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निर्भय और वीर देशभक्त कन्हैयालाल दत्त !



सारणी

 


 

१.जन्म

         ‘हिंदुस्थानपर अंग्रेज शासनकी सत्ता थी, तभीकी अर्थात लगभग ११४ वर्षपूर्वकी यह कथा है । उस दिन जन्माष्टमी थी । उसी कारण संपूर्ण हिंदुस्थानमें कृष्णजन्मका उत्सव मनाया जा रहा था । कंसके अन्यायी एवं अत्याचारी शासनका नाश करने हेतु जैसे श्रीकृष्णका जन्म हुआ था, उसी मुहूर्तपर अंग्रेजोंके अत्याचारी शासनके विरुद्ध विद्रोह कर मातृभूमिको स्वतंत्रता प्राप्त करवानेके लिए कोलकाताके समीप चंद्रनगरकी फ्रेंच कालोनीमें रहनेवाले ‘दत्त’ परिवारमें एक बालकका जन्म हुआ । संपूर्ण दत्त परिवार आनंदमय हुआ था । वह दिन था ३०.८.१८८८ । नामकरण विधि होकर उस बालकका नाम ‘कन्हैया’ रखा गया ।’
 

२.कुशाग्र, एकपाठी एवं विनम्र

         ‘कन्हैयाके बाल्यावस्थाके केवल १-२ वर्ष ही चंद्रनगरके अपने घरमें बीते थे, कि उसके पिता उदरनिर्वाहके लिए परिवारके साथ मुंबई पहुंचे । मुंबईमें वे एक निजी आस्थापनमें काम करने लगे । कन्हैयाके बडे होनेपर पिताजीने अध्ययन हेतु उसका नाम ‘आर्यन एज्युकेशन सोसायटी’की पाठशालामें प्रविष्ट किया । ‘कुशाग्र, एकपाठी एवं विनम्र विद्यार्थी’के रूपमें वह पाठशालामें परिचित था । स्वभाव मिलनसार तथा परोपकारी होनेके कारण समय आनेपर स्वयं कष्ट उठाकर अन्योंको सहायता करनेकी उसकी वृत्ती थी ।’
 

३.सैनिकी शिक्षाका आकर्षण

         ‘बचपनसे ही उसे व्यायाममें रूचि थी । उसके देहकी गठन पतली थी; परंतु शरीर तगडा था । उसने बचपनसे ही लाठी चलानेकी कुशलता अवगत की थी । कन्हैयाके बालमनको सैनिकीr शिक्षाका भी अत्यंत आकर्षण था ।’
 

४.अंग्रेज शासनमें हुए अन्यायकारक प्रसंगोंसे युवा मन प्रभावित होना

         ‘बाल कन्हैया अब युवा कन्हैया हुआ था । बढती हुई आयुके साथ कन्हैयाके गुणोंमें भी वृद्धि हुई । उसकी प्रगल्भता वृद्धिंगत हो गई । घरमें होनेवाले सुसंस्कार तथा सर्व ओरकी सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितिका अवलोकन करनेपर चरण-दर-चरण अंग्रेज शासनद्वारा हो रही अन्यायकारक घटनाओंके कारण कन्हैयाका युवा मन प्रभावित हो रहा था ।’
 

५. बी.ए. की परीक्षा ‘इतिहास’ विषयमें विशेष श्रेणीमें उत्तीर्ण होना

          ‘ऐसी परिस्थितिमें महाविद्यालयीन शिक्षा हेतु अपने ही गांव जानेका निश्चय उसने किया । अतएव १९०३ में कन्हैयाने चंद्रनगरके ‘डुप्ले कॉलेज’में प्रवेश लिया । महाविद्यालयमें भी अपनी बुद्धिमानता एवं मिलनसार स्वभावके कारण कन्हैया ‘सभीके प्रिय विद्यार्थी’के रूपमें परिचित हुआ । कन्हैयाको बचपनसे ही इतिहासमें रूचि थी; इसलिए १९०७ में उसने प्रा. चारुदत्त रॉयके मार्गदर्शनमें बी.ए.की परीक्षा ‘इतिहास’ विषयमें विशेष श्रेणीमें प्रथम क्रमांकसे उत्तीर्ण की । कन्हैयाको वाचन करनेमें रूचि थी ।’

 

६.सत्येंद्रनाथ बोस एवं अन्य क्रांतिकारीयोंसे परिचय होना

         ‘कोलकाताके ‘युगांतर’ समितिके कार्यकर्ताओके साथ कन्हैयालालजीका परिचय हुआ । ‘युगांतर’के अरविंद घोष, बारींद्र घोष, उल्हासकर दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोस नामक अनेक प्रखर देशाभिमानी वीरोंके सहवासके कारण कन्हैयालालजी आवेशके साथ क्रांतिकार्यमें सहभागी होने लगे । उनके प्रिय अध्यापक चारुचंद्र रॉयने इतिहासकी शिक्षाके अतिरिक्त बंदूक चलानेका उत्तम प्रशिक्षण भी कन्हैयालालजीको दिया । द्वंद्वयुद्धकी कला भी उन्होंने आत्मसात की थी ।’
 

७. विदेशी साहसिका(सर्कस)के विरोधमें जनमत सिद्ध कर खेल बंद करना

         ‘कन्हैयालालजीका अंग्रेज शासनके विरोधमें जनमत तैयार करनेका कार्य सदैव चलता ही था । १९०७ में ‘वॉरेन सर्कस’ नामक विदेशी साहसिका चंद्रनगरमें आई थी । उस विदेशी साहसिकाके विरोधमें जनमत तैयार कर उस साहसिकाके खेल वहां ना हो, इसलिए साहसिकाके टिकट-बिक्रीके काऊंटरके समक्ष कन्हैयालालजीने ‘पिकेटींग’ कर टिकटकी बिक्री बंद की थी । स्वदेशी वस्तुओके उपयोग करनेपर कन्हैयालालजी विशेष आग्रही थे । स्वदेशी वस्तुओंके बिक्रीकी उन्होंने दुकान भी लगाई थी ।’

 

८. नरेंद्र गोस्वामीद्वारा विश्वासघात होकर

क्रांतिकारीयोंकी जानकारी पुलिसको सूचित की जाना

          चंद्रनगरकी फ्रेंच कालोनीमें बाहरसे हो रही शस्त्रसामग्रीकी आपूर्ति वहांके मेयर(महापौर)के ध्यानमें आई थी । उसके विरुद्ध उस मेयरद्वारा प्रतिबंध लगाया गया था । इसलिए क्रांतिकारीयोको अनेक अडचनें निर्माण हुई थी । अंतमें ‘उस मेयरकी हत्या करेंगे’ ऐसा उन क्रांतिकारीयोंने  निश्चय किया । १८.४.१९०८ को युगांतर समितिके नरेंद्र गोस्वामी तथा इंद्रभूषण राय नामक कार्यकर्ताओंने महापौरके घरपर बम डालकर उसकी हत्या करनेका दायित्व स्वीकार कर वैसा प्रयास किया; परंतु संयोगवश मेयर उससे भी बच गया । पुलिस जांचमें कुछ दिनों पश्चात नरेंद्र गोस्वामी एवं इंद्रभूषण राय पकडे गए । पुलिसद्वारा ‘पकडे जानेके पश्चात क्रांतीकारकोंकी अवस्था वैसी होती है’, यह दिखाया गया; इसलिए अंतमें नरेंद्र गोस्वामी पुलिसकी शरणमें आया । पुलिसद्वारा होनेवाली यातनाओंसे मुक्तता हो एवं कारावासके निवासकालमें सुविधाएं मिले, इस शर्तपर वह क्षमाका साक्षीदार हुआ । उसने सभी क्रांतिकारीयोंकी जानकारी पुलिसको सूचित की एवं अपने सहकारीयोंके साथ विश्वासघात किया ।’
 

९. नरेंद्र गोस्वामीद्वारा प्राप्त जानकारीके

आधारपर अंग्रेजोने अन्य क्रांतिकारीयोंको बंदी बनाना

         ‘नरेंद्र गोस्वामीद्वारा प्राप्त जानकारीके आधारपर शीघ्र गतिसे जांच करते समय ही प्राप्त जानकारीके आधारपर सावधानता रखकर हिंदुस्थानके वंग क्रांतिकारीयोंको पकडनेका अंग्रेज अधिकारी अथक प्रयास कर रहे थे । उसी समय ३० अप्रैलको खुदीराम बोस एवं प्रफुल्लचंद्र चाकी नामक दो वंगवीरोंने मुझफ्फरपुरके किंग्जफोर्डकी बमसे हत्या करनेका प्रयास किया था । चंद्रनगरकी घटना एवं किंग्जफोर्डपर हुआ आक्रमण इन दो घटनाओंके विषयमें जांच करते समय ही अंग्रेज अधिकारीयोंने नरेंद्रद्वारा प्राप्त जानकारीके आधारपर कोलकाताके १३४ हॅरीसन रोडपर स्थित माणिकतोला उद्यानके निकटके एक घरपर छापा डाला, तो बमकी एक सुसज्ज कार्यशाला ही उन्हें दिखाई दी । उसी आधारपर २.५.१९०८ को युगांतर समितिके बारींद्रकुमार घोष, अरविंद घोष, उल्हासकर दत्त, कन्हैयालाल दत्त तथा सत्येंद्रनाथ बोस नामक अनेक महत्त्वपूर्ण क्रांतीकारीयोंको अंग्रेज अधिकारीयोंने बंदी बनाया । इन सभीको बंगालके अलीपुरके मध्यवर्ती कारागृहमें रखा गया था । बंगालके अंग्रेज शासनके विरोधमें जनमत निर्मितिका कार्य करनेवाले, साथ ही सशस्त्र क्रांतिकारीयोंको उनके कार्यके लिए शस्त्रोंकी आपूर्ति करनेवाले सभी प्रमुख क्रांतिकारीयोंको बंदी बनाया गया; जिसके कारण माणिकतोला उद्यानके निकटकी बमकी गुप्त कार्यशाला बंद हुई । तेजीसे चल रहा क्रांतिका आंदोलन अकस्मात आए बवंडरके कारण तितर-बितरसा होकर रूक गया ।’
 

१०. अपने सहयोगीयोको त्यागना पडेगा;

इसलिए अपनी मुक्तताके लिए परिजनोंको नकार देना

‘कन्हैयालाल दत्त कारावासमें रहकर भी निर्विकार थे । कारावासमें वे निरंतर उन्हें प्रिय बंकीमचंद्रद्वारा निर्मित ‘वंदे मातरम्’ गीत स्वयं गाया करते थे एवं अन्योंको भी गानेका आग्रह करते थे । अंग्रेज शासनने बंदी बनाए हुए क्रांतिकारीयोके विरुद्ध नरेंद्र गोस्वामीद्वारा दिए गए निवेदनके अतिरिक्त कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं था । अतएव कन्हैयालालजीके परिजनोंने तथा आप्तजनोने कन्हैयालालजीसे कहा था, ‘हम एक अच्छा अधिवक्ता नियुक्त कर आपकी मुक्तता करेंगे ।’ उसपर कन्हैयालालजीने अपने आप्तजनोंको बताया, ‘अबतक मैंने मेरे सभी सहयोगीयोंके साथ कार्य किया है । जो उनके साथ होगा, वही मेरा भी होगा । मेरे जिवित होनेतक उन सभीको छोडकर मैं कभी भी नहीं जाऊंगा ।’
 

११. सत्येंद्रनाथ बोसके साथ षडयंत्र रचकर

विश्वासघात करनेवाले नरेंद्र गोस्वामीको सबक सिखानेका निश्चय करना

          ‘अलीपुर कारावासके सभी क्रांतिकारीयोंपर चल रहा अभियोग न्यायालयमें सुनवाईके लिए आया था । नरेंद्र गोस्वामी विश्वासघाती होकर क्षमाका साक्षीदार हुआ था, इसलिए उसे अन्य क्रांतिकारीयोंसे हटाकर अन्य कक्षमें रखा था । युगांतर समितिके क्रांतीवीरोमें नरेंद्र गोस्वामीको विश्वासघातकी सबक सिखानेका निश्चय हो रहा था ; अपितुसदैव पुलिसके घेरेमें रहनेवाले नरेंद्र गोस्वामीको मिलना भी संभव नहीं था । अंततः कन्हैयालालजीने अपने साथी सत्येंद्रनाथ बोसके (खुदीराम बोसके चाचा) साथ एक षडयंत्र रचा एवं उसे प्रत्यक्षमें लानेके लिए अपने प्रयास आरंभ किए । ऐसी परिस्थिमिमें ही ११.८.१९०८ को खुदीराम बोसको फांसी दी गई; इसलिए कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथका निश्चय अधिक ही दृढ हुआ ।    कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ दोनों भी नरेंद्र गोस्वामीको कंठस्नान करवानेके उद्देश्यसे उचित अवसरकी प्रतिक्षा कर रहे थे । न्यायालयमें वे केवल दुरसे एक-दुसरेको देखते थे अथवा उनमें शाब्दिक संघर्ष होता था । १.९.१९०८ को नरेंद्र गोस्वामीकी न्यायालयमें मुख्य साक्ष होनेवाली थी । उसके पहले ही नरेंद्रको यमलोक भेजनेका निर्णय कन्हैयालालजीने लिया था । उसके लिए उन्होंने नाटक करनेका निश्चित किया । नरेंद्र गोस्वामीको अन्य क्रांतिकारीयोंकी ओरसे सदैव मार डालनेकी धमकीयां मिलती थी । इसके अतिरिक्त न्यायालयमें भी एक-दो बार साक्ष देते समय एक क्रांतिकारीने नरेंद्रको जूता मारा था । ऐसी घटनाओंके कारण नरेंद्र गोस्वामीको रक्तचापका कष्ट होकर उनका मानसिक संतुलन भी बिगड जाता था । अतएव नरेंद्र गोस्वामीको अंग्रेज अंगरक्षकोंकी सुरक्षामें रूग्णालयमें भरती किया था ।’
 

१२.  दोनोंने भी अपने आपको

रूग्णालयमें भरती करवाकर नरेंद्रका विश्वास प्राप्त करना

         ‘२७.८.१९०८ को सत्येंद्रनाथने उदरशूल(पेटदर्द)का कारण बताकर अपने आपको रूग्णालयमें भरती करवाया ।  वहां नरेंद्रके साथ बातें करते करते उसका विश्वास प्राप्त किया तथा स्वयं भी क्षमाका साक्षीदार होनेके लिए सिद्ध है, ऐसा असत्य कथन किया । उसके पश्चात दो ही दिनमें कन्हैयालालजी भी उदरशूलका कारण देकर रूग्णालयमें भरती हुए । रूग्णालयमें भरती होनेसे पहले घरसे आनेवाले डिब्बेमें उन्होंने २ पिस्तौल चुपकेसे मंगवाकर रखे थे । एक पिस्तौल छहबारी ३८० व्यासका ‘ओसबॉर्न’ द्वारा उत्पादित था, तो अन्य ४५० व्यासका था । सत्येंद्रनाथने नरेंद्र गोस्वामीको बताया कि, ‘मैं कन्हैयालालको भी समझाकर उसे भी क्षमाका साक्षीदार होनेके लिए तैयार करूंगा; क्योंकि हम दोनोंके पेटदर्द जानलेवा ही है । ऐसेमें भी यदि पुलिसने यातना देकर हमें कारावासमें फसांया, तो हमारा जीवित रहना भी कठीन हो जाएगा । अतः तुम्हारे जैसा क्षमाका साक्षीदार होंगे, तो हमारे प्राण बच जाएंगे एवं तदुपरांत कारावाससे छुटकारा भी होगा ।’  यह असत्यकथन नरेंद्र गोस्वामीको सत्य प्रतीत हुआ । उसने अंग्रेज पुलिस अधिकारीको वैसा संदेश भी भेजा ।’

 

१३. अवसर पाकर नरेंद्र गोस्वामीपर गोली चलाना एवं वह उसे मर्मस्थानपर लगना

         ‘३१.८.१९०८ को सुबह ८ बजे नरेंद्र गोस्वामीका संदेश मिलते ही हिगिन्स नामका अंग्रेज अधिकारी नरेंद्र गोस्वामीको साथ लेकर कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथको मिलने आया । अपने आखेटकी प्रतिक्षामें शिकारी सिद्ध ही थे । दूरसे ही नरेंद्र गोस्वामीको आते हुए कन्हैयालालजीने देखा एवं सत्येंद्रनाथको संकेत किया । रूग्णालयके एक कोनेमें ही अंग्रेज अधिकारी हिगिन्सको सत्येंद्रनाथने रोक लिया एवं ‘उसे कुछ गुप्त बात कह रहे है’, ऐसा अविर्भाव कर उसके कानमें कुडबुडाया । हिगिन्सकी समझमें कुछ भी नहीं आया, इसलिए हिगिन्स प्रश्नभरी मुद्रा कर सत्येंद्रनाथकी ओर केवल देखता ही रह गया । इतनेमें नरेंद्र गोस्वामी अधिक आगे बढ गया था । इस अवसरका लाभ उठाकर कन्हैयालालजीने नरेंद्र गोस्वामीको रोककर उसे मारनेके लिए रिव्हॉल्व्हर बाहर निकाला । यह देखकर उन्हें पकडनेके लिए हिगिन्स आगे दौडा । नरेंद्र गोस्वामी भयभीत हुआ एवं घबराकर जान बचानेके लिए दौड पडा । दौडत-दौडते चिल्लाने लगा, ‘ये मेरी जान ले रहे हैं । मुझे बचाओ!’
    नरेंद्रके चिल्लानेकी ओर अनदेखा कर सत्येंद्रनाथने एक गोली चलाई । वह गोली नरेंद्रके हाथपर लगी, अतः जान बचाने हेतु वह दौडता रहा । उसे बचानेके लिए हिगिन्सने कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथको रोकनेकी पराकाष्टा की; परंतु देशद्रोही तथा मित्रद्रोही नरेंद्रको इतनी सहजतासे छोड देनेको यह बंगाली बाघ तैयार नहीं थे । हिगिन्सको मारपीट कर घायल किया; इसलिए हिगिन्स निष्क्रिय होकर पडा था । कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ दोनों पुनः नरेंद्रके पिछे दौडे । रूग्णालयका परिसर बहुत बडा था; परंतु वहांसे बाहर निकलनेका मार्ग कन्हैयालालजीने रोक रखा था, इसलिए नरेंद्रको केवल यहांसे वहां भागनेके अतिरिक्त कोई पर्याय नहीं था । इतनेमें यह कोलाहल सुनकर लिटन नामक एक सुरक्षारक्षक वहां आया । नरेंद्रको बचानेके लिए वह दौडते हुए आ रहा है, यह देखते ही सत्येंद्रनाथने लिटनपर ३-४ मुष्टीप्रहार किए । लिटन धरतीपर लुढक गया । इस अवसरका लाभ ऊठाकर कन्हैयालालजीने अपने पिस्तौलसे नरेंद्रपर गोली चलाई । वह गोली नरेंद्रके मर्मस्थानपर लगी । गोली लगनेके
कारण नरेंद्र गोस्वामी वहांके एक गंदे पानीकी नालीमें गिर गया । नालीमें गिरते गिरते वह कहने लगा कि, ‘‘मेरे विश्वासघातके कारण ही इन्होंने मुझे मार दिया ! मेरी जान ली !’’
 

