खतरे में है हिन्दू धर्म का अस्तित्व ?
पूरे विश्व में अब मात्र १३.९५ प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं ! नेपाल कभी एक हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था परंतु वामपंथ के वर्चस्व के बाद अब वह भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कई चरमपंथी देश से हिन्दुओं को भगाया जा रहा है, परंतु कोई ध्यान नहीं देता। हिन्दू अपने एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां के कई हिस्सों से ही उन्हें बेदखल किए जाने का क्रम जारी है, साथ ही उन्हीं के उप-संप्रदायों को गैर-हिन्दू घोषित कर उन्हें आपस में बांटे जाने का षडयंत्र भी जारी है !
अब भारत में भी हिन्दू जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है। इसके कई कारण हैं। इस सच से हिन्दू सदियों से ही मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने भी मिलते रहे हैं। इस समस्या के प्रति शुतुर्गमुर्ग बनी भारत की राजनीति निश्चित ही हिन्दुओं के लिए पिछले १०० वर्षो में घातक सिद्ध हुई है और अब भी यह घातक ही सिद्ध हो रही है। पिछले ७० वर्षो में हिन्दू अपने ही देश भारत के ८ राज्यों में अल्पसंख्यक हो चला है। आईए जानते हैं कि, भारतीय राज्यों में हिन्दुओं की क्या स्थिति है . . .
जनसंख्या : भारत में पंथ पर आधारित जनगणना २००१ के आंकडों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या में ८०.५ प्रतिशत हिन्दू, १३.४ प्रतिशत मुसलमान, २.३ प्रतिशत ईसाई हैं जबकि पिछली जनगणना में हिन्दू ८२ प्रतिशत, मुसलमान १२.१ प्रतिशत और २.३ प्रतिशत ईसाई थे। २०११ की जनगणना के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या में मुसलमानों का हिस्सा २००१ में १३.४ प्रतिशत से बढकर १४.२ प्रतिशत हो गया है।
१९९१ से २००१ के दशक की २९ प्रतिशत वृद्धि दर की तुलना २००१-२०११ के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर घटकर २४ प्रतिशत अवश्य हुई किंतु यह अब भी राष्ट्रीय औसत १८ प्रतिशत से अधिक है। देश के जिन राज्यों में मुसलमानों की जनसंख्या सबसे अधिक है, उनमें क्रमश: जम्मू-कश्मीर (६८.३ प्रतिशत) और असम (३४.२ प्रतिशत) के बाद प. बंगाल (२७.०१ प्रतिशत) तीसरे स्थान पर आता है जबकि केरल (२६.६ प्रतिशत) चौथे स्थान पर है।
कश्मीर में हिन्दू :
जब हम कश्मीर की बात करते हैं तो उसमें एक कश्मीर वह भी है, जो पाकिस्तान के कब्जे में है और दूसरा वह, जो भारत का एक राज्य है। इसमें जम्मू और लद्दाख अलग से हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर एक राज्य गठित होता है। यह संपूर्ण क्षेत्र स्वांतंत्रता के पहले महाराजा हरिसिंह के शासन के अंतर्गत आता था।
२०११ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू और कश्मीर की कुल जनसंख्या १२५.४१ लाख थी। उसमें ८५.६७ लाख मुस्लिम थे यानी कुल जनसंख्या के ६८.३१ प्रतिशत, जैसे कि, १९६१ में थे, वहीं २०११ में हिन्दुओं की जनसंख्या ३५.६६ लाख तक पहुंच गई। कुल जनसंख्या का २८.४३ प्रतिशत ! इन आंकडों में कश्मीर में हिन्दुओं की जनसंख्या घटी जबकि जम्मू में बढी होना जाहिर नहीं हुआ ! अगर पुराने आंकडों की बात करें तो १९४१ में संपूर्ण जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या ७२.४१ प्रतिशत और हिन्दुओं की जनसंख्या २५.०१ प्रतिशत थी।
१९८९ के बाद कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के साथ हुए नरसंहार से कश्मीरी पंडित और सिख भी वहां से पलायन कर गए। कश्मीर में वर्ष १९९० में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोडकर चले गए। उस समय हुए नरसंहार में हजारों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। बडी संख्या में महिलाओं और लडकियों के साथ बलात्कार हुए थे।
कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला १९८९ में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। आतंकी संघटन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड दी। करोडों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोडकर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में ३०० से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी !
घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत १४ सितंबर १९८९ से हुई थी। कश्मीर में आतंकवाद के चलते लगभग ७ लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक क्षेत्र में हिन्दुओं और शियाओं की तादाद बहुत होती थी परंतु वर्तमान में वहां हिन्दू तो एक भी नहीं बचा और शिया समय-समय पर पलायन करके भारत में आते रहे जिनके आने का क्रम अभी भी जारी है !
