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स्वामीभक्ति तथा समर्पणका प्रतिक : वीर शिवा काशीद



 

सारिणी


 

१. आदिलशहाने सिद्दी जौहरको हिंदवी स्वराज्यपर आक्रमण करने भेजना

        प्रतापगढपर अफझलखानका वध करने उपरांत छत्रपती शिवाजी महाराजने आदिलशाहीमें आक्रमण करके उत्पात मचाया था । पन्हालगढ जैसा महत्त्वपूर्ण गढ महाराजके अधिकारमें आया था । हिंदवी स्वराज्यके शूर सेनापती वीर नेताजी पालकरने आदिलशाहीको संत्रस्त कर रखा था ।

        ऐसेमें आदिलशहाने सिद्दी जौहरको ‘सलाबतखान’, वाई प्रांतका ‘प्रधान’ (दिवाण) तथा खटाव प्रांतका ‘सेनाका महाधिनायक’(लष्कर सर हवालदार) इतनी उपाधीयां और अधिकार देकर उसके साथ रुस्तुमेजमान, (अफझलखानका बेटा) फाझलखान, सादातखान, भाईखान, सिद्दी मसूद, बडेखान, बाजी घोरपडे, शृंगारपूरके सूर्याराव सुर्वे, वाडीकर सावंत, पालीके जसवंतराव दळवी तथा पीड नाईक ऐसे प्रतिष्ठीत सेना नायक तथा सेनामें लगभग १६ से २० सहस्त्र अश्वदल, ३५ से ४० सहस्त्र पदाती, अगणित हाथी, शतध्नी (तोपा) ऐसा बहुत बडा सैन्यसंभार देकर हिंदवी स्वराज्यपर आक्रमण करने भेजा था ।

 

२. छत्रपती शिवाजी महाराज पन्हालगढपर चले आना

        उस समय महाराज ‘मीरज’को घेरकर बैठे थे । उनको गुप्तचरोंसे वार्ता मिली कि, आदिलशाही सेनानी (सरदार) सिद्दी जौहर बिजापूरसे और दिल्लीसे मोगल सेनानी शाइस्ताखान संभाजीनगर (औरंगाबाद) पार करके स्वराज्यपर आक्रमण करने निकले हैं । तो महाराजने मीरजका घेरा उठाया । उनके पास केवल ८ सहस्त्र पदाती, ६० अश्वारोही सैनिक ही थे । शेष सैन्यका एक भाग सेनापती नेताजी पालकरके पास था, तो दुसरा कोंकणमें था । इसलिए महाराज अपने केवल ८ सहस्त्र सैनिकोंको लेकर कोल्हापूर गए, माता महालक्ष्मीका आशिर्वाद लेकर शार्वरीनाम संवत्सर, श्रीनृपशालिवाहन शक १५८२ की चैत्र शुक्ला प्रतिपदा, नववर्षके पहले दिन दि. २ मार्च १६६० को पन्हालगढपर चले आए; क्योंकि पन्हाला सुरक्षाकी दृष्टिसे अत्यंत प्रबल गढ था ।

 

३. सिद्दी जौहरने ४० से ५० सहस्त्र सैन्यका पन्हालगढपर घेरा डालना

        महाराजके पीछे ही सिद्दी जौहर आया और उसने अपने ४० से ५० सहस्त्र सैन्यका घेरा डाल दिया । पूरबसे फाझलखान, रुस्तुमेजमान, तथा स्वयं जौहर अपने-अपने सैन्यके साथ घेरा डाले थे और उनकी सहायताके लिए बडेखान आदी सेनानी थे । पश्चिमसे सादातखान, भाईखान, सिद्दी मसूद, बाजी घोरपडे तथा पीड नाईकने घेर लिया और जो शेष बचे थे उन्होंने दक्षिण तथा उत्तर संभाली थी । उनमेंसे शृंगारपूरके सूर्याराव सुर्वे और पालीके जसवंतराव दळवी इन दोनोंको जौहरने विशालशैल भेजा था । घेरा बहुत पक्का (मजबूत) था; परंतु गढ भी बडा प्रबल था । रातके अंधेरेमें कभी-कभी मराठे गढसे उतरकर जौहरको अपनी तलवारका पानी चखाते थे; परंतु गढ प्रबल होनेसे जौहर भी हाथ मलकर रह जाता था । उधर शाइस्ताखानने पूनापर अपना अधिकार कर लिया था ।

 

४. अंग्रेजी वखारका प्रमुख हेन्री रेव्हिंग्टन अपने सेनाके साथ जौहरके सहायता को आना

        यह सब स्थिती देखकर राजापूरके अंग्रेजी वखारका प्रमुख हेन्री रेव्हिंग्टनके मुखसे लार टपकने लगी । अफझलखानके प्रकरणमें महाराजको उसने स्वराज्यके शत्रुओंको सहायता न करनेका आश्वासन दिया था; परंतु वह अंग्रेज होनेके कारण कपट तथा विश्वासघात तो उसके रक्तका गुणधर्म ही था ।

        उसने जौहरसे संधान साध लिया और अपने ४०० पदाती, कुछ अश्वारोही तथा ५ पालकीयां देकर दूत भेज दिया । जौहरको भी लंबी दूरीपर मारा करनेके लिए उनकी अधुनिक शताध्नीकी आवश्यकता थी । रेव्हिंग्टनने केवल युद्ध साहित्य ही नहीं दिया, अपितु वह अपने साथी मिंघॅम, गिफर्ड, तथा वेलजीको साथ लेकर स्वयं जौहरकी सहायताके लिए २ अप्रेलको चल पडा । उधर नेताजी भी महाराजको छुडानेका प्रयास कर रहा था; परंतु यश नहीं आ रहा था ।

 

५. महाराजके गुप्तचरोंने गढसे भागनेका एक दुर्गम मार्ग ढूंढ निकाला

        ४ मास होनेको आए, सारा स्वराज्य चिंतामें डूबा था । राजगडपर मातोश्री जिजाऊ, सारे सेनानी, सैनिक ही नहीं प्रजा भी रात-दिन इसी सोचमें रहती कि, यदि हमारे प्राण देकर भी अपने राजाको बचा पाते, तो निःसंदेह हम इसी क्षण देते । अंतमें मातोश्री जिजाऊकी प्रार्थना मां भवानीने सुन ली । महाराजके गुप्तचरोंने गढसे भागनेका एक दुर्गम मार्ग ढूंढ निकाला, यद्यपी वह इतना सुरक्षित भी नहीं था; क्योंकि शत्रु भी इस बार अत्याधिक सावधान था ।

 

६. महाराजकी साहसी व्यूह रचना

        महाराजने अपने कुछ गिने-चुने लोगोंसे मंत्रणा की और एक साहसी व्यूह रचना की । सर्व प्रथम शत्रुको महाराजकी शरणागतीका सपना दिखाना और दुसरी बात गुप्तचरोंने बताए मार्गसे महाराजने विशालशैल जाना; परंतु यदि मार्गमें कहीं शत्रुसे सामना हुआ तो ? इतिहासको यह ज्ञात नहीं की, यह सूझाव किसने दिया; परंतु जिसने भी दिया उसके स्वराज्यपर बहुत बडे उपकार हैं । यह सूझाव था कि, गढपर एक दूत (कासिद) था, जिसका नाम ‘शिवा’ था । वह दिखनेमें महाराज जैसा ही दिखता था । उसने दाढी भी महाराज जैसी ही रखी थी । यदि उसकी रंगभूषा (मेकअप) महाराज जैसा करे, तो कोई भी धोका खा सकता था । उसको प्रति शिवाजी बनाकर संकटके समयमें शत्रुको धोका दे सकते है । शेष व्यवस्थाका उत्तरदायित्त्व बाजी प्रभूने अपने कंधेपर ले लिया और आषाढ पुर्णिमाकी रात्रि गढ छोडना निश्चित हुआ ।

 

७. शिवाने प्रतिशिवाजी बनना

        महाराजने शिवाको ‘तुम्हें प्रति शिवाजी बनना है, यह बताया तो शिवाने झटसे महाराजके चरण पकडे और बडे आनंद और अभिमानसे कहा ‘मेरा जीवन तो धन्य हो गया महाराज । यदि मेरे समर्पणसे आप अर्थात स्वराज्य सुरक्षित हो सकता है, तो यह मेरा विशेष गौरव है ।’ शिवाकी बात सुनकर महाराजके नेत्र भर आए । उन्होंने उसे अपनी बाहोंमे भर लिया और बोले कदाचित् तुम्हारे प्राण संकटमें पड सकते हैं ।’ शिवाने कहा ‘‘महाराज, आपको मां भवानीकी सौगंध ! अब आप अपना विचार ना बदले । स्वामी, आप तथा स्वराज्य सुरक्षित रहता है, तो ऐसे लाखो शिवा नाभीक इस पवित्र भूमीपर जन्म लेंगे ।’’

        महाराजने उसे सब योजना बारीकीसे समझायी । उसको अपने कपडे दिए । शिवाने मस्तक लगाकर ले लिए और पहने । राजाने अपने हाथो किरीट पहनाया, उसमे मोतीयोंका शिरोभूषण (सिरपेच) लगाया, कटीपर (कमर) रत्नजडीत कट्यार तथा तलवार, बांधी 

 

८. महाराज द्वारा जौहरको शरण आनेका पत्र भेजना

        महाराजने पूछा ‘‘पंत सारा प्रबंध हो गया ?’’ पंतने जौहरको लिखा पत्र पढकर सुनाया । आप मुझे पितृतुल्य हैं, यदि मेरे अपराधोंको क्षमा करके, मेरी सुरक्षाका वचन देते हैं, तो हम स्वयं आपसे मिलने आएंगे और जैसा आप कहेंगे, वैसा हम करेंगे । महाराजने कहा ‘‘अति उत्तम ! गढपर भी यह बात पैलायी जाए कि, हम जौहरसे मिलने जा रहें हैं ।’’

        पत्र लेकर दुसरे दिन राजदूत गंगाधरपंत शत्रुसे मिलने गए । जौहरने पत्र बडी सावधानीसे पढा । जौहरने पूछा ‘‘राजासाब कब यहां हाजीर होंगे ?’’ पंत बोले ‘‘यदि आप सुरक्षाका दायित्त्व लेते हैं, तो महाराज कल रात्रिको आ सकते हैं ।’’ यह सुनकर फाझलखान बोला ‘‘अब्बा हुजुरसे भी ऐसी ही बाते हुई थी ।’’ जौहर बोला ‘‘तुम्हारे अब्बा हुजुर शिवाजीसे मिलने गए थे, यहां शिवाजी हमें मिलने आ रहा है, यदि उसने कुछ दुःसाहस करने की कोशीश कि, तो अंजाम तुम जानते हो; परंतु वह इतना बेवकूफ नहीं कुछ गलत हरकत कर बैठे ।’’

 

९. महाराजका अति दुर्गम मार्गसे गढ़से निकलना

        पुर्णिमा होकर भी चंद्रप्रकाशका कहीं अस्तित्व ही नहीं था । वर्षाऋतुके कारण प्रचंड मेघगर्जना, तीव्र बवंडर, कडकती सौदामिनी और मुसलाधार वर्षाके कारण ऐसा लग रहा था मानो निसर्गदेवता रुद्रतांडव कर रही है । वह भी राजाको अनुकूल हो गयी । महाराज शरण आनेकी वार्तासे शत्रुके घेरेमें कुछ शिथिलता आयी थी । महाराज पालकीमें बैठे । बाजी हाथमें तलवार लेकर पालकीके साथ चल पडे । साथमें एक और पालकी तथा १००० सैनिक गढसे निकल पडे । गुप्तचर आगे चल रहे थे । धिरे-धिरे घेरा पार कर दिया । इतनेमें शत्रुके सैनिकोंको कुछ आशंका हुई । वह चिल्लाए – ठहरो; परंतु बाजीके सैनिकोंने वेग बढाया ।  वह दुसरी पालकी और उसके साथ ४०० सौ सैनिक उसी मार्गपर दौडने लगे और महाराजकी पालकी, बाजी तथा ६०० सौ सैनिक दुसरे अति दुर्गम मार्गसे आगे बढे ।

 

१०. सिद्दी जौहरने महाराज का पिछा करने सैनिकोको भेजना और महाराजको बंदी बनाना

        इधर शत्रु सैनिकोंने भागकर सिद्दी जौहरको वार्ता दे दी कि, शिवाजी महाराज भाग गए । जौहरपर मानो वङ्काघात हो गया । कुछ क्षण वह भ्रमिष्टसा देखता रह गया । अगले ही पल उसने चिल्लाकर महाराजका पीछा करनेके लिए अपने दामाद सिद्दी मसूदको कहा । सैनिकोंने बताए मार्ग अनुसार सिद्दी मसूद अपने अश्वदलको लेकर दौडा । दूर पालकी दिखाई पडी । मसूद चिल्लाने लगा । ठहरो ! ठहरो ! कुछ ही पलोंमे पालकीको घेर लिया । मसूदने पूछा ‘‘पालकीमें कौन हैं ?’’ कहारने कहा ‘‘शिवाजी महाराज हैं !’’ ‘‘पर्दा उठाओ !’’ मसूदने पालकीमें बैठे ‘महाराज’ देखे और उसने बडे आनंद तथा अभिमानसे पालकी अपने घेरेकी ओर मोडनेको कहा । पालकी सिद्दी जौहरके पटमंडपके (शामियाना) सामने आयी । पालकीमेंसे ‘महाराज’ उतरकर अंदर चले आए । सिद्दी जौहरने पूछा ‘‘राजासाब ! भागकर जा रहे थे ?’’ ‘‘हां, प्रयास अवश्य किया’’ ‘‘’तो फिर क्या हुआ ?’’ ‘‘सफलता नहीं मिली !’’ ‘‘राजासाब आप बहादूर हैं । बैठिए !’’ महाराजको देखकर फाझलको बहुत क्रोध आ रहा था, इसने ही मेरे अब्बाजानको मारा और जौहर उसकी प्रसंशा कर रहा है । वह चिल्लाया जौहर, ‘‘तुम दुष्मनकी प्रसंशा कर रहे हो ? इसका तो सिर काट….’’ उससे भी अधिक तिखे स्वरमें जौहर चिल्लाया ‘‘खामोष ! यह तेरे मेरे जैसे मामुली सरदार नहीं । राजा हैं, उनका पैसला बादशहा सलामत करेंगे । राजासाब मेरे मेहमान हैं । बैठिए राजासाहब !’’

        धन्यवाद ! कहकर महाराज बैठ गए । ‘‘राजासाब, अगर भाग जाते तो कहां जाते ? ’’ ‘‘विशालशैल ! यदि एक बार हम वहां पहुंचते तो, आप कुछ नहीं कर सकते थे ।’’ ‘‘बिलकुल सही ! राजासाब आपकी किस्मतकी कोताहीपर हमें अफसोस हैं ।’’ ‘‘हमारी किस्मत हमेशा कोताह नहीं होती !’’ ‘‘लेकिन आज तो ऐसाही कहना पडेगा ! हकीकत भी क्या दर्दनाक है !’’ महाराज हसकर बोले, ‘‘मां भवानी सब जानती है !’’ सिद्दीने पूछा, ‘‘अगर जंगमें आप कत्ल कर दिए होते तो ?’’ महाराज खिलखिलाकर हसे, अपनी बायी मुट्ठीको कटीपर रखकर जौहरकी दृष्टिसे दृष्टि मिलाकर बोले ‘‘सिद्दीसाब !