१४. राष्ट्र्द्रोहीको मारनेपर सर्व जनताद्वारा ‘अच्छा हुआ’, ऐसी प्रतिक्रिया आना

         ‘कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथने मिलकर एक राष्ट्र्रद्रोही विश्वासघातीको कंठस्नान करवाकर यमलोक भेज दिया । अपना ध्येय पूरा करते ही ‘वन्देमातरम्’का जयघोष कर सत्येंद्रनाथ एवं कन्हैयालालजी पुलिसके आनेकी प्रतिक्षा कर रहे थे । चारों ओरके बंदी, सहकारी तथा कारावासकी सुरक्षा सेना सभीके सभी स्तब्ध हुए थे । कुछ ही देरमें अंग्रेज अधिकारी वहां आए । उन्होंने दोंनो वंगवीरोंको हथकडी पहनाई एवं उनके पिस्तौल हस्तगत किए । कारागृहाधिकारीके कक्षमें आनेके उपरांत कारागृहाधिकारी इमर्सनने कन्हैयालालजीको पूछा, ‘‘तुम्हारे पास पिस्तौल कहांसे आए ? किसने दिएं ?’’ उसपर कन्हैयालालजीने हंसते हंसते उत्तर दिया, ‘‘ये पिस्तौल हमें वंगवीर खुदीरामके भूतने कल रात १२ बजे दिए ।’’ विश्वासघाती नरेंद्रकी हत्याके कारण संपूर्ण हिंदुस्थानकी जनता कह रही थी, ‘राष्ट्र्रद्रोहीको दंड होना ही चाहिए था । अच्छा हुआ दुष्टात्मा मर गया !’
 

१५. दोनोंको भी मृत्युदंड घोषित होना

         ‘७.९.१९०८ को सेशन कोर्टमें कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोसपर अभियोग आरंभ हुआ । कुछ दिन उपरांत वह अभियोग वरिष्ठ न्यायालयमें गया । न्याय देनेका केवल नाटक ही था, इसलिए निर्णय देनेके लिए अंग्रेज शासन जितना उत्सुक था, उनकी अपेक्षासे अधिक उत्साही थे बंगालके बाघ कन्हैयालालजी एवं सत्येंद्रनाथजी । वे जानते थे कि, मृत्युदंड ही होनेवाला है । उनकी अपेक्षाके अनुसार ही निर्णय आया, फांसीका  दंड ! फांसीके दिन भी निश्चित हुए । १०.११.१९०८ को कन्हैयालालजीको तथा २१.११.१९०८ को सत्येंद्रनाथको !’
 

१६. दोनोंका भी कर्तव्यपूर्तिके आनंदमें मग्न रहना

         ‘कन्हैयालाल एवं सत्येंद्रनाथ दोनों भी कर्तव्यपूर्तिके आंनदमें मग्न थे । देशके लिए प्राणार्पण करनेकी उनकी इच्छा पूर्ण होनेवाली थी । अलीपुरका कारागृह अधिकारी इमर्सन कन्हैयालालजीको कहने लगा कि, ‘‘तुम्हें फांसीकी गंभीरता नहीं है । फांसी अर्थात मृत्यु ! यह आनंदमय घटना नहीं है ।’’ कन्हैयालालजीके बडे भाई उन्हें मिलनेके लिए आए थे । फांसीके दंडके कारण वे इतने व्याकुल हुए थे कि, कन्हैयालालजीने ही उनका सांत्वन किया । उन्होंने कहा, ‘‘कुछ भी चिंता मत करो । मेरा भार १२ पौंडसे बढ गया है ।’’ यह बात सत्य ही थी । दंडका कोई भी दबाव उनके मनपर नहीं आया था ।’

 

१७. फांसी

          ‘१०.११.१९०८ को अलीपुरके कारागृहमें प्रात: ५ बजे कन्हैयालालजीको जगाया गया । उस रातमें भी वे शांतिसे सो पाए थे । ‘स्नानादि कर्म निपटाकर शुचिर्भूत होकर किसी मंगल कार्यके लिए जाना हैं ’, इसी उत्साहसे कन्हैयालालजी अपनी कोठरीसे बाहर निकले, वह भी ‘वंदेमातरम्’का जयघोष करते हुए । उसी समय अन्य बंदी तथा क्रांतिकारीयोंने उन्हें मातृभूमिका जयघोष कर प्रतिसाद दिया । साथ ही शुभकामनाएं भी दी । वधस्तंभपर चढते ही वे स्वयं अपने हाथोसे ही फांस गलेमें अटकाकर सज्ज हुए । उस समय उन्होंने कारागृह अधिकारी इमर्सनको पूछा कि, ‘‘अभी मैं आपको वैâसा दिख रहा हूं ?’’ तदुपरांत उन्होंने ‘वंदे मातरम् !’ कहकर सभी लोगोंसे विदा लिया । ठीक ७ बजे कन्हैयालालजीको फांसी दी गई । अपने नश्वर देहका त्याग कर मातृभूमिको स्वतंत्रता प्राप्त होने हेतु प्रत्यक्ष ईश्वरको मनानेके लिए कन्हैयालालजीने स्वर्गकी ओर प्रस्थान किया ।’

 

१८. विशाल अंत्ययात्रा एवं कालीघाट स्मशानभूमिमें अंत्यसंस्कार होना

         विशाल अंत्ययात्रा एवं कालीघाट स्मशानभूमिमें अंत्यसंस्कार होना : ‘कन्हैयालालजीका अचेतन देह कारागृहके अधिकारीने उनके बडे भाई डॉ.आशुतोषके स्वाधीन किया । मृत्युके पश्चात भी कन्हैयालालजीका मुख संतुष्ट एवं शांत था । उनके मुखपर कोई भी दुःख नहीं दिख रहा था । कन्हैयालाल दत्तका पार्थिव उनके चंद्रनगरके घरमें लाया गया । पूरे बंगालके गांवगांवमेंसे सैंकडो लोग उनके अंत्यदर्शनके लिए आए थे । कन्हैयालालजीकी विशाल अंत्ययात्रा कालीघाट स्मशानभूमिमें पहुंची । हृद्य कंठसे ‘कन्हैयालाल अमर रहे !’के जयघोषमें उनका नश्वर देह चंदनकी चितापर अग्निज्वालाओंमें समा गया । उनके अमूल्य बलिदानकी स्मृतियोंके अतिरिक्त शेष थी, केवल उनकी पवित्र रक्षा !’
 

 १९. सत्येंद्रनाथ बोसको फांसीका दंड होना एवं अंत्ययात्रासे

भयभीत होकर शासनद्वारा उनपर कारागृहमें ही अंत्यसंस्कार होना 

         ‘कन्हैयालालजीके अंत्ययात्रामें सहभागी जनताका प्रतिसाद देखकर अंग्रेज शासन भयभीत हुआ था । २१.११.१९०८ को सत्येंद्रनाथ बोसका पार्थिव फांसीके उपरांत कारागृहके बाहर ले जानेकी अनुमति शासनद्वारा अस्वीकार की गई एवं कारागृहमें ही अंत्यसंस्कार किए गए ।
    हिंदुस्थानकी स्वतंत्रताके लिए आत्मसमर्पण करनेवाले दो निर्भय देशभक्त कन्हैयालाल दत्त एवं सत्येंद्रनाथ बोसको वर्तमान भारतीय समाज भूल गया है, ऐसा प्रतीत होता है । स्वतंत्रता संग्राममें सहभागी ज्ञात-अज्ञात वीरोंद्वारा की गई बलिदानकी सार्थकताको हमें सावधानीसे संजोए रखना चाहिए । यही वास्तविक रूपमें उन्हें श्रद्धांजली होगी ।’

संदर्भ – श्री. जयंत यशवंत सहस्रबुद्धे, सदस्य, अक्षय व्यावसायिक नागरी सहकारी पतसंस्था मर्या., अकोला ।

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