विस्थापित कश्मीरी पंडितों का एक संघटन है ‘पनुन कश्मीर’ ! इसकी स्थापना सन १९९० के दिसंबर माह में की गई थी। इस संघटन की मांग है कि, कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए। पनुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। परंतु १९८९ से १९९५ के बीच नरसंहार का एक ऐसा दौर चला कि, पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पडा !
आंकडों के अनुसार, इस नरसंहार में ६,००० कश्मीरी पंडितों को मारा गया। ७,५०,००० पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। १,५०० मंदिर नष्ट कर दिए गए। कश्मीरी पंडितों के ६०० गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल ८०८ परिवार रह रहे हैं तथा उनके ५९,४४२ पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले से पहले वहां उनके ४३० मंदिर थे। अब इनमें से मात्र २६० सुरक्षित बचे हैं जिनमें से १७० मंदिर क्षतिग्रस्त हैं !
असम में हिन्दू :
असम कभी १०० प्रतिशत हिन्दू बहुल राज्य हुआ करता था ! हिंदू शैव और शाक्तों के अलावा यहां हिन्दुओं की कई जनजाति समूह भी थे। यहा वैष्णव संतों की भी लंबी परंपरा रही है। बौद्ध काल में जहां यहां पर बौद्ध, मुस्लिम काल में लोग मुस्लिम बने वहीं अंग्रेज काल में यहां के गरीब तबके के लोगों को हिंदू से ईसाई बनाने की प्रक्रिया जारी रही !
२००१ की जनगणना के अनुसार, अब यहां हिन्दुओं की संख्या १,७२,९६,४५५, मुसलमानों की ८२,४०,६११, ईसाई की ९,८६,५८९, और सिखों की २२,५१९, बौद्धों की ५१,०२९, जैनियों की २३,९५७ और २२,९९९ अन्य धार्मिक समुदायों से संबंधित थे। असम में मुस्लिम जनसंख्या २००१ में ३०.९ प्रतिशत थी जबकि २०११ में बढकर वह ३४.२ प्रतिशत हो गई। इसमें बाहरी मुस्लिमों की संख्या भी बताई जाती है।
असम में २७ जिले हैं जिसमें से असम के बारपेटा, करीमगंज, मोरीगांव, बोंगईगांव, नागांव, ढुबरी, हैलाकंडी, गोलपारा और डारंग ९ मुस्लिम बहुल जनसंख्यावाले जिले हैं, जहां आतंक का राज कायम है ! यहां बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ के चलते राज्य के कई क्षेत्रों में स्थानीय लोगों की जनसंख्या का संतुलन बिगड गया है। राज्य में असमी बोलनेवाले लोगों की संख्या कम हुई है। २००१ में ४८.८ प्रतिशत लोग असमी बोलते थे जबकि अब इनकी संख्या घटकर अब ४७ प्रतिशत रह गई है !
१९७१ के खूनी संघर्ष में पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) के लाखों मुसलमानों को पडोसी देश भारत के पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्य (असम आदि) में और दूसरी और म्यांमार (बर्मा में) शरण लेनी पडी ! युद्ध शरणार्थी शिविरों में रहनेवाले मुसलमानों को सरकार की लापरवाही के चलते उनके देश भेजने का कोई उपाय नहीं किया गया। इसके चलते इन लोगों ने यहीं पर अपने पक्के घर बनाना शुरू कर दिए और फिर धीरे-धीरे पिछले चार दशक से जारी घुसपैठ के दौरान सभी बांग्लादेशियों ने मिलकर भूमि और जंगलों पर अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया !
धीरे-धीरे बांग्लादेशी मुसलमानों सहित स्थानीय मुसलमानों ने (बीटीएडी में) बोडो हिन्दुओं की खेती की ७३ प्रतिशत जमीन पर कब्जा कर लिया अब बोडो के पास केवल २७ प्रतिशत जमीन है ! सरकार ने वोट की राजनीति के चलते कभी भी इस सामाजिक बदलाव पर ध्यान नहीं दिया जिसके चलते बोडो समुदाय के लोगों में असंतोष पनपा और फिर उन्होंने हथियार उठाना शुरू कर दिए। यह टकराव का सबसे बडा कारण है !
२५ मार्च १९७१ के बाद से लगातार अब तक असम में बांग्लादेशी हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही वर्गों का आना लगा रहा। असम ने पहले से ही १९५१ से १९७१ तक कई बांग्लादेशियों को शरण दी थी परंतु १९७१ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान और उसके बाद बांग्लादेश के गठन के बाद से लगातार पश्चिम बंगाल और असम में बांग्लादेशी मुस्लिम और हिन्दू शरणार्थियों की समस्या जस की तस बनी हुई है !
असम के लोग अब अपनी ही धरती पर शरणार्थी बन गए हैं। असम के इन लोगों में जहां हिन्दू जनजाति समूह के बोडो, खासी, दिमासा अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड रहे हैं वहीं अन्य स्थानीय असमी भी अब संकट में आ गए हैं और यह सब हुआ है भारत की वोट की राजनीति के चलते ! यहां माओवादी भी सक्रिय है जिनका संबंध मणिपुर और अरुणाचल के उग्रवादियों के साथ है। उन्हें नेपाल और बांग्लादेश के साथ ही भारतीय वामपंथ से सहयोग मिलता रहता है !
