो सकता है ।
१. अन्यों के लिए अधिक कष्टदायक सिद्ध होनेवाले दोष
दोष | गुण |
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अ. विध्वंसक वृत्ति | रचनात्मक कार्य करना |
आ. झगडालूपन | अन्योंसे सामंजस्य, क्षमाशीलता |
इ. गुस्सैल | समझदारी, प्रेमपूर्ण वृत्ति |
ई. चिडचिडापन | संयम एवं शान्त आचरण |
उ. उद्दण्डता | नम्रता |
ऊ. अन्योंको तुच्छ समझना | अन्योंका आदर करना |
ए. अन्योंकी निन्दा करना | अन्योंकी प्रशंसा करना, गुणग्राही होना |
ऐ. आदरातिथ्य न करना | आदर-आतिथ्यशील होना |
ओ. अन्योंको दोष देना | अन्योंकी स्थिति समझ लेना |
औ. पूर्वाग्रह रखना | पूर्वाग्रहरहित होना, निरन्तर वर्तमानकालमें रहना |
अं. हठ | दूसरों से सामंजस्य, सुनने की वृत्ति होना, परेच्छासे आचरण करना, नकारात्मक मत न बनाना |
क. लहरीपन | नियमितता, निश्चितता, निरन्तरता |
ख. समय का पालन न करना | समय का पालन करना |
२. स्वयं के लिए अधिक कष्टदायक सिद्ध होनेवाले दोष
दोष | गुण |
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अ. द्वेष होना | अन्यों के प्रति प्रशंसा का भाव, अन्योंसे सीखने की वृत्ति होना, निर्लोभी होना |
आ. मत्सर होना | अन्यों के प्रति प्रशंसा का भाव, मत्सर न होना, दूसरे को प्रोत्साहन देना, बैरभाव न होना |
इ. सन्देही वृत्ति | नि:संशय, सन्देह न करना, सुरक्षितता की भावना होना, दूसरों पर विश्वास करना |
ई. गर्विलापन | नम्रता |
उ. घमण्डीपन | घमण्ड न होना, विनयशीलता |
ऊ. झूठ बोलना | सत्य बोलना |
ए. सत्यनिष्ठाका अभाव | सत्यनिष्ठा |
ऐ. आज्ञापालन न करना | आज्ञाधारिता |
ओ. अव्यवस्थितता | व्यवस्थितता |
३. स्वयं के लिए अल्प कष्टदायक सिद्ध होंगे, ऐसे दोष
दोष | गुण |
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अ. आलस्य | तत्परता, उद्योगशीलता |
आ. एकाग्र न होना | एकाग्र रहना |
इ. आत्मविश्वास का अभाव | आत्मविश्वास रहना |
ई. निर्णयक्षमता का अभाव | निर्णयक्षमता रहना |
उ. नेतृत्व न लेना | नेतृत्व लेना, संकोच न करना, पीछे न हटना, न डगमगाना |
ऊ. लगनका अभाव | लगन रहना |
ए. अनावश्यक बोलना | मितभाषी रहना, आवश्यकता के अनुसार बोलना |
ऐ. स्वार्थीपन | निःस्वार्थीपन, परोपकारी वृत्ति |
ओ. संकीर्णता | व्यापकता |
औ. आत्मकेन्द़्रित होना (केवल अपना विचार करना) | दूसरों का विचार करना अथवा व्यापकता |
अं. अपनी वस्तुएं अन्योंको न देना | दानशील होना, त्यागी होना |
क. दान न करना | दानशील होना, उदारता |
बच्चो, आपको लगता है न कि उपरोक्त दोषोंमें से कुछ दोष आपमें हैं ! तो आपको यह करना चाहिए –
१. उपरोक्त सूचीमें दिए दोषोंमें से जो दोष आपमें हैं, उनकी एक अलग सूची बनाएं ।
२. यदि आपमें उपरोक्त सूचीमें दिए दोषोंके अतिरिक्त अन्य दोेष हैं, तो उन्हें भी अपनी सूचीमें लिखें ।
३. आपके द्वारा बनाई गई दोषोंकी यह सूची आप अपने माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-परिवार इत्यादि को दिखाएं तथा उनसे करें कि इन दोषोंके अतिरिक्त यदि अन्य दोष हों, तो वे बताएं ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !’