‘अगस्त १९४२ में ‘चले जाव’ आंदोलन पूरे देशमें आरंभ हुआ । इस आंदोलनमें पाठशालाके बच्चोंने भी सहयोग दिया । पाठशालाके बच्चोंमेंसे कुछ बच्चोंने आंदोलनमें सक्रीय सहयोग दिया, तो किसीने इस समय क्रांतिकार्य किया । भारतीय क्रांतिकारीयोंके दिव्य बलिदानसे प्रेरित होकर पौगंडावस्थाके अनेक सुकुमार बच्चे पुलिसकी गोलीबारीका धैर्यतापूर्वक सामना करने लगे । उनका बलिदान सभी राजनैतिक दलोंके शासनकर्ता, विशेष रूपसे कांग्रेसी शासनकर्ता भूल गए हैं, परंतु हमें उसे भूलना नहीं है। ऐसा करनेसे देशके लिए प्राणार्पण किए बाल क्रांतिकारीयोंके प्रति कृतघ्नता होगी !
नारायण दाभाडे
नौंवी कक्षामें पढनेवाला यह छात्र ९.८.१९४२ को पुणेमें कांग्रेस कार्यालयके निकट निदार्शकोंपर पुलिसद्वारा की गई अंदाधुंद गोलीबारीमें घायल होकर तत्काल मृत्युको प्राप्त हुआ।
भास्कर कर्णिक
दत्तू रंगारी
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बेलगांव जनपदके बैल होनगल नामक गांवका यह निवासी । छठी कक्षामें पढनेवाला केवल १३ वर्षका यह युवक, २३.८.१९४२ को पुलिसद्वारा की गई गोलीबारीमें मृत्युको प्राप्त हुआ।
हेमू
काशिनाथ पागधरे
थाने जनपदके पालघर तहसिलके सातपाटी नामक गांवके इस युवकने १४ वर्षकी आयुमें ही स्वतंत्रता आंदोलनमें सम्मिलित होना आरंभ किया था । १९४० में हुए एक सत्याग्रहमें सहयोगी होनेके कारण उसे छह मासोंके लिए कठोर कारावासका दंड सुनाया गया था । ‘चले जाव’ आंदोलनमें १४.८.१९४२ को उसने पालघरके मामलेदार कार्यालयपर चार सहस्र जनसमुदाय लेकर रोषयात्रा निकाली । इस रोषयात्रापर हुई गोलीबारीमें पागधरे मारा गया ।
शंकर दादाजी महाले
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चौथी कक्षातक पढा केवल १७ वर्षका मिल मजदूर । ९, १० तथा ११.८.१९४२ इन तीन दिनोंमें नागपुरमें आंदोलकोंने हडताल कर सभाओंका आयोजन कर शासकीय कार्यालय तथा पुलिस थानोंपर रोषयात्राएं निकाली । इन आंदोलकोंपर शासनद्वारा किए गए गोलीबारीमें अनेकोंको हौतात्म्य प्राप्त हुआ । शंकर महालेको एक पुलिस चपरासीकी हत्या करनेके लिए उत्तरदायी ठहराया गया एवं फांसीसे दंडित किया गया । १९ जनवरी १९४३ को नागपुरके कारागृहमें उसे फांसी दी गई ।’
(झुंज क्रांतीविरांची) (दैनिक सनातन प्रभात, श्रावण कृ. पंचमी, कलियुग वर्ष ५१११ (११.८.२००९))