आधुनिक युग में यहां पर चाय के बाग में काम करनेवाले बंगाल, बिहार, उडीसा तथा अन्य प्रांतों से आए हुए कुलियों की संख्या प्रमुख हो गई जिसके चलते असम के जनजाती और आम असमी के लोगों के जहां रोजगार छूट गए वहीं वे अपने ही क्षेत्र में हाशिए पर चले गए। इसी के चलते राज्य में असंतोष शुरू हुआ और कई छोटे-छोटे उग्रवादी समूह बनें। इन उग्रवाद समूहों को कई दुश्मन देशों से सहयोग मिलता है ! वोट की राजनीति के चलते कांग्रेस और सीपीएम ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को असम, उत्तर पूर्वांचल और भारत के अन्य राज्यों में बसने दिया। बांग्लादेश से घुसपैठ कर यहां आकर बसे मुसलमानों को कभी यहां से निकाला नहीं गया और उनके राशन कार्ड, वोटर कार्ड और अब आधार कार्ड भी बन गए ! दशकों से जारी इस घुसपैठ के चलते आज इनकी जनसंख्या असम में ही १ करोड के आसपास है, जबकि पूरे भारत में ये यह फैलकर लगभग साढे तीन करोड के पार हो गए हैं ! यह भारतीय मुसलमानों में इस तरह घुलमिल गए हैं कि, अब इनकी पहचान भी मुश्किल होती है !
असम का एक बडा जनसंख्या वर्ग राज्य में अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों का है जो अनुमान से कहीं अधिक है और जो बांग्ला बोलता है। राज्य के अत्यधिक हिंसा प्रभावित जिलों कोकराझार व चिरांग में बडी संख्या में ये अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठी परिवार रहते हैं जिन्होंने स्थिति को बुरी तरह से बिगाड़ दिया है !
बांग्लादेशी घुसपैठिएं असम में भारत की हिन्दू अनुसूचित जाति एवं अन्य हिन्दुओं के खेत, घर और गांवों पर कब्जा करके हिन्दुओं को भगाने में लगे हुए हैं। कारबी, आंगलौंग, खासी, जयंतिया, बोडो, दिमासा एवं ५० से ज्यादा जनजाति के खेत, घर और जीवन पर निरंतर हमलों से खतरा बढता ही गया जिस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया। घुसपैठियों को स्थानीय सहयोग और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है !
शिविर :
असम में जातीय हिंसा प्रभावित जिलों में बनाए गए ३०० से ज्यादा राहत शिविरों में चार लाख शरणार्थियों की जिंदगी बदतर हो गई है ! कोकराझार के बाहर जहां बोडो हिन्दुओं के शिविर हैं वहीं धुबरी के बाहर बांग्लादेशी मुस्लिमों के शिविर है। कोकराझार, धुबरी, बोडो टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेटिव डिस्ट्रिक (बीटीएडी) और आसपास के क्षेत्रों में फैली हिंसा के कारण से अपने घर छोडकर राहत शिविरों में पहुंचे लोग यहां भी भयभीत हैं शिविरों में शरणार्थियों की जिंदगी बद से बदतर हो गई है। शिविरों में क्षमता से ज्यादा लोगों के होने से पूरी व्यवस्था नाकाम साबित हो रही हैं। दूसरी ओर लोगों के रोजगार और धंधे बंद होने के कारण वह पूरी तरह से सरकार पर निर्भर हो गए हैं !
कहां कितने बांग्लादेशी :
२००१ की आयबी की एक खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, लगभग डेढ करोड से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं जिसमें से ८० लाख पश्चिम बंगाल में और ५० लाख के लगभग असम में, बिहार के किसनगंज, साहेबगंज, कटियार और पूर्णिया जिलों में भी लगभग ४.५, देहली में १३ लाख, त्रिपुरा में ३.७५ लाख और इसके अलावा नागालैंड व मिजोरम भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के किए शरणस्थली बने हुए हैं !
खुद को कहते हैं भारतीय :
१९९१ में नागालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहां २० हजार थी वहीं अब यह बढकर ८० हजार के पार हो गई है ! असम के २७ जिलों में से ८ में बांग्लादेशी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके हैं ! सर्चिंग के चलते अब बांग्लादेशी घुसपैठिए उक्त जगहों के अलावा भारत के उन राज्यों में भी रहने लगे हैं जो अपेक्षाकृत शांत और संदेह रहित है जैसे मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, गुजरात के बडौदा, अहमदाबाद, राजस्थान के जयपुर और उदयपुर, उडीसा, अंध्राप्रदेश आदि।
देश के अन्य राज्यों में मुस्लिमों के बीच छुप गए बांग्लादेशी अब खुद को पश्चिम बंगाल का कहते हैं !
स्त्रोत : वेब विश्व