 

११. प्रति शिवाजी समाझमे आना और शिवाका आत्मबलिदान

        शहाजी राजाको क्या आप भूल गए ?’’ सिद्दी हस पडा । इतनेमें जौहरका हेजीब आगे आया और उसने उसके कानमें कुछ कहा । जौहर चकीत हो गया । अगले ही पल वह क्रोधसे चिल्लाते हुए, तलवार लेकर महाराजके सामने आया । ‘‘तुम कौन हो ?’’ ‘‘शिवाजी !’’ ‘‘झूट ! शिवाजी भाग गया । सच्चा शिवाजी भाग गया !’’ ‘‘यह भी सच है ।’’ ‘‘मतलब ?’’ ‘‘मतलब क्या ! वह शिवाजी राजा है । वह क्या तेरे हाथ आएंगे ?’’ ‘‘तुम कौन हो ?’’ शिवा निर्भयतासे जौहरकी दृष्टिसे दृष्टि मिलाकर बोला ‘‘इस जीवको शिवा न्हावी (नाभीक) कहते हैं !’’ क्रोधसे थरथराते हुए जौहरने अपनी तलवार उसके छातीसे लगाकर पूछा ‘‘इसका अंजाम जानते हो ?’’ शिवाने शांतीसे तलवार एक ओर करते हुए कहा, ‘‘अबे जा बे ! मृत्यू तो महाराजके (मावळे) सैनिकोंकी दासी बनकर चरणोंमें पडी रहती है ।’’ ‘‘हरामखोर’’ फाझल चिल्लाया ।

        शिवा हसते हुए बोला ‘‘फाझल, अब पछताए क्या होत, जब चिडिया चुग गयी खेत !’’ झूटा ही सही; परंतु शिवाजी बन गया, स्वराज्य तथा अपने स्वामीकी रक्षाके काम आया, मेरा तो जनम सफल हो गया । ‘‘खामोष ! कंबख्त !’’ जौहर चिल्लाया, और उसने अपनी तलवार सिधे शिवाकी छातीके आरपार कर दी । इस अंतिम बिदाके समय उस प्रति शिवाजीने कहा,‘‘महाराज, आपके नामको कलंक ना लगे, इसलिए तलवारका प्रहार मैने पिठपर नहीं, अपनी छातीपर लिया है, मेरी अंतिम सेवा स्विकार करे स्वामी !’’ (काशीद यह उसका नाम नहीं, उसका पद था । ‘कासिद’ यह शब्द फारसी है । उसका अर्थ है, ‘दूत’ और तत्कालीन फारसी भाषाके प्रचलनसे उसका नाम ‘शिवा काशीद’ हो गया ।)

        आज भी इस वीररत्नके वंशजोंका पन्हाला तथा उसके परिसरमें वास्तव्य हैं । महाराजने उसकी समाधी पन्हालगढपर बंधवायी । गढपर उसका चिरंतन स्मारक हो, इसलिए उसकी पूर्णाकृती प्रतीमा खडी है । आज आषाढ तथा गुरुपुर्णिमाके दिन स्वामीभक्तिका, देशभक्तिका तथा समर्पणका उदाहरण बने, वीर शिवा काशीदको शत- शत प्रणाम ।

संदर्भ :

श्रीमान योगी – रणजित देसाई, मेहता पब्लिशिंग हाऊस, पुणे ४११०३०
राजाशिवछत्रपती – पुरंदरे प्रकाशन
शककर्ते शिवराय – विजयराव देशमुख, छत्रपती सेवा प्रतिष्ठान प्रकाशन, नागपूर.

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