१. स्वभावदोष-निर्मूलन सारणीका स्वरूप
दिनभर की चूकें लिखने के लिए एक बही में निम्नानुसार स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी बनाएं । बही के दो पृष्ठों के भाग करने पर प्रथम पृष्ठ पर पहले तीन स्तम्भ बनाएं और दूसरे पृष्ठ पर स्तम्भ क्रमांक ४ से ६ बनाएं ।
२. सारणी लिखने की पद्धति
अ. स्तम्भ १ : चूक
चूक, अनुचित क्रिया, अनुचित प्रतिक्रिया अथवा विचार यह पहला स्तम्भ है, इसमें आडी रेखा में पहले तिथि एवं कोष्ठक में दिनांक लिखें । (उपरोक्त सारणी देखें ।)
अ. स्वयं के ध्यान में आई एवं अन्यों द्वारा ध्यानमें लाई गई दिनभरकी चूकें , अनुचित क्रिया, अनुचित विचार तथा अनुचित प्रतिक्रियाएं इस स्तम्भ में लिखें। चूक अन्यों द्वारा ध्यान में लाई गई हो, तो वैसा उल्लेख करें ।
आ. उन चूकों का ध्यान में आया परिणाम भी लिखें ।
आ. स्तम्भ २ : कालावधि
चूक, अनुचित क्रिया, अनुचित प्रतिक्रिया अथवा विचार की कालावधि – इसमें चूक, अनुचित क्रिया, अनुचित प्रतिक्रिया अथवा विचार होने पर कितने समयके उपरान्त स्वयं को भान हुआ, यह लिखें । निम्न दो उदाहरणों से यह ध्यान में आएगा ।
अ. ‘पढाई के पश्चात पटलपर रखी (टेबल पर रखा) सामग्री समेटकर नहीं रखी’, यह किसी बच्चे को ३ घण्टे पश्चात ध्यान में आता है, तो सारणी में यह चूक लिखते समय ‘कालावधि’ इस स्तम्भ में ‘३ घण्टे’ ऐसा लिखें।
आ. मां के प्रति किसी बच्चे के मन में १ घण्टा क्रोध था, तब ‘कालावधि’ इस स्तम्भ में वह ‘१ घण्टा’ ऐसा लिखे ।
इ. स्तम्भ ३ : स्वभावदोष
स्वभावदोष – चूक का अध्ययन कर ढूंढे कि ‘वह चूक किस स्वभावदोष के कारण हुई’ एवं वह दोष इस स्तम्भ में लिखें । कुछ
चूकें एकसे अधिक स्वभावदोषों के कारण होती हैं । उस समय वे सभी स्वभावदोष इस स्तम्भ में लिखें ।
ई. स्तम्भ ४ : स्वसूचना / उपाय
उचित क्रिया अथवा उचित प्रतिक्रियाओं के सन्दर्भ में स्वसूचना / उपाय
अ. उचित क्रिया, उचित विचार अथवा उचित सम्बन्धित स्वसूचना बनाकर इस स्तम्भ में लिखें ।
आ. चूक टालने का उपाय यदि ध्यान में आता है, तो उसे भी इस स्तम्भ में लिखें । मान लो, किसी बच्चे के हाथ से नारियल के तेल की बोतल गिरकर टूट जाती है । इस प्रसंग में ‘हडबडी’ यह दोष हो, तो वह उससे सम्बन्धित स्वसूचना लिखे । साथ ही उपाय भी लिखे कि ‘कांच की बोतल के स्थान पर प्लास्टिक की बोतल का उपयोग करूंगा’ एवं उसे आचरण में भी लाए ।
उ. स्तम्भ ५ : दिनभर के सूचनासत्रों की संख्या
दिनभर किए स्वसूचना सत्रों की संख्या लिखते समय, उसका समय भी लिखें, उदा. सवेरे ७ बजे प्रथम सत्र, दिनमें १०.३० बजे दूसरा सत्र, दोपहर २ बजे तीसरा सत्र, सायंकाल ५ बजे चौथा सत्र इत्यादि ।
ऊ. स्तम्भ ६ : प्रगति
यहां सम्बन्धित दोष न्यून होने के सन्दर्भ में हुई प्रगति ध्यान में आने पर वैसा लिखें, उदा. पहले सम्बन्धित चूक का भान अन्यों को करवाना पडता था; परन्तु अब उस चूक का भान स्वयं को ही हो रहा है ।
जिस दिन कुछ प्रगति ध्यान में आएगी, उसी दिन ‘प्रगति’ का स्तम्भ लिखें । उस समय सारणी के ‘प्रगति’ पहले के सर्व आडे स्तम्भ रिक्त रहेंगे ।
बच्चो, स्वसूचनाओंद्वारा मन को दोषों का भान करवाने के उपरान्त कभी-कभी निरुत्साह लग सकता है । प्रगति के स्तम्भ में प्रगति के बारे में लिखने से स्वभावदोष दूर करने के लिए आपके मन को प्रोत्साहन मिलेगा और निरुत्साह नहीं होगा ।
जिस दिन स्तम्भ में लिखने योग्य कुछ नहीं होगा उस समय वह स्तम्भ रिक्त छोडें । उस स्तम्भ में ‘नहीं, कुछ नहीं’, ऐसा कुछ भी न लिखें । ‘नहीं, कुछ नहीं’, ऐसा लिखने से सारणी लेखन करनेवाले को निराशा आ सकती है ।
३. सारणी लेखन का उदाहरण
‘सारणी कैसे लिखें’, यह ध्यान में आने के लिए एक विद्यार्थी-साधक द्वारा लिखित एक दिन की सारणी उदाहरण के लिए नीचे दे रहे हैं ।
टिप्पणी १ – हिन्दू कालगणना के अनुसार दिनांक लिखने की यह आदर्श पद्धति है । इससे हिन्दू संस्कृति का स्मरण
होता है; परन्तु सारणी लिखनेवाला अपनी सुविधानुसार दिनांक लिख सकता है ